बचे हैं सिर्फ 23 बाघ

सोमवार, 21 नवंबर 2011

दुनिया भर में पशु-चर्म , नख और हड्डी के सौदागरों ने अनमोल वन्य जीवों का जीना दूभर कर दिया है. नवम्बर का महीना छत्तीसगढ़ के जंगल से बुरी ख़बरें ले कर आया है . एक बाघिन की मौत से वन्यजीव प्रेमी उबर नहीं पाए थे कि शनिवार को सरगुजा इलाके से दो हाथियों की भी मौत की खबर ने एक और झटका दे दिया. इससे पहले एक बाघिन को पीट-पीट कर मार डालने की घटना ने राज्य के वन विभाग की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए थे.
बीते दिनों लालची लोगों ने एक बाघिन को मौत के घट उतार दिया. जांच में पता चला कि जो रक्षक था वही भक्षक बन गया. भोरमदेव अभयारण्य में बाघिन की निर्मम हत्या के आरोप में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है. पास गाय की लाश बरामद हुई है, जिसे जहर देकर मारने की पुष्टि हुई है. मामला उलझा हुआ है. विभागीय अधिकारियों की लापरवाही सामने आई है। जांच करने अधिकारियों की टीम गठित की गयी है. बाघिन के शव का पोस्टमार्टम करने वाले नंदनवन के वन्य प्राणी चिकित्सक के अनुसार गोली लगने से मौत हुई है.
बाघिन के दांत, मूंछ व नाखून भी गायब हैं। यह बताता है कि प्रदेश में तस्करों का जाल फैला हुआ है और वन्य जीवों का अवैध शिकार हो रहा है।
चिंता की बात है कि अब छत्तीसगढ़ में अब सिर्फ 23 बाघ ही बचे हैं.
आंकड़ों के मुताबिक़ प्रदेश के 13 अभ्यारण्यों एवं राष्ट्रीय उद्यानों में पिछले सात महीनों में अब तक 60 वन्य जीव रहस्यमय तरीके से मारे गए हैं। यह सचमुच चिंता की बात है.
अब धरमजयगढ़ के जंगल से ताजा खबर है- एक हाथी करंट की चपेट में आकर मर गया, दूसरे की दक्षिण सरगुजा में कीटनाशक खाने से हो मौत गई. इन मौतों में इलाके के में ग्रामीणों का हाथ होने की आशंका है. मौत के बाद बाकी हाथी रातभर चिंघाड़ते रहे. सूचना पर डीएफओ एस.जगदीशन दल-बल सहित घटनास्थल पहुंचे और पोस्टमार्टम के बाद मृत हाथी को दफना दिया गया.इसी तरह छाल वन परिक्षेत्र अंतर्गत बड़काखार के जंगल में एक 40 वर्ष के हाथी की मौत हो गयी जो जंगली सुअर के लिए बिछाए गए विद्युत प्रवाहित तार की चपेट में आ गया था. इस बारे में वन मंडाधिकारी, धरमजयगढ़ एस.पी. मसीह का कहना है शव का परीक्षण कराया गया है और मामले की जांच की जा रही है.

