काल तुझसे होड़ है मेरी...
मंगलवार, 27 दिसंबर 2011
कविता श्रद्धांजलि//आलोक तोमरजी
जानता हूं चल रही है
मेरी तुम्हारी दौड़
मेरे जन्म से ही
मेरे हर मंगल गान में
तुमने रखा है ध्यान में
एक स्वर लहरी,
शोक की रह जाए
आपके दूत मुझसे मिलें हर मोड़ पर
और जीवन का बड़ा सच
चोट दें, कह जाएं
सारे स्वप्न, सारी कामनाएं, आसक्तियां
तुम्हारे काल जल में बह जाएं
लेकिन अनाड़ी भी हूंअनूठा भी, किंतु
तुम्हारी चाल से रूठा भी
काल की शतरंज से कभी जुड़ा
और एक पल टूटा भी
तुम सृष्टि के पीछे लगाते दौड़
देते शाप और वरदान
और प्रभंजन, अप्रतिहत
चल रही है
दौड़ तुमसे मेरी
ए अहेरी
काल, तुझसे होड़ है मेरी..... -आलोक तोमर
(स्वर्गीय आलोकजी ने यह कविता स्वयं लिखी थी// जन्म-दिन-27 दिसंबर)
4 comments:
अलोक जी को विनर्म नमन. उनकी यह दुर्लभ रचना यहाँ बांटने का शुक्रिया.
Aalok ji ko shraddhaa suman arpit hai... dinesh thakkar, bilaaspur,cg.
निर्भीक पत्रकारिता के अनूठे मानदंड प्रतिस्थापित करने वाले कलम के जांबाज सिपाही आलोक जी को शत शत नमन. उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित हैं. उनके शब्दार्थ नयी पीढी के पत्रकारों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हैं. प्रबुद्ध यायावर रमेश भाई, आपका यह ब्लॉग आकर्षक , पठनीय और जानकारी बढाने वाला है. आप बधाई के पात्र हैं. आज पहली बार मैंने आपके ब्लाग पर विचरण किया है. अपने ब्लॉग "बापा की बगिया" के जरिये आज मैं भी आपके ब्लॉग से "लिंक" हो गया हूँ. - दिनेश ठक्कर, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
VINAMRA NAMAN HAE AALOKJI KO .
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