लता मंगेशकर और अशक्त बच्चे
रविवार, 25 सितंबर 2011
गीतों की कोई महफ़िल सजी हो तो अमूमन मै उसमे जरूर समय पर जा धमकता हू. पुराने गीत अपनी तरफ खींचते हैं और यह आज तक समझ नही आया कि जितनी बार भी सुना जाए मन नही भरता और फिर फिर सुन कर भी बोरियत नही लगती. मौक़ा था सुरों की साम्राज्ञी लता मंगेशकरजी के ८२वें जन्मदिवस के मौके पर उनको भावभीने गीतों में जरिये याद करके उस सुहाने पुराने दौर में लौटने का जिसकी सुरमयी शाम बाकायदा सजी और श्रोताओं में बड़े-बड़े लोग गीतों की फुहारों से तृप्त होते रहे।
शहीद सभागार रायपुर में लताजी के नगमों की गीतों भरी वो शाम एक अनूठे अंदाज में मनी जिसे हम किसी से कम नही समझे जाने वाले अशक्त बच्चों ने अपने सुरों के जरिये एक यादगार शाम बना दिया.
इस कार्यक्रम का आयोजन नेचर्स केयर एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी ने किया जिसमे विशेष अतिथि श्रीमती वीणा सिंह, महापौर किरणमयी नायक, सभापति संजय श्रीवास्तव, संस्कृति विभाग के संचालक नरेन्द्र शुक्ल इत्यादि न सिर्फ शरीक हुए बल्कि बच्चों का हौसला बढ़ाने देर तक जमे रहे. सफल सरस संचालन सुश्री गांगुली ने किया. संयोजिका डा. विनीता पाण्डेय की मेहनत रंग लाई जिनकी एक पंक्ति ने श्रीताओं की खूब सराहना पाई, उनका कहना था की उन्हें निशक्त शब्द बहुत चुभता है और ये बच्चे कहीं से भी अशक्त नही हैं . बस जरुरत है उनको प्रोत्साहन की, आगे बढाने की. कई दिन रिहर्सल करके सबको मंच के मुकाबले के लिए तैयार करने में घर वालों, साजिंदे और आयोजक सबने अथक मेहनत की . इन बच्चों ने नृत्य और गीत की अभिनव प्रस्तुति दी।
ब्लाइंड स्कूल की तेजल ने फूलों का तारों का सबका कहना है...गाया तो सब की आंखें नम हो आईं. ऐसे और कई कलाकार मंच पर आकर माईक सम्हाले जब सधी हुई आवाज में गीत गाते तो अंत में तालियों की गड़गड़ाहट से माहौल गूंज उठता.
अनेक कार्यक्रमों में शरीक हो कर नाम कमा चुकी चार वर्षीय नन्ही पलक तिवारी ने सजीव नृत्य किया और प्रज्ञा श्रीवास्तव ने बंइया न धरो...पर अनूठी प्रस्तुति दी। सारिका के गीत रात का समां ने सचमुच समां बांध दिया . दसवीं की छात्रा मेघा पिल्लई गीत और डांस दोनों में सटीक रहीं । सारिका व जितेन्द्र मिश्रा ने परदेसिया ये सच है पिया... और सारिका व मनोज अग्रवाल ने हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से... पेश किया। सरिता ने नैनो में बदरा छाए गाया और अर्पणा ने आजकल पॉंव जमीन पर नहीं पड़ते...गीत पेश किया और खूब दाद पाई । अनोखी प्रतिभा के धनी डा. गौतम देवनानी जब मंच पर आए और सुरीली तान छेड़ी तो सभी हकबक रह गए. डा. देवनानी को महारत हासिल है कि वे लता की हूबहू नक़ल कर लेते हैं . उद्घोषिका ने परिचय दिया तो यकीन नही हुआ मगर जब जब उन्होंने दो रास्ते फिल्म के गाने की बिंदिया चमकाई तो सभागार हर्ष ध्वनि से गूंज उठा.
सोलह बरस की बाली उम्र को सलाम वाला दिलकश आवाज में पेश हुआ गाना जब ख़त्म हुआ तो राज छबिगृह के पुराने मैनेजर जोशीजी भावुक हो गए .मंच के समीप आ कर उन्होंने गायिका के पांव छू कर अनूठी दाद दी. गीत ने रस घोला था, एक दूजे के लिए फिल्म उनके थिएटर में लगी थी और कई दिनों तक चली थी.
