आज के बस्तर का सच
रविवार, 18 अप्रैल 2010
तस्वीर एक- बस्तर अंचल के नारायणपुर में एक सज्जन मिहिर कुमार रात्रि में 10 बजे परेशान हो कर सड़क पर भटक रहे हैं| वजह है- उनके बीमार परिजन को तत्काल किसी वाहन से रायपुर ले जाए जाने की जरुरत है मगर इतनी रात में कोई भी टैक्सी-वाला या कोई वाहन-चालक नक्सली खौफ के कारण रात में जंगल से गुजरना नहीं चाहता|
तस्वीर दो- अबूझमाड़ बस्तर का दुर्गम इलाका जो नितांत घने जंगलों से ढका है, वहाँ आजादी के पिछले 63 सालों से राजस्व सर्वे नहीं हो सका है| वजह है कि कोई भी कर्मचारी नक्सलियों के इस दुर्ग में घुसने की हिमाकत नहीं कर पाया है|
तस्वीर तीन- सुकमा निवासी गोपन्ना (बदला हुआ नाम)पिछले तीन सालों से इस शहर से उस शहर मारा - मारा फिर रहा है और अपने गाँव नहीं जाना चाहता है | उसका कुसूर यह है कि कच्ची उम्र में उसके संपर्क कुछ हथियारबंद लोगों से हो गए थे जो नक्सली थे| इसकी भनक पुलिस को लग गयी| अब "वे" उससे मुखबिरी कराना चाहते हैं और वह जानता है कि दादा लोगों ( नक्सली इलाके में इसी नाम से जाने जाते हैं) से गद्दारी का मतलब है - सिर कलम|
आज के बस्तर का यही सच है | सुरम्य वादियों में अब धमाके गूँज रहे हैं और लाल सलाम बोल -बोल कर काबिज हुए लड़ाकों ने बस्तर की धरती को रक्त से लाल कर दिया है| इलाके में आप जाएं तो हरित दृश्य और झूमते हुए साल वनों से ढकी पहाड़ियां आपका मन मोह सकती हैं बशर्ते बताया न जाए कि दंतेवाडा भी यही इसी इलाके में है | दंतेवाडा में पिछले तीन वर्षों से इतनी मौतें हो रही हैं कि इतनी मौतें जम्मू कश्मीर और नार्थ ईस्ट में भी नहीं हो रही हैं|
पुराने पत्रकार बताते हैं कि 70 के दशक की समाप्ति के बाद जब कुछ तेंदुपत्ता व्यापारियों ने लोकल गुंडई रोकने के लिए आंध्र प्रदेश से कुछ दादा टाईप लोग बुलाए थे|लठैतों के इस गैंग ने धीरे -धीरे इलाके में इतना रसूख जमा लिया कि बाकायदा उनके दलम बन गए और इस संस्कृति को बढ़त मिली वारंगल और खम्मम (आंध्र प्रदेश ) के दादा लोगों से जो पूरे उफान पर थे| इलाके का रिवाज और दस्तूर काफी हद तक तेलंगाना के लोगों से मिलता है| दंतेवाडा खम्मम और वारंगल के समीप भी है| आज हालात यह हैं कि 100 जवान बस्तर में घुसते हैं तो उनसे भिड़ने के लिए एक हजार नक्सली जमा हो जाते हैं| ये नक्सली कौन हैं? इलाके के बेरोजगार और पूरी तरह से दीक्षित -प्रशिक्षित आदिवासी युवक जिनमे युवतियां भी शामिल हैं, वे बंदूकें उठाए "क्रान्ति"(?) कर रहे हैं| क्रान्ति के सब्जबाग में बस्तर की शान्ति ख़त्म हो गयी है| जन मिलीशिया,मिलिट्री दलम और संघम सदस्य के रूप में नक्सली बस्तर के अर्थ तंत्र में घुसपैठ कर चुके हैं| उनका घोषित लक्ष्य है अलग दंडकारन्य राज्य की स्थापना| वे विज्ञप्तियां