अचंभित करते हैं डा. देवनानी

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

कला के कई रूप होते हैं और यह किसी भी रूप में अभिव्यक्त हो सकती है. कलात्मकता न हो तो इंसान और ठूंठ में क्या फर्क है? बिरले वो होते हैं जो अपनी कला को सहेज कर चलते हैं और डा. गौतम देवनानी छत्तीसगढ़ के एक ऐसे गायक कलाकार हैं जिनको आप कंठ कोकिला नही कंठ कोकिल कहें और उन्हें सुन कर आप अचम्भित हुए बिना नही रह सकते.
स्टेज पर जब उनका नाम पुकारा जाता है तो गीत संगीत की महफ़िल में कई स्वयम्भू मुकेश किशोर और रफी अपनी धाक जमा या गाने की टांग तोड़ चुके होते हैं और श्रोता बिलकुल इस मूड में होता है कि जो भी सुनने को मिले कुछ कर्णप्रिय हो, मधुर हो या अलग सा अनूठा सा हो.. इस क्रम में अपनी बारी आते ही डाक्टर देवनानी छा जाते हैं.

हूबहू लता .. शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है .. जैसे चुहल से भरे चटकीले गाने सुना कर वे तालियाँ बटोर लेते हैं जो अमूमन बाकियों के हिस्से में आती हैं मगर कम आती है.
आज-कल हर मंच पे वे नजर आते हैं. मैं खुद ऐसे मंचों के पीछे की पन्क्तियों में धंसा होता हूँ और डाक्टर देवनानी को हसीना की आवाज में गाते हुए सुनकर मुस्कान भरी दाद दिए जाता हूँ.

एम एस सी (रसायन)और बी ए एम एस की डिग्री ले कर प्रैक्टिस कर रहे डा. देवनानी कुदरत का करिश्मा हैं. जिनको अमूमन महिलाएं भी हैरान हो कर सुनती हैं. हुबहू फीमेल वायस.. गाने कोई भी गवा लो देवनानी झूम कर गाते हैं और वाहवाही बटोर लेते है.

-यह अजूब कैसे हुआ?

"जब छोटा था तो माताजी को रेडियो के साथ गुनगुनाते सुनत़ा था. यह शौक मुझमे भी जगा. फिर मैं लताजी को सुन कर नक़ल करने की कोशिश में डूबा रहता. अभ्यास धीरे धीरे बढ़ता गया.. "

" इसी धुन में कई साल बीते.. स्कूल कालेज में शौकिया हाथ आजमाया. फिर गृहस्थी में मन रमा मगर रियाज चलता रहा. इसी बीच महाकोशल कला परिषद् से प्रोत्साहन मिला और बड़े मंच मिले..संस्कृति विभाग से प्रोत्साहन मिला..."

-मगर आदमी हो कर लड़की की आवाज? जैसे बुरा न मानिए दिख रही हो भेलपुरी मगर खाएं तो पता चले है आईसक्रीम?

" कुछ अजीब तो शुरू में लगता मुझे भी .. हिचक भी रह्ती थी.. संकोच मन पे.. मंच पे तारी रहता मगर लोगों का प्रोत्साहन काम आया.. बाद में मैंने समझ लिय़ा -कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना .."

" मैं लताजी और आशाजी को गुरु मानता हूँ.. उनको सुन-सुन कर ही सीखा है.. गाते समय मै सुर- ताल- भावना- प्रस्तुति- संतुलन और उच्चारण में साम्य रखने की कोशिश करता हूँ"

"यह मेरा शौक है और शौक हर किसी में होता है. इसे जिन्दा रखा जाए तो जीवन सरस होगा वरना जीने के साथ कई गम भी बावस्ता हैं.. जिन्दगी ज़िंदादिली का नाम है"

मै तो कहूंगा बिलकुल सच डाक्टर साहेब सुनने का शौक हम भी पाले हुए हैं. बाथरूम सिंगर भी हैं.. .... आप क्या कहेंगे?

4 comments:

Swarajya karun 18 फ़रवरी 2012 को 10:42 pm बजे  

डॉ.देवनानी की विलक्षण प्रतिभा के बारे में आपके सुरुचिपूर्ण आलेख से बहुत कुछ जानने का मौक़ा मिला. आभार . डॉ.गौतम देवनानी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं .

gautam deonani 19 फ़रवरी 2012 को 1:10 am बजे  

Thnx...Ramesh ji..aapne likha k aap bhi bathroom singer hain...to mai aapko bata dun, shuruaat meri bhi wahi se hui...jiska nateeja aap sab k saamne hai..beherhaal aapka aalekh padh kar bahut kushi hui aur aap to mere subse bde FAN hain..punah aapka tahedil se dhanyawaad...!

Afsar ali 19 फ़रवरी 2012 को 6:28 am बजे  

yesi pratibha birle hi milti hai

मदन शर्मा 20 फ़रवरी 2012 को 2:39 am बजे  

वाह क्या बात कही है आदमी हो कर लड़की की आवाज? जैसे बुरा न मानिए दिख रही हो भेलपुरी मगर खाएं तो पता चले है आईसक्रीम?
आपको महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ

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