डा विनीता के इस प्रयास पर उनके साथ कार्यक्रम को सफलता के मुकाम तक लाने में जुटे अशोक मिश्रा ने कहा कि वे लगातार अकेले डटी रहीं और सारा बीड़ा अकेले उठाया है. कार्यक्रम में जाने की एक और ललक उस निमंत्रण ने पैदा की जिसने मुझे अभिभूत किया और मै अंत तक जमा रहा जबकि अधिकांश लोग जा चुके थे. वजह बने वे बच्चे जिनको कुदरत ने पूरी तवज्जो नही दी लिहाजा उनमे कोई ना कोई कमी रह गयी, ऐसे बच्चे जब कुछ करते हैं तो उनको प्रोत्साहन स्वरुप ही कार्यक्रम में जाना चाहिए और हौसला-आफजाई करनी चाहिए यह तो मूल भावना थी जिसके चलते मैं गया मगर असलियत यह है कि मै ऐसे कार्यक्रम में कई बार जब बिन बुलाए पहुच जाता हू तो किसी पीछे की सीट पर जम जाता हूं , चाहता हूं कि मुझे कोई ना पहचाने, डिस्टर्ब ना करे. शायद इसकी वजह यह हो सकती है कि मै पपी-एज के शुरुआती दौर का असफल कलाकार तो रहा ही हूं मगर कला से श्रोता वाला नाता अब भी इस रूप में है कि कई बार चिर परिचित गीत-संगीत की लय मेरे सारे दुःख-दर्द भुला कर मुझे नई ऊर्जा से लबरेज भी कर देती है जो मुझे बिन मांगी सलाह देते हुए लगता है यह युक्ति तनाव-नाशी गोली खाने वालों को भी एक बार तो आजमानी चाहिए.
शहीद सभागार रायपुर में लताजी के नगमों की गीतों भरी वो शाम एक अनूठे अंदाज में मनी जिसे हम किसी से कम नही समझे जाने वाले अशक्त बच्चों ने अपने सुरों के जरिये एक यादगार शाम बना दिया.
इस कार्यक्रम का आयोजन नेचर्स केयर एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी ने किया जिसमे विशेष अतिथि श्रीमती वीणा सिंह, महापौर किरणमयी नायक, सभापति संजय श्रीवास्तव, संस्कृति विभाग के संचालक नरेन्द्र शुक्ल इत्यादि न सिर्फ शरीक हुए बल्कि बच्चों का हौसला बढ़ाने देर तक जमे रहे. सफल सरस संचालन सुश्री गांगुली ने किया. संयोजिका डा. विनीता पाण्डेय की मेहनत रंग लाई जिनकी एक पंक्ति ने श्रीताओं की खूब सराहना पाई, उनका कहना था की उन्हें निशक्त शब्द बहुत चुभता है और ये बच्चे कहीं से भी अशक्त नही हैं . बस जरुरत है उनको प्रोत्साहन की, आगे बढाने की. कई दिन रिहर्सल करके सबको मंच के मुकाबले के लिए तैयार करने में घर वालों, साजिंदे और आयोजक सबने अथक मेहनत की . इन बच्चों ने नृत्य और गीत की अभिनव प्रस्तुति दी।
ब्लाइंड स्कूल की तेजल ने फूलों का तारों का सबका कहना है...गाया तो सब की आंखें नम हो आईं. ऐसे और कई कलाकार मंच पर आकर माईक सम्हाले जब सधी हुई आवाज में गीत गाते तो अंत में तालियों की गड़गड़ाहट से माहौल गूंज उठता.