जारी करते हैं और एक समानांतर सरकार चलाते हैं|उनका अपना क़ानून है| वे जन अदालत लगा कर खुलेआम सुनवाई करते है और तुरंत सजा देते हैं| महिला नक्सलियों की तादाद भी बढी है| 6 अप्रेल को 76 जवानों के मारे जाने की जो घटना हुई उसमे महिला नक्सली भी शामिल रही हैं| बस्तर में सलवा जुडूम (शान्ति के लिए जन जुड़ाव ) आन्दोलन खूब चला लेकिन नक्सली इसे कुचलने में सफल रहे| मगर इसके बाद नक्सलियों ने आदिवासियों को भी मारने से गुरेज नहीं किया जिनकी रक्षा का वे दम भरते रहे हैं|
बस्तर / एक नजर
# 10 हजार 329 वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में फैले दंतेवाडा में साक्षरता दर 30 फीसदी है| नक्सलियों ने बीते वर्षों में 74 स्कूल भवन उड़ा दिए| 15 आँगनबाडी केन्द्रों को ध्वस्त कर दिया | 72 सड़कें खोद दी और 128 स्कूलों को पूरी तरह से बंद करा दिया| नक्सलियों का तर्क है कि यहाँ आकर पुलिस के जवान ठहरते हैं|
# पिछले कुछ वर्षों में नक्सली हमलों में सार्वजनिक संपत्ति के नुक्सान की घटनाओं में पांच हजार करोड़ रुपयों के का आकलन है| सरकारें सुरक्षा के नाम पर जितना व्यय कर रही हैं उससे बस्तर का काया-कल्प हो सकता है|
# नक्सली आतंक के कारण 1660 किलोमीटर सड़क नहीं बन पा रही है| 146 सड़कों का काम हाथ में लेने से ठेकेदारों ने साफ़ मना कर दिया है| सुकमा - कोंटा समेत 329 सड़कों का काम ठप पडा है|
6 comments:
रमेश जी बेहत कॉम्प्रिहेंसिव रिपोर्ट है। बचेली में मेरे घर के ठीक सामने से जंगल आरंभ होता है। एक समय था जब अपकी कॉपी किताबें उठाये घने जंगल में दूर किसी नाले के किनार जा कर निश्चिंत बैठ जाया करते थे और टपकते हुए महुओं के संगीत में मिट्टी किताबों में ध्यान लगाने की सहूलियत देती थी। अब बस "कुछ" सडके अपनी रह गयी हैं और मिट्टी और जंगल आतंकियों नें कब्जा लिये।
बस्तर एक नजर शीर्षक से आपने कुछ विन्दु दर्शाये हैं इन पर कोई चर्चा नहीं करता। वस्तुत: नक्सली आतंकवाद के प्रोपेगेंडा कर्ता जिन बुनियादी सुविधायों के न होने की दुहाई देते हैं उसके असली दुश्मन तो ये "दादा" लोग ही हैं।
आभार।
बहुत शानदार रिपोर्ट...सत्य को सामने लाती..."
आंदोलन जनता का था और अब आंदोलन गलत दिशा में मुड़ गया है, सरकार को अब इनके प्रति इतनी नर्मी नहीं दिखाना चाहिये और कड़ाई से पेश आना चाहिये।
प्रकृति के प्रेमी हैं हम, और कभी विद्यालय की पाठ्य पुस्तक में बस्तर अबूझमाड़ के बारे में पढ़ा था, पर आज यह सब जानकर बहुत दुख होता है, काश कि हम कभी इस प्रकृति के दर्शन कर पायें।
shandar rapat.
no doubt.
आंकड़े सहित बस्तर का दर्द समेटने के लिए साधुवाद आपको.
पंकज झा.
....prabhaavashaali abhivyakti !!!
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