शब्द -औषधि, शब्द -घाव
शनिवार, 25 फ़रवरी 2012
शब्द संवारे बोलिए
शब्द के हाथ न पांव
एक शब्द करे औषधि
एक शब्द करे घाव
शब्दों का यह सन्दर्भ इसलिए कि लेखकों का एक वर्ग कभी कभी अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल करके हल्की टिप्पणियों से लोगों को आंदोलित कर देता है और इस तरह की अमर्यादित टिप्पणियों के कारण पूरी लेखक बिरादरी को नीचा देखना पड़ता है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी एक फैसले में कहा है कि किसी को गाली देना अथवा चिढ़ाने के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना अपराध हो सकता है, भले ही इसका इस्तेमाल सार्वजनिक स्थल पर नहीं किया गया हो.
बहुत दिन नही हुए एक प्रख्यात लेखिका ने अपनी पुस्तक में माना था कि ... जनरल डायर तो बहुत कोमल हृदय दयावान व्यक्ति था और यह घृणित नरसंहार तो तथाकथित स्वयंभू स्वतन्त्रता सेनानियों की काली करतूत था.
महिला लेखिकाओं के बारे में एक कुलपति ने अभद्रता से लबलबाती जो टिप्पणी की थी उस पर लम्बा विवाद हुआ था.
दिल्ली की एक अदालत सुपरिचित लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता अरूंधति राय को कश्मीर पर उनके लेखन के लिए फटकार भी चुकी है.
दरअसल किसी भी इलाके की एक संस्कृति होती है.. एक रिवाज होता है, रहन-सहन होता है. देश के किसी भी इलाके के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह , अन्ना और बाबा रामदेव और अन्य के आपतिजनक चित्र सोशल नेट वर्किंग साईटों में एक लम्बे समय से डाले जा रहे है , पर सरकार का ध्यान अब गया है.
हाल में सलमान रूश्दी प्रकरण में कई लेखक इतने नाराज नजर आए कि उन्होंने अमर्यादित टिप्पणी कर डाली जिसका प्रकाशन मीडिया आचार संहिता से बाहर होने के कारण नहीं किया जा सका.इन दिनों छत्तीसगढ़ में कर्नाटक की एक लेखिका की करतूत से बवाल कट रहा है और उसके खिलाफ महिला आयोग का नोटिस भी निकल गया है.
बुद्धिजीवी वर्ग में तीखी प्रतिक्रिया हुई है.जिक्र ताजा मामले का है. मामला छत्तीसगढ़ की महिलाओं को ले कर छपे एक लेख का है जिसे हिन्दू ने छापा है. छत्तीसगढ़ महिला आयोग ने अखबार को नोटिस जारी करते हुए लेखिका से जबाव-तलब किया है. अखबार के 17 फरवरी को प्रकाशित लेख पर विवाद है. लेखिका लक्ष्मी शरथ बस्तर के विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात को देखने आई थी। अपने वाहन चालक मुमताज और मार्गदर्शक टोप्पो की बातों को उन्होंने अपने यात्रावृतांत का केंद्र बनाया| एक कहानी के रूप में चटखारे लेकर बतलाया है, जिसमें एक कोई टोप्पो और दूसरा कोई मुमताज आपस में चर्चा कर रहे थे। अंगरेजी भाषानुवाद के मुताबिक लेख में कहा गया- ''स्थानीय महिलाओं ने दो पुरुषों के साथ सीता को देखा और कहा कि इसके तो दो पति हैं, सीता ने तत्क्षण व्यंग्यपूर्वक कहा, इनमें से प्रत्येक औरत के छत्तीसों (36) पति हों। मुमताज के ऐसा कहते ही हम ठठाकर हंस पड़े । टोप्पोजी और मुमताज आगे बात करते रहे कि कैसे छत्तीसगढ़ की अधिकतर महिलाओं के बहुत सारे खसम होते हैं यद्यपि, मुमताज ने जल्दी से कहा, सबके साथ नहीं।''इसी पैराग्राफ पर विवाद है.