अनेक कार्यक्रमों में शरीक हो कर नाम कमा चुकी चार वर्षीय नन्ही पलक तिवारी ने सजीव नृत्य किया और प्रज्ञा श्रीवास्तव ने बंइया न धरो...पर अनूठी प्रस्तुति दी। सारिका के गीत रात का समां ने सचमुच समां बांध दिया . दसवीं की छात्रा मेघा पिल्लई गीत और डांस दोनों में सटीक रहीं । सारिका व जितेन्द्र मिश्रा ने परदेसिया ये सच है पिया... और सारिका व मनोज अग्रवाल ने हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से... पेश किया। सरिता ने नैनो में बदरा छाए गाया और अर्पणा ने आजकल पॉंव जमीन पर नहीं पड़ते...गीत पेश किया और खूब दाद पाई । अनोखी प्रतिभा के धनी डा. गौतम देवनानी जब मंच पर आए और सुरीली तान छेड़ी तो सभी हकबक रह गए. डा. देवनानी को महारत हासिल है कि वे लता की हूबहू नक़ल कर लेते हैं . उद्घोषिका ने परिचय दिया तो यकीन नही हुआ मगर जब जब उन्होंने दो रास्ते फिल्म के गाने की बिंदिया चमकाई तो सभागार हर्ष ध्वनि से गूंज उठा.
सोलह बरस की बाली उम्र को सलाम वाला दिलकश आवाज में पेश हुआ गाना जब ख़त्म हुआ तो राज छबिगृह के पुराने मैनेजर जोशीजी भावुक हो गए .मंच के समीप आ कर उन्होंने गायिका के पांव छू कर अनूठी दाद दी. गीत ने रस घोला था, एक दूजे के लिए फिल्म उनके थिएटर में लगी थी और कई दिनों तक चली थी.
डा विनीता के इस प्रयास पर उनके साथ कार्यक्रम को सफलता के मुकाम तक लाने में जुटे अशोक मिश्रा ने कहा कि वे लगातार अकेले डटी रहीं और सारा बीड़ा अकेले उठाया है. कार्यक्रम में जाने की एक और ललक उस निमंत्रण ने पैदा की जिसने मुझे अभिभूत किया और मै अंत तक जमा रहा जबकि अधिकांश लोग जा चुके थे. वजह बने वे बच्चे जिनको कुदरत ने पूरी तवज्जो नही दी लिहाजा उनमे कोई ना कोई कमी रह गयी, ऐसे बच्चे जब कुछ करते हैं तो उनको प्रोत्साहन स्वरुप ही कार्यक्रम में जाना चाहिए और हौसला-आफजाई करनी चाहिए यह तो मूल भावना थी जिसके चलते मैं गया मगर असलियत यह है कि मै ऐसे कार्यक्रम में कई बार जब बिन बुलाए पहुच जाता हू तो किसी पीछे की सीट पर जम जाता हूं , चाहता हूं कि मुझे कोई ना पहचाने, डिस्टर्ब ना करे. शायद इसकी वजह यह हो सकती है कि मै पपी-एज के शुरुआती दौर का असफल कलाकार तो रहा ही हूं मगर कला से श्रोता वाला नाता अब भी इस रूप में है कि कई बार चिर परिचित गीत-संगीत की लय मेरे सारे दुःख-दर्द भुला कर मुझे नई ऊर्जा से लबरेज भी कर देती है जो मुझे बिन मांगी सलाह देते हुए लगता है यह युक्ति तनाव-नाशी गोली खाने वालों को भी एक बार तो आजमानी चाहिए.
4 comments:
मानवीय संवेदनाओं से भरपूर शानदार कार्यक्रम पर आपका यह आलेख भी वाकई शानदार है. कृपया बधाई स्वीकारें . निःशक्त बच्चों की नैसर्गिक प्रतिभा को पहचान कर उनका हौसला बढ़ाने के लिए ऐसे कार्यक्रम हर जगह होने चाहिए. रायपुर में आयोजित इस कार्यक्रम के लिए आयोजक भी हार्दिक बधाई के पात्र हैं .
marmsparshee rapat....'apnang'' naheen, ''nihshakt'' kahanaa uchit hoga.
nihshak kahne se bhee mujhe peedaa hai magar kyaa kahu.. shayad wahi kahu jo aap kah rahe hain. magar un bachcho ko dekh kar laga ki sahi salamat logo ko nishakt likhna jyada uchit hai thanks SIRJI for alert me
RAMESH SHARMA
स्वर कोकिला के 82 वें जन्म दिन में आयोजित कार्यक्रम पर आपका आलेख बहुत शानदार एवं जानदार है . वाकई आप बहुत अच्छा लिखते है .बधाई .
नवरात्रि पर्व की आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
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