खो गई चाबी, कमरे से निकल गए ऋषि
रविवार, 3 मई 2020
ऋषि कपूर बीमार हैं, इलाज कराने के लिए अमेरिका गए हैं, यह खबर तो पिछले 2 सालों से आ ही रही थी लेकिन वह इतनी जल्दी इस दुनिया से रवाना हो जाएंगे यह बात तो सपने में भी नहीं सोची थी क्योंकि ऋषि कपूर लगातार सक्रिय थे, ट्वीट से और अपनी सोशल मीडिया की पोस्ट से लगातार अपने जिंदा होने का सबूत देते रहे थे।
मनहूस कोरोना काल खंड में जब अचानक खबर आई कि वह नहीं रहे तो बॉबी का वह खुशनुमा फ्रेश चेहरा आंखों के आगे तैर गया जिसने 1970 के दशक में नई पीढ़ी के नौजवानों में प्रेम का एक नया संदेश लेकर नया रोमेंटिक इतिहास रच दिया था।
बॉबी की सफलता के बाद ऋषि कपूर चॉकलेटी हीरो बनकर पेड़ों के इर्द-गिर्द नाचते जरूर रहे लेकिन बहुत जल्दी उनको यह भी समझ में आ गया था कि फिल्म इंडस्ट्री में कायम रहना है तो उनको गंभीर भूमिकाओं में प्रभावशाली अभिनय करना ही होगा और उसके बाद ऋषि कपूर ने कई फिल्में की। कई फिल्मों में उन्होंने साइड हीरो का भी रोल स्वीकार लिया लेकिन अपनी उपस्थिति पूरी दमदारी से दर्ज की और फिल्मों में पार्ट 2 अभिनय में चरित्र भूमिकाओं में उतरने के बावजूद वे सामाजिक मोर्चों पर हर मुद्दे पर अपनी बेबाक राय के लिए आलोचनाओं का शिकार भी हुए। कभी उन्होंने माफी नहीं मांगी। चाहे वह पाकिस्तान को लताड़ने का मुद्दा हो या देश के सार्वजनिक स्थानों के नामकरण का मामला हो उन्होंने अपनी बात को पूरी बेबाकी के साथ खुलकर सामने रखा। ट्रोल होते आलोचना के बावजूद भी डटे रहे, खेद नहीं जताया। एक उम्दा नेचुरल हीरो अब सशरीर हमारे बीच नहीं है लेकिन करोड़ों दर्शकों के लिए खुशनुमा पलों को जुटाने के लिए और उन पलों को रिप्ले करते उनको हमेशा याद किया जाएगा।
1990 के दशक में उनसे जयपुर में हुई मुलाकात के कुछ पल याद हैं। तब मैंने उनको बहुत डाउन टू अर्थ पाया था। फिल्म बंजारन की शूटिंग के कवरेज के लिए दिल्ली के पत्रकार जयपुर पहुंचे थे। होटल लॉन में गाने की शूटिंग के बाद ऋषि कपूर से बातचीत का टाइम आया तो ऋषि ने सारे पत्रकारों को खड़ा होकर बातचीत करते देख कर कहा कि "ऐसे अच्छा नहीं लग रहा है, आइए, कहीं बैठ जाते हैं।" स्पॉट ब्वॉय ने एक कुर्सी उनके सामने रख दी। फर्क देखिए संस्कारी व्यक्तित्व का, कपूर खानदान इसलिए सबसे अलग है, ऋषि कपूर ने कुर्सी को वापस कर दिया और खुद लॉन में जाकर घास पर बैठ गए और इतना बड़ा स्टार जब जमीन पर बैठकर बात करने लगा तो हमें भी बहुत अच्छा लगा।
उनके इस आंखें पुरनम कर देने
वाले गीत के साथ अलविदा
*तुमको खुश देख कर मैं बहुत खुश हुआ, ये आंख भर आई तो फिर क्या हुआ, फिर क्या हुआ*।
मनहूस कोरोना काल खंड में जब अचानक खबर आई कि वह नहीं रहे तो बॉबी का वह खुशनुमा फ्रेश चेहरा आंखों के आगे तैर गया जिसने 1970 के दशक में नई पीढ़ी के नौजवानों में प्रेम का एक नया संदेश लेकर नया रोमेंटिक इतिहास रच दिया था।
बॉबी की सफलता के बाद ऋषि कपूर चॉकलेटी हीरो बनकर पेड़ों के इर्द-गिर्द नाचते जरूर रहे लेकिन बहुत जल्दी उनको यह भी समझ में आ गया था कि फिल्म इंडस्ट्री में कायम रहना है तो उनको गंभीर भूमिकाओं में प्रभावशाली अभिनय करना ही होगा और उसके बाद ऋषि कपूर ने कई फिल्में की। कई फिल्मों में उन्होंने साइड हीरो का भी रोल स्वीकार लिया लेकिन अपनी उपस्थिति पूरी दमदारी से दर्ज की और फिल्मों में पार्ट 2 अभिनय में चरित्र भूमिकाओं में उतरने के बावजूद वे सामाजिक मोर्चों पर हर मुद्दे पर अपनी बेबाक राय के लिए आलोचनाओं का शिकार भी हुए। कभी उन्होंने माफी नहीं मांगी। चाहे वह पाकिस्तान को लताड़ने का मुद्दा हो या देश के सार्वजनिक स्थानों के नामकरण का मामला हो उन्होंने अपनी बात को पूरी बेबाकी के साथ खुलकर सामने रखा। ट्रोल होते आलोचना के बावजूद भी डटे रहे, खेद नहीं जताया। एक उम्दा नेचुरल हीरो अब सशरीर हमारे बीच नहीं है लेकिन करोड़ों दर्शकों के लिए खुशनुमा पलों को जुटाने के लिए और उन पलों को रिप्ले करते उनको हमेशा याद किया जाएगा।
1990 के दशक में उनसे जयपुर में हुई मुलाकात के कुछ पल याद हैं। तब मैंने उनको बहुत डाउन टू अर्थ पाया था। फिल्म बंजारन की शूटिंग के कवरेज के लिए दिल्ली के पत्रकार जयपुर पहुंचे थे। होटल लॉन में गाने की शूटिंग के बाद ऋषि कपूर से बातचीत का टाइम आया तो ऋषि ने सारे पत्रकारों को खड़ा होकर बातचीत करते देख कर कहा कि "ऐसे अच्छा नहीं लग रहा है, आइए, कहीं बैठ जाते हैं।" स्पॉट ब्वॉय ने एक कुर्सी उनके सामने रख दी। फर्क देखिए संस्कारी व्यक्तित्व का, कपूर खानदान इसलिए सबसे अलग है, ऋषि कपूर ने कुर्सी को वापस कर दिया और खुद लॉन में जाकर घास पर बैठ गए और इतना बड़ा स्टार जब जमीन पर बैठकर बात करने लगा तो हमें भी बहुत अच्छा लगा।
उनके इस आंखें पुरनम कर देने
वाले गीत के साथ अलविदा
*तुमको खुश देख कर मैं बहुत खुश हुआ, ये आंख भर आई तो फिर क्या हुआ, फिर क्या हुआ*।
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