कलाकार और भीख
शनिवार, 31 मार्च 2012
दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा
फिल्म मदर इंडिया का यह गीत आज उस कलाकार पर कितना भारी पड रहा है जिसने इस फिल्म में अपने अभिनय की चमक बिखेरी थी मगर वक्त और हालात ने उसे लखनऊ की सड़कों पर भीख मांगने के लिए मजबूर कर दिया है ..मशहूर फिल्म मदर इंडिया, पाकिजा, काला सोना जैसी फिल्मों में अभिनय कर चुके और आज लखनऊ के स्टेशन पर भीख मांगते हुए इस बुजुर्ग को अमूमन सब देख कर अनदेखा कर देते हैं. मगर जब वह चाय वाले से अंग्रेजी में चाय मांगता है तो सब हैरान होते हैं.
वो भिखारी नही है मगर भिखारी सा दिखने वाला ये शख्स जब आसमान की तरफ आंखें गड़ा कर उस सपनीले दौर की याद करता है जब नर्गिस जैसी अभिनेत्री के साथ उसने कैमरा फेस किया था तो भी लोग उसे पागल समझ लेते हैं. कलाकार..भिखारी ..जी नहीं ..वक्त का मारा हुआ इंसान और पत्थर हुए इंसानों की बस्ती में गुम इस शख्स का नाम है -संतोष खरे.खरे पैरो से लाचार हैं. जीने का कोई जरिया उनके पास नहीं है. भीख मांगना उनकी मजबूरी है.
फिल्म मेरा नाम जोकर में राजकपूर के साथ सर्कस के सहयोगी कलाकार सहित सैकड़ों फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिका निभाने वाले 70 वर्षीय संतोष खरे एक कप चाय भी मांग कर पीने के लिए विवश हैं. सैलुलाईड की रंगीन रोशनी के बाद अब मुफलिस बुढ़ापे का अन्धेरा देख रहे संतोष हजरतगंज हनुमान मंदिर के सामने बाकायदा हाथ फैला लेते हैं. यहां भी तकदीर ने उनको तंगाया. चौराहे के पास नशे में धुत्ता एक कार चालक ने टक्कर मार दी तब से वे बैसाखियों पर हैं.
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक लखनऊ में संतोष कुमार पर एक पत्रकार की नजर तब पड़ी जब उन्होंने एक चायवाले से अंग्रेजी में चाय पिलाने की गुजारिश की.फटेहाल बुजुर्ग के अंग्रेजी में मिन्नत को सुनकर पत्रकार ने जब संतोष से बात की तो उसे सुनकर सूखी आंखों से भी पानी निकल आया. 1942 में यूपी के बांदा में पोस्टमास्टर के गहर जन्मे संतोष बीकॉम हैं. नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में जूनियर आर्टिस्टके तौर पर मदर इंडिया में सुनीत दत्ता के साथ काम कर चुके हैं. दिलीप कुमार के साथ यहूदी की लड़की, मुगल-ए-आजम, कमाल अमरोही की पाकीजा सहित करीब एक हजार फिल्मों में जूनियर आर्टिस्ट की भूमिका कर सुपरहिट फिल्म गूंज उठी शहनाई में संतोष को एक बेहतरीन रोल मिला.
वे क्लासिकल डांस में माहिर संतोष ने जब पैसा था तब उन्होंने अपने भविष्य की बजाय दूसरों पर ज्यादा ध्यान दिया.उन्हें एक जूनियर आर्टिस्ट आयशा से मोहब्बत हो गई थी. शूटिंग के बाद फिल्म की यूनिट जब मुंबई लौट रही थी तो वो आयशा को रोता छोड़कर चले आए.और आयशा को अपना न बना सके तो ब्रह्मचारी बन गए। एनएफडीसी जूनियर आर्टिस्टों की मदद के लिए साढ़े चार हजार रुपए महीने की पेशन देता था लेकिन पिछले सात महीने से वो भी बंद है. उनका छोटा भाई जबलपुर रेलवे में एकाउंटेंट के पद पर है. उसे पता है कि उसके बड़े भाई का क्या हाल है मगर उस का भी दिल शायद पत्थर का है.
आपको बता दें बालीवुड में चरित्र अभिनेता की भूमिका निभाने वाले ए के हंगल भी मुफलिसी का सा जीवन जी चुके हैं.एक दर्जी से अभिनेता तक का सफर तय करने वाले हंगल इस समय अपनी दवाइयों का खर्च भी नहीं उठा पा रहे थे. हंगल की परिस्थतियों को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना सिने वर्कर्स एसोसिएशन के प्रमुख अमिया खोफकर ने उन्हें 51,000 रुपये का चेक प्रदान किया था मगर संतोष की सुध कौन लेगा? आज एक कलाकर की अनदेखी समुदाय द्वारा की जा रही है. कई अभिनेताओं के पास अरबों रुपये की सम्पत्तिा है. उन्हें अपने समुदाय के एक ऐसे महान कलाकार की याद नहीं आ रही है जिसने बॉलीवुड में फिल्मों में काम किया. उनके लिए दवाइयों या और भोजन का जुगाड़ करना भी कठिन साबित हो रहा है. अब उन्हें इस बात के लिए सोचना पड़ रहा है कि अपनी दवा की व्यवस्था करें या भोजन की. हमारी लोक मंगलकारी सरकारें और उनके मातहत संस्कृति ..उत्थान कला ..फला जैसे तमगे धरने वाले पंचतारा महकमे के मोटी खाल वाले अफसरान सुन रहे हैं जनाब ?