ये घटनाएं बता रही हैं कि कोई भी इलाका जंगली जानवरों के लिए महफूज नहीं है और वन महकमा उनकी सुरक्षा में नितांत असफल रहा है.
इससे पहले राजनांदगांव जिले के कहाड़कसा ग्राम में 7 नवम्बर को बायसन की, छुरिया के बखरूटोला में 24 सितम्बर को बाघिन की हत्या हुई थी.गांवों के लोगों ने 24 सितंबर को राजनांदगांव छुरिया के करीब बखरूटोला में दो माह से भटक रही एक बेजुबान बाघिन को पीट-पीटकर मार डाला था जबकि वह वह जाल में फंस गई थी. फिर भी जाल में फंसी बाघिन को वन विभाग के अधिकारियों और पुलिस कर्मियों के सामने ही मौत के घाट उतार दिया गया. मुख्यमंत्री रमन सिंह ने राजनांदगांव में भीड द्वारा बाघिन को मारे जाने की घटना के बुधवार को जांच के आदेश दिए थे. इस घटना के बाद नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) की ओर से गठित हाई पॉवर कमेटी ने जो रिपोर्ट दी उसमे साफ़ संकेत हैं कि बाघिन की मौत के लिए महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के वन विभाग को संयुक्त रूप से जिम्मेदार रहे हैं. घटना के बाद सामने आया कि गोंदिया मंडल ने बाघिन को घायल होने के बाद दो महीने तक पिंजरे में रखकर इलाज किया। उसके बाद रिसर्च रिपोर्टो और खुद एनटीसीए की गाइडलाइंस को दरकिनार कर बाघिन को एकदम नए इलाके के खुले जंगल में छोड़ा गया। राजनांदगांव वन मंडल ने बाघिन को जिंदा पकड़ने के लिए पुख्ता इंतजाम नहीं किए। वन मुख्यालय के अफसरों ने सही समय पर उचित निर्देश नहीं दिए.एनटीसीए के असिस्टेंट इंस्पेक्टर जनरल संजय पाठक के नेतृत्व में बनी जांच कमेटी ने जांच की. जांच में महाराष्ट्र वन मंडल के एक अधिकारी, पीसीएफ टीआर टाम्टा और डब्लडब्लूएफ की प्रतिनिधि नेहा सेमुअल भाग लिय़ा था.
जिस बाघिन को लोगों ने मारा उसे लेकर बयान हैं कि यह बाघिन एक माह से क्षेत्र में दहशत बन आ गई थी मगर वह ऐसी क्यों थी ? निरंतर कम हो रहे वन्य जीव प्रागैतिहासिक आवासों की कमी ही दूनिया भर में मुख्य कारण है.अब कोई "उसके" घर को ही छीन लेगा तो जानवर क्या करेगा? जो जंगल का क़ानून जानते हैं वे जानते हैं कि जंगल में एक ही क़ानून चलता है और वह है जो आपको दुखी करे उसे दुखी करो.इसी लिए दुखी जानवर कभी आदमखोर हो रहे हैं और कभी आए दिन रायपुर की सीमावर्ती डब्ल्यू आर एस कालोनी में भटकते पाए जा रहे हैं.

अन्य राज्यों में भी बाघ और दीगर पशु दुर्घटनाओं में भी मारे जा रहे हैं . 30 जुलाई को दुधवा नॅशनल पार्क के किशनपुर के जंगल भीरा- मेलानी रोड पर रात में वाहन की टक्कर से तीन साल की किशोर बाघिन की दर्दनाक मौत हो गयी थी. इसी तरह 8 जून को कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत कालागढ़ रेंज में एक और बाघिन की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गईथी. मतलब साफ़ है वन्य जीव निशाने पर हैं. उनको बचाने की किसी को चिंता है भी तो वह कारगर नहीं हो पा रही है,

छत्तीसगढ़ राज्य में केंद्र सरकार की हाथी कारीडोर, हाथी उद्यान योजना , टाइगर रिजर्व योजना अधर में है, तीनों टाइगर रिजर्व में 50 प्रतिशत पड़ रिक्त पड़े हैं और फील्ड अधिकारी के पद भी भर नहीं पाए हैं.
जिस प्रदेश की प्रतिष्ठा ही जंगल से से जुड़ी हो, उस प्रदेश में वन्य जीवों का इस तरह मारा जाना शर्मिंदगी पैदा करता है और अगर यह सवाल है तो चिंता सिर्फ सरकार ही नहीं समाज को भी करनी चाहिए.

5 comments:

SANDEEP PANWAR 21 नवंबर 2011 को 7:40 am बजे  

वो दिन दूर नहीं जब सिर्फ़ दो टाँग वाले रहेंगे

केवल राम 29 नवंबर 2011 को 8:25 am बजे  

चिंता का सबब है ....!

sangita 30 नवंबर 2011 को 1:30 am बजे  

aapka aabhar ki aapne mere blog me aa kar mera hosalaa bdhaya..........
yadi ham vakai men janglon se pyar karte haen to hamen sthaniya vikalp par dhyan dena hoga aur manviya aavashyaktaon ko seemit karna hoga...

DUSK-DRIZZLE 9 दिसंबर 2011 को 7:07 am बजे  

THERE IS NO TIGER... IT IS BIG QUESTION WHO CAN SAVE THE TIGER IN THE FOREST. IT IS TOWERING SUBJECT THAT IS PEND BY YOU AND IT WOULD BE ITCHED IN MY MIND.
SANJAY VARMA

DUSK-DRIZZLE 9 दिसंबर 2011 को 7:09 am बजे  

THERE IS NO TIGER... IT IS BIG QUESTION WHO CAN SAVE THE TIGER IN THE FOREST. IT IS TOWERING SUBJECT THAT IS PEND BY YOU AND IT WOULD BE ITCHED IN MY MIND.
SANJAY VARMA

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