हबीब तनवीर के नहीं होने का मतलब

बुधवार, 10 जून 2009

थिएटर जगत के बेताज बादशाह मशहूर रंग निदेशक और जानेमाने कलाधर्मी हबीब तनवीर अब इस दुनिया से रुखसत हो गए हैं लेकिन उन्होंने अपने जीते जी एक ऐसी दुनिया रच ली थी जिसके लिए आने वाली कई सदियों तक उनके गुणगान करने वालो की एक पूरी पीढी हमेशा उनकी मुरीद रहेगी! 1 सितम्बर 1923 को हबीब तनवीर रायपुर में जन्मे थे और सच मायनों में समूचा छत्तीसगढ़ उनकी रगों में फड़कता था! यंहा की लोककला और अंचल की माटी की खुशबू को दुनिया भर में प्रसिद्ध करने का पूरा श्री हबीब तनवीर को ही जाता है!


वे उस दौर में थिएटर से जुड़ गए जब फिल्मों का जादू पूरे रंग जगत को फीका कर रहा था! उनके करियर की शुरुआत पत्रकार के रूप में हुई थी! 1954 में वे मुंबई जा पंहुचे जन्हा उन्होंने फ़िल्मी नक्कारखाने में थिएटर की तूती बजाने की भरसक कोशिश की लेकिन वो ऐसा दौर था जब देश ने आजादी की ताजा साँसें ली थी लिहाजा पूरे दौर पर नए ज़माने की नई तकनीक और बोलती फिल्मों का नशा हावी था लिहाजा कुछ नया सीख कर नई इबारत लिखने की सोच के साथ हबीब तनवीर इंग्लेंड चले गए वंहा उन्होंने थिएटर की नई बारीकियों की पढाई की और अपने वतन लौट आये!

इंग्लेंड से उनका लौटना सही मायनो में अपनी माटी के प्रती उनके गहरे अनुराग का परिचायक था और तनवीर उन लोगों में से भी कतई नहीं थे जो दूर परदेश में जाते ही अपनी जड़ों को भूल जाते हैं ! उन्होंने अपनी विदेश की पढाई के अनुभव को अंचल की लोक कलाओं के उन्नयन से जोड़ा और रंग जगत में नया थिएटर का एक ऐसा प्रयोग किया जिसे लिए आज तमाम कला जगत के पुरोधा उनको याद कर रहे हैं और छत्तीसगढ़ के सन्दर्भ में उनके योगदान को बारीकी से देखने वाले जानते हैं कि आज पंडवानी की मशहूर गायिका तीजन बाई कि स्वर लहरियां यदी दुनिया भर में गूँज रही है तो उनको गुमनामी से निकाल कर आगे लाने की ज़मीन हबीब तनवीर ने तैयार कि थी!

यह हबीब तनवीर जैसे लोगों का ही योगदान रहा है कि भोपाल में भारत भवन की नीव पडी और १९९० के दशक में भोपाल को नया थिएटर वालों ने इतना महत्वपूर्ण स्थान बना दिया कि आज भी पूरे देश में कला कर्म के दीवाने राष्ट्रिय नाट्य विद्यालय के बाद भोपाल के भारत भवन कि ही सराहना करते हैं! यह हबीब तनवीर और उनके सरीखे प्रतिबद्ध थिएटर कर्मियों के प्रयासों का असर था कि भोपाल में रविन्द्र भवन की धमक श्रीराम सेंटर- मंदी हाउस दिल्ली सरीखी ही रही और वंहा नाटक का काबा काशी बन गया है!चरणदास चोर, आगरा बाज़ार और मिट्टी की गाडी जैसे कालजयी नाटकों के पेशकर्ता हबीब तनवीर की अपनी एक विशिष्ट सोच थी! महानगरों में खादी का कुर्ता पहन कर अंगरेजी में हिन्दुस्तान की लोककलाओं पर सतही चर्चा कर के गोष्ठियों और सेमिनारों में संस्क्रीती को बचाने की जुगाली करने की बजाय हबीब ने झुग्गी में जाकर कलाकार उठाये और उनको तराश कर कला को सीधे समाज से जोड़ा! वे नया प्रयोग रचने में यकीन रखते थे! जो जंचता था उसपर लिखते और मंचित करते थे ! फिर चाहे कोई नाराज हो या खुश हो वे इसकी परवाह नहीं करते थे !