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा
फिल्म मदर इंडिया का यह गीत आज उस कलाकार पर कितना भारी पड रहा है जिसने इस फिल्म में अपने अभिनय की चमक बिखेरी थी मगर वक्त और हालात ने उसे लखनऊ की सड़कों पर भीख मांगने के लिए मजबूर कर दिया है ..मशहूर फिल्म मदर इंडिया, पाकिजा, काला सोना जैसी फिल्मों में अभिनय कर चुके और आज लखनऊ के स्टेशन पर भीख मांगते हुए इस बुजुर्ग को अमूमन सब देख कर अनदेखा कर देते हैं. मगर जब वह चाय वाले से अंग्रेजी में चाय मांगता है तो सब हैरान होते हैं.
वो भिखारी नही है मगर भिखारी सा दिखने वाला ये शख्स जब आसमान की तरफ आंखें गड़ा कर उस सपनीले दौर की याद करता है जब नर्गिस जैसी अभिनेत्री के साथ उसने कैमरा फेस किया था तो भी लोग उसे पागल समझ लेते हैं. कलाकार..भिखारी ..जी नहीं ..वक्त का मारा हुआ इंसान और पत्थर हुए इंसानों की बस्ती में गुम इस शख्स का नाम है -संतोष खरे.खरे पैरो से लाचार हैं. जीने का कोई जरिया उनके पास नहीं है. भीख मांगना उनकी मजबूरी है.
फिल्म मेरा नाम जोकर में राजकपूर के साथ सर्कस के सहयोगी कलाकार सहित सैकड़ों फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिका निभाने वाले 70 वर्षीय संतोष खरे एक कप चाय भी मांग कर पीने के लिए विवश हैं. सैलुलाईड की रंगीन रोशनी के बाद अब मुफलिस बुढ़ापे का अन्धेरा देख रहे संतोष हजरतगंज हनुमान मंदिर के सामने बाकायदा हाथ फैला लेते हैं. यहां भी तकदीर ने उनको तंगाया. चौराहे के पास नशे में धुत्ता एक कार चालक ने टक्कर मार दी तब से वे बैसाखियों पर हैं.
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक लखनऊ में संतोष कुमार पर एक पत्रकार की नजर तब पड़ी जब उन्होंने एक चायवाले से अंग्रेजी में चाय पिलाने की गुजारिश की.फटेहाल बुजुर्ग के अंग्रेजी में मिन्नत को सुनकर पत्रकार ने जब संतोष से बात की तो उसे सुनकर सूखी आंखों से भी पानी निकल आया. 1942 में यूपी के बांदा में पोस्टमास्टर के गहर जन्मे संतोष बीकॉम हैं. नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में जूनियर आर्टिस्टके तौर पर मदर इंडिया में सुनीत दत्ता के साथ काम कर चुके हैं. दिलीप कुमार के साथ यहूदी की लड़की, मुगल-ए-आजम, कमाल अमरोही की पाकीजा सहित करीब एक हजार फिल्मों में जूनियर आर्टिस्ट की भूमिका कर सुपरहिट फिल्म गूंज उठी शहनाई में संतोष को एक बेहतरीन रोल मिला.
वे क्लासिकल डांस में माहिर संतोष ने जब पैसा था तब उन्होंने अपने भविष्य की बजाय दूसरों पर ज्यादा ध्यान दिया.उन्हें एक जूनियर आर्टिस्ट आयशा से मोहब्बत हो गई थी. शूटिंग के बाद फिल्म की यूनिट जब मुंबई लौट रही थी तो वो आयशा को रोता छोड़कर चले आए.और आयशा को अपना न बना सके तो ब्रह्मचारी बन गए। एनएफडीसी जूनियर आर्टिस्टों की मदद के लिए साढ़े चार हजार रुपए महीने की पेशन देता था लेकिन पिछले सात महीने से वो भी बंद है. उनका छोटा भाई जबलपुर रेलवे में एकाउंटेंट के पद पर है. उसे पता है कि उसके बड़े भाई का क्या हाल है मगर उस का भी दिल शायद पत्थर का है.
आपको बता दें बालीवुड में चरित्र अभिनेता की भूमिका निभाने वाले ए के हंगल भी मुफलिसी का सा जीवन जी चुके हैं.एक दर्जी से अभिनेता तक का सफर तय करने वाले हंगल इस समय अपनी दवाइयों का खर्च भी नहीं उठा पा रहे थे. हंगल की परिस्थतियों को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना सिने वर्कर्स एसोसिएशन के प्रमुख अमिया खोफकर ने उन्हें 51,000 रुपये का चेक प्रदान किया था मगर संतोष की सुध कौन लेगा? आज एक कलाकर की अनदेखी समुदाय द्वारा की जा रही है. कई अभिनेताओं के पास अरबों रुपये की सम्पत्तिा है. उन्हें अपने समुदाय के एक ऐसे महान कलाकार की याद नहीं आ रही है जिसने बॉलीवुड में फिल्मों में काम किया. उनके लिए दवाइयों या और भोजन का जुगाड़ करना भी कठिन साबित हो रहा है. अब उन्हें इस बात के लिए सोचना पड़ रहा है कि अपनी दवा की व्यवस्था करें या भोजन की. हमारी लोक मंगलकारी सरकारें और उनके मातहत संस्कृति ..उत्थान कला ..फला जैसे तमगे धरने वाले पंचतारा महकमे के मोटी खाल वाले अफसरान सुन रहे हैं जनाब ?
1 comments:
बढिया पोस्ट…… देहात की नारी का आगाज ब्लॉग जगत में। कभी हमारे ब्लाग पर भी आईए
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