तमाम महिला संगठन भड़के हुए हैं. प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की महिला कार्यकर्ताओं ने लेखिका का पुतला दहन भी किया और कड़ी आपत्ति जताते हुए महिलाओं को अपमानित करने के एवज में लेखिका पर कारवाई की मांग की है. दरअसल छत्तीसगढ़ से जुड़ी किंवदंती पर दो स्थानीय लोगों की उत्तेजक बातचीत से मुदित पत्रकार सुश्री लक्ष्मी शरथ ने बस्तर-छत्तीसगढ़ पर यात्रा-वृत्तांत लिख मारा. इस पर संस्कृति विभाग के अफसर राहुल सिंह का कहना है सुश्री शरथ ने लांछनापूर्ण लेखन कर बरास्ते विवाद धार्मिक भावना और छत्तीसगढ़ की अस्मिता को चोट पहुंचाने का भर्त्सना-योग्य कार्य किया है। पाश्चात्य बौद्धिक जगत से प्रेरित, भ्रमित और गैर-जिम्मेदार लेखक तात्कालिक प्रसिद्धि के लिए ऐसा ही ओछा और सस्ता हथकण्डा अपनाते है।
साहित्यकार जी.के. अवधिया के मुताबिक़ सुश्री शरथ का लेख सरासर धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने वाला है। छत्तीसगढ़ के लोग भोले अवश्य हैं किन्तु इतने मन्दबुद्धि नहीं हैं कि किसी महिला को दो पुरुषों के साथ देखकर उसे दो पतियों वाली समझ लें। कहा जा रहा है लोगों के मुंह में जबरदस्ती बात डालकर कहलवाना जान बूझकर की गई टुच्चई है। लक्ष्मी शरथ को चाहिए था कि वे लेख को गंभीरता से लिखतीं। इस तरह से सामान्यीकरण करके वे फंस गई हैं| लोगों ने 'द हिन्दू' को एक कड़ा विरोध पत्र लिख कर और 'लक्ष्मी शरथ' की करतूत पर माफ़ी की मांग की है.
दरअसल इस मामले में पर्यटन विभाग पोषित गाइड और ड्राइवर बाहरी सैलानियों को क्या रूप दिखा रहे हैं इस पर भी सवाल खड़े हुए हैं. लेखिका के हवाले से कहा गया है कि है कि मुझे तो पर्यटन वालों ने बुलाया था।
शब्द के हाथ न पांव
एक शब्द करे औषधि
एक शब्द करे घाव
शब्दों का यह सन्दर्भ इसलिए कि लेखकों का एक वर्ग कभी कभी अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल करके हल्की टिप्पणियों से लोगों को आंदोलित कर देता है और इस तरह की अमर्यादित टिप्पणियों के कारण पूरी लेखक बिरादरी को नीचा देखना पड़ता है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी एक फैसले में कहा है कि किसी को गाली देना अथवा चिढ़ाने के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना अपराध हो सकता है, भले ही इसका इस्तेमाल सार्वजनिक स्थल पर नहीं किया गया हो.
बहुत दिन नही हुए एक प्रख्यात लेखिका ने अपनी पुस्तक में माना था कि ... जनरल डायर तो बहुत कोमल हृदय दयावान व्यक्ति था और यह घृणित नरसंहार तो तथाकथित स्वयंभू स्वतन्त्रता सेनानियों की काली करतूत था.
महिला लेखिकाओं के बारे में एक कुलपति ने अभद्रता से लबलबाती जो टिप्पणी की थी उस पर लम्बा विवाद हुआ था.
दिल्ली की एक अदालत सुपरिचित लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता अरूंधति राय को कश्मीर पर उनके लेखन के लिए फटकार भी चुकी है.
दरअसल किसी भी इलाके की एक संस्कृति होती है.. एक रिवाज होता है, रहन-सहन होता है. देश के किसी भी इलाके के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह , अन्ना और बाबा रामदेव और अन्य के आपतिजनक चित्र सोशल नेट वर्किंग साईटों में एक लम्बे समय से डाले जा रहे है , पर सरकार का ध्यान अब गया है.
हाल में सलमान रूश्दी प्रकरण में कई लेखक इतने नाराज नजर आए कि उन्होंने अमर्यादित टिप्पणी कर डाली जिसका प्रकाशन मीडिया आचार संहिता से बाहर होने के कारण नहीं किया जा सका.इन दिनों छत्तीसगढ़ में कर्नाटक की एक लेखिका की करतूत से बवाल कट रहा है और उसके खिलाफ महिला आयोग का नोटिस भी निकल गया है.
