यश बटॊर गए यश चोपड़ा
मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012
फिल्म 'जब तक है जान' रिलीज होने से पहले ही यश जी नश्वर शरीर को त्याग गए. 80 वर्षीय जानेमाने फिल्मकार यश चोपड़ा ने अपने नाम के अनुरूप खूब यश पाया पांच दशक के सफ़र मे दाग, कभी कभी ,दीवार, सिलसिला, लम्हे, वीरजारा जैसी सफ़ल फ़िल्मे दी. रविवार शाम साढ़े पांच बजे मुंबई के लीलावती अस्पताल में उनका निधन हो गया. लाहौर से यश चोपड़ा का मुंबई आना इसलिए हुआ था कि वे इंजीनियर बनेंगे मगर वे इन्जीनियर तो बने फ़िल्मो के. रोमान्स की पटकथा को सेल्युलाईड पर रोशन करने वाले सफ़ल निदेशन के..
जरा गौर से देखे तो उस दौर मे 'दाग' ने एन्ट्री ली जब नायक पेडॊ के इर्द-गिर्द नाच-गा कर नायिकाओ को ’अच्छः तो हम चलते है ’सुनाते थे मगर ’दाग’ ने रिश्तो के सुलगते सवालो को पेश किया और ’कभी-कभी’ तक आते हुए यशजी फ़िल्मो के जरिये यह सन्देश सुनाने मे सफ़ल हुए कि मै पल दो पल का शायर हू पल दो पल मेरी कहानी है..
दीवार का निदेशन कर के यश जी ने बदलते दौर के क्रुद्ध युवा के दर्द को भी रोमान्स से परे ले जा कर दर्शा दिया. 1975 की फिल्म ‘दीवार’ जिसमें अमिताभ बच्चन ने अभिनय किया था को एन्ग्री मैन युग की शुरुआत माना जाता है. फ़िर ’सिलसिला ’ मे एक महानायक के निजी जीवन के त्रिकोण को जिस तरह से उकेरा वो यादगार बन चुका है.
यश चोपड़ा को असफलता का कड़वा स्वाद भी चखना पड़ा पर 1989 में आई ‘चांदनी’ ने उनका मान रखा. 1997 में उन्होंने फिल्म ‘दिल तो पागल है’ का निर्देशन किया। कुछ सालों तक वह निर्देशन से दूर रहे और फिर लौटे 2004 की सुपरहिट फिल्म ‘वीर जारा’ को लेकर. यश चोपड़ा ने एक गाने को छोड़कर फिल्म ‘जब तक है जान’ की शूटिंग पूरी कर ली थी. इस गाने की स्विट्जरलैंड में शूटिंग होने वाली थी .शाहरुख और कट्रीना की यह फ़िल्म यशजी के बिना पूरी होगी. निधन की खबर सुनते ही शाहरुख खान फूट-फूट कर रोए.
यश चोपड़ा ने 1959 में पहली बार अपने भाई के बैनर तले ही बनी फिल्म ‘धूल का फूल’ का निर्देशन कर शुरुआत की थी.यश चोपड़ा को अब तक 11 बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. उन्हें 1964 में फिल्म ‘वक्त’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसके बाद वह 1969 में फिल्म ‘इत्तेफाक’ सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, 1973 में ‘दाग’ सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, 1975 में ‘दीवार’ सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, 1991 में ‘लम्हे’ सर्वश्रेष्ठ निर्माता, 1995 में ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ सर्वश्रेष्ठ निर्माता व 2001 में फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए. 2005 में उन्हें भारत सरकार द्वारा ‘पद्म भूषण’ से भी सम्मानित किया गया। फिल्म निर्माता यश चोपड़ा को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए फ्रांस का सर्वोच्च ऑफिसियर डी ला लेजन पुरस्कार भी प्रदान किया गया. स्विस सरकार ने उन्हें ‘स्विस एंबैसडरर्स अवार्ड 2010’ से सम्मानित किया.
फ़िल्म जगत मे इस साल सदमे दर सदमे की स्थिति है. यशजी का भी जाना दुखद है. विनम्र श्रद्धान्जलि..
1 comments:
सुंदर रचना
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