यह हबीब तनवीर की नाटकों के प्रती प्रतिबद्धता का असर था की देश ने नुक्कड़ नाटकों के जरिये भी सामाजिक समस्याओं और राजनीतक विवशताओं को समझा! नाटक होते रहे यह वे चाहते थे! थिएटर उनकी राग-राग में रचबस गया था! जाने कितने कलाकार उनका सामीप्य पा कर आगे निकल गए और रंगकर्म की सीढ़ी पर पांव रख कर सिने जगत में कूद गए लेकिन हबीब ने अपना थिएटर नहीं छोडा और थिएटर को समृद्ध करने के लिए वे नए प्रयोग भी करते रहे जो कामयाब भी रहे! उनके अप्रतिम योगदान के लिए उनको पद्म विभूषण, पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी से कई सम्मान भी मिले !

पिछले बरस उनके जन्म दिन पर दिल्ली में सहमत वालों ने एक मुलाक़ात का कार्यक्रम रखा था ! इस दौरान उन्होंने साफ़ कहा कि रंगमंच को कोई ख़तरा नहीं है! आज भी पहले से ज्यादा नाटक हो रहे हैं ! सिनेमा अपनी जगह है और टीवी अपनी जगह, रंगमंच हमेशा जिंदा रहेगा! रंगमंच के प्रति यही आशावाद हबीब को बाकी लोगों से अलग करता रहा जो कभी सिनेमा तो कभी टीवी का डर दिखा कर रंगमंच को लोक अभिरुचि का माध्यम सतत बनाये रखने कि कवायद से बचते रहे हैं! हबीब जूझने और सफल होने वालों में से थे ! वे जानते थे कि पर्दा गिरने के बाद जरूर उठेगा ! उनके नाटकों पर और लोककलाओं के उन्नयन पर योगदान को लेकर अब पर्दा उठने वाला है!

8 comments:

बेनामी 11 जून 2009 को 9:17 am बजे  

शुकामनाएं....

Anil Pusadkar 11 जून 2009 को 10:45 am बजे  

शर्मा जी आपके ब्लाग पर पहली बार आया हूं। आपका ब्लाग जगत मे स्वागत करता हूं और उम्मीद करता हूं कि आप छतीसगढ मे रोज़ दब-मर रही खबरो को ज़िंदा रखेंगे।

Unknown 11 जून 2009 को 6:39 pm बजे  

swagat hai

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) 11 जून 2009 को 8:30 pm बजे  

ummid hai hun hi lukhte rahe ge shubh kamnaye aur bdhayi
sadar
praveen pathik
9971969084

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" 11 जून 2009 को 10:58 pm बजे  

हबीब तनवीर जी को हमारी ओर से श्र्द्धांजली.....

vijay kumar sappatti 12 जून 2009 को 1:38 am बजे  

namaskar mitr,

habeeb ji sahi mayano me rangmanch ke paryaayi the... unka yogdaan bahut mahatvpoorn hai is desh ke liye .. aapka aalekh bahut accha laga.

badhai sweekar karen

dhanywad,
vijay

pls read my new poem :

http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html

Dwivedi Anil 13 जून 2009 को 8:26 am बजे  

Ramesh ji,
Akhbaron ke baad ab Blog par bhi.... Vah... bahut acccha laga apka blog dekhkar.
Ek patrkar ke taur par apne Habib Tanveer ji ko sahi pahchana. Viswas hai ki ap aise hi likhtey rahengey jo hamare liye margdarshak hoga.

Badhai....

Anil Dwivedi.
Journalist.

Natak-Vidha ki is mahan hasti ko Salam.

राजेश अग्रवाल 17 जून 2009 को 7:29 am बजे  

हबीब तनवीर के योगदान पर कम शब्दों में विस्तृत चर्चा की है. अच्छे आलेख के लिए बधाई!

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