पीपली लाईव मानिकपुरी
गुरुवार, 26 अगस्त 2010
आमिर खान की ताजा हिट फिल्म पीपली लाईव के कलाकार नत्था के रूप में सराहे जा रहे ओंकारदास मानिकपुरी अब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं और वे जिस शहर से हैं उस शहर में कलाकार पैदा करने की कुव्वत का दुनिया लोहा मान रही है| छत्तीसगढ़ का चंडीगढ़ कह सकते हैंभिलाई को जहां से मानिकपुरी आते हैं| प्रख्यात पंडवानी गायिका तीजन बाई भी भिलाई से ही हैं| अनुराग बासु और दीगर अनेक कलाकार-फनकार इस्पात भूमि से तप कर निकले हैं| यह गौरव की बात है| महंगाई डायन ने फिल्म को जबरदस्त पब्लिसिटी दे कर नत्था को घर घर में पहचान दिला दी है|
फिल्म में काम करने के एवज में दो लाख रूपये मिले थे जो खर्च हो चुके हैं| आमिर को इस फिल्म से ज्यादा उम्मीदें नहीं थी लिहाजा उनने कम बजट की फिल्म बनाई थी लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने नत्था को एक लाख रूपये दे कर सम्मानित किया है| यह सम्मान नत्था को स्वयम मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने प्रदान किया और शायद अब संस्कृति विभाग और भी कोई मदद करे| प्रेस क्लब-रायपुर ने भी नत्था को सम्मनित किया।
पीपली लाइव ने महंगाई और किसानों की गंभीर समस्या पर संवेदनाओं को जगाने का प्रयास किया है। 'पीपली लाइव' रिलीज हो चुकी है। फिल्म ने रिलीज से पहले ही अपनी लागत से अधिक कमाई कर ली है।
नत्था उर्फ़ ओंकार दास मानिक पुरी रायपुर एयरपोर्ट पर उतरे तो शहर भर के प्रशंसकों का हुजूम उनके स्वागत के लिए उमड़ पडा |नत्था का रोल पहले खुद आमिर करने वाले थे मगर वे जब आमिर से मिले और आडिशन दिया तो उनको चयनित कर लिया गया| मानिकपुरी ने अपने समय के विख्यात रंग निदेशक हबीब तनवीर के साथ भी काम किया है| मानिकपुरी को इस बात की कोई शिकायत नहीं है कि उन्हें दो लाख रुपए ही मिले हैं, वे तो निहाल हैं कि उन्हें आमिर खान जैसे बड़े कलाकार फिल्म में काम करने का मौका मिला। भिलाई में नत्था की माँ मजदूरी करती हैं और वे खुद भी मजदूरी करते रहे हैं| उनका कच्चा सा घर अब लोगों से भरा रहता है और नत्था का क्रेज इतना है कि वे जहां भी जाते हैं लोग उनको घेर लेते हैं| लोग उन्हें नत्था के नाम से ही ज्यादा जानते हैं। हाल ही में वे अपने गृहग्राम वृंदानगर गए तो लोगों ने उनका जबरदस्त स्वागत किया। उन्हें पलकों पर धर लिया। सभी उनकी झलक पाने के लिए बेताब थे। जिस स्कूल में उन्होंने प्राइमरी तक की पढ़ाई की थी उसी स्कूल में उनका सम्मान किया गया। ओंकारदास के प्रति लोगों के प्यार को देखते हुए उनकी माँ गुलाब बाई, पत्नी शिवकुमारी, बेटी चुमेश्वरी, गीतांजलि और बेटे देवेंद्र दास की आँखों से आँसू छलक पड़े। खुद ओंकारदास भी अपने आँसुओं को रोक नहीं पाए।
ओंकारदास के लिए सफलता की राहें बहुत कठिन रही हैं | वे कई रातों को भूखे भी सोए| लेकिन अभिनय के प्रति उनकी लगन सच्ची रही और अब वे कला की नई राहों पर बढ़ चले हैं | वे अब अच्छी स्क्रिप्ट की तलाश में हैं और शुभकामना दी जाए कि उनको आगे भी अच्छी फ़िल्में हासिल होंगी|
10 comments:
फिल्म देखि नहीं है अभी ..जानकारी के लिए शुक्रिया ..लगता है अब देखनी ही होगी.
अभी मैने भी फ़िल्म नहीं देखी है, इंतजार कर रहा हूँ कि आदरणीय रमेश शर्मा जी इस यायावर को बु्लाएं फ़िल्म देखने के लिए। बहुत दिन भी हो गए शर्मा जी से मिले। कहीं आपको मिलें तो हमारा संदेश पहुंचा दिजिएगा।
अभी तक खेगसी भी नहीं पहुंची है,मैं इतंजार कर रहा था।
शेष शुभ
अभी मैने भी फ़िल्म नहीं देखी है, इंतजार कर रहा हूँ कि आदरणीय रमेश शर्मा जी इस यायावर को बु्लाएं फ़िल्म देखने के लिए। बहुत दिन भी हो गए शर्मा जी से मिले। कहीं आपको मिलें तो हमारा संदेश पहुंचा दिजिएगा।
अभी तक खेगसी भी नहीं पहुंची है,मैं इतंजार कर रहा था।
शेष शुभ
फिल्म के पीछे अंधेर की कहानी आपने बयां की.......
अच्छी रिपोर्ट लिखी है. बधाई ...
आज नत्था की पूछ परख बढ़ गई है। स्वाभाविक भी है। उसकी यह पूछ परख तब होती जब आमिर खान ने भोपाल 90 कलाकारों के बीच से चुना था, तब ज्यादा अच्छा होता। यह भी सच है कि तब पूछ-परख हो जाती तो शायद नत्था इस मुकाम तक शायद न पहुँच पाता। लेकिन तब भी बात तो बड़ी थी ही। यह बात ज्यादा उल्लेखनीय है उसकी आज की सफलता से। वैसे नत्था की सफलता को देखकर कहा जा सकता है कि जिसका अभिनंदन आज सूरज कर रहा है उसने जाने कितनी रातें आँखों ही आँखों में काटी होगी।
यह अवसर कलाकार के जीवन में दोबारा और बारंबार आए, ताकि उसे सम्मान मिलता रहे, सम्मान की गोहार न लगानी पड़े.
फिल्म अभी देखी नहीं है .इसलिए ' नत्था ' के अभिनय के बारे में
कुछ नहीं कह पाऊंगा, फिर भी नत्था जी ने अपने संघर्ष अपनी
मेहनत और अपनी शोहरत से देश-विदेश में छत्तीसगढ़ का नाम
ऊंचा किया है , यह निश्चित रूप से बहुत बड़ी बात है,लेकिन
आपके आलेख के आधार पर मुझे यह कहना है कि ओंकार दास
को 'नत्था ' बनाने में और कामयाबी के इस मुकाम तक पहुंचाने में
हबीब तनवीर और आमिर खान जैसी हस्तियों का बहुत बड़ा योगदान है
.अगर खोजें तो छत्तीसगढ़ के गाँव-गाँव में ' नत्था ' मिलेंगे ,लेकिन दिक्कत यह है
कि उन्हें हबीब तनवीर और आमिर खान जैसे कला -पारखी नहीं मिल पते.
.
बहुत सुन्दर धन्यवाद
उम्दा प्रस्तूति-आभार
पढिए एक कहानी
आपके ब्लॉग की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर-स्वागत है।
iss film ko dekhanaahai. achchhi charchaa. lalit sharmake sath hamlog dekhenge..
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