बुद्धिजीवी वर्ग में तीखी प्रतिक्रिया हुई है.जिक्र ताजा मामले का है. मामला छत्तीसगढ़ की महिलाओं को ले कर छपे एक लेख का है जिसे हिन्दू ने छापा है. छत्तीसगढ़ महिला आयोग ने अखबार को नोटिस जारी करते हुए लेखिका से जबाव-तलब किया है. अखबार के 17 फरवरी को प्रकाशित लेख पर विवाद है. लेखिका लक्ष्मी शरथ बस्तर के विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात को देखने आई थी। अपने वाहन चालक मुमताज और मार्गदर्शक टोप्पो की बातों को उन्होंने अपने यात्रावृतांत का केंद्र बनाया| एक कहानी के रूप में चटखारे लेकर बतलाया है, जिसमें एक कोई टोप्पो और दूसरा कोई मुमताज आपस में चर्चा कर रहे थे। अंगरेजी भाषानुवाद के मुताबिक लेख में कहा गया- ''स्थानीय महिलाओं ने दो पुरुषों के साथ सीता को देखा और कहा कि इसके तो दो पति हैं, सीता ने तत्क्षण व्यंग्यपूर्वक कहा, इनमें से प्रत्येक औरत के छत्तीसों (36) पति हों। मुमताज के ऐसा कहते ही हम ठठाकर हंस पड़े । टोप्पोजी और मुमताज आगे बात करते रहे कि कैसे छत्तीसगढ़ की अधिकतर महिलाओं के बहुत सारे खसम होते हैं यद्यपि, मुमताज ने जल्दी से कहा, सबके साथ नहीं।''इसी पैराग्राफ पर विवाद है.
तमाम महिला संगठन भड़के हुए हैं. प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की महिला कार्यकर्ताओं ने लेखिका का पुतला दहन भी किया और कड़ी आपत्ति जताते हुए महिलाओं को अपमानित करने के एवज में लेखिका पर कारवाई की मांग की है. दरअसल छत्तीसगढ़ से जुड़ी किंवदंती पर दो स्थानीय लोगों की उत्तेजक बातचीत से मुदित पत्रकार सुश्री लक्ष्मी शरथ ने बस्तर-छत्तीसगढ़ पर यात्रा-वृत्तांत लिख मारा. इस पर संस्कृति विभाग के अफसर राहुल सिंह का कहना है सुश्री शरथ ने लांछनापूर्ण लेखन कर बरास्ते विवाद धार्मिक भावना और छत्तीसगढ़ की अस्मिता को चोट पहुंचाने का भर्त्सना-योग्य कार्य किया है। पाश्चात्य बौद्धिक जगत से प्रेरित, भ्रमित और गैर-जिम्मेदार लेखक तात्कालिक प्रसिद्धि के लिए ऐसा ही ओछा और सस्ता हथकण्डा अपनाते है।
साहित्यकार जी.के. अवधिया के मुताबिक़ सुश्री शरथ का लेख सरासर धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने वाला है। छत्तीसगढ़ के लोग भोले अवश्य हैं किन्तु इतने मन्दबुद्धि नहीं हैं कि किसी महिला को दो पुरुषों के साथ देखकर उसे दो पतियों वाली समझ लें। कहा जा रहा है लोगों के मुंह में जबरदस्ती बात डालकर कहलवाना जान बूझकर की गई टुच्चई है। लक्ष्मी शरथ को चाहिए था कि वे लेख को गंभीरता से लिखतीं। इस तरह से सामान्यीकरण करके वे फंस गई हैं| लोगों ने 'द हिन्दू' को एक कड़ा विरोध पत्र लिख कर और 'लक्ष्मी शरथ' की करतूत पर माफ़ी की मांग की है.
दरअसल इस मामले में पर्यटन विभाग पोषित गाइड और ड्राइवर बाहरी सैलानियों को क्या रूप दिखा रहे हैं इस पर भी सवाल खड़े हुए हैं. लेखिका के हवाले से कहा गया है कि है कि मुझे तो पर्यटन वालों ने बुलाया था।
3 comments:
bhut sarthak post hae Rameshji aapki,kisi bhi sanskriti ko jane bina ktaksha karna nisandeh asbhayata ka dyotak hae.mere blog par aapka abhinandan hae.
YOU HAVE DESCRIBE THE POWER OF WORD.
रमेश जी आपके ब्लॉग पर हर पोस्ट में एक सार्थकता दिखाई दी मुझे ......आप वास्तव में एक गहन विषय पर रोचक तरीके से लिखते हो........बहुत खूब...
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