शुक्र है अब भी बचा है रेडियो
शनिवार, 15 दिसंबर 2012
आवाज की दुनिया मे गुमसुम मूक फ़िल्मो पर झूमते उस जमाने के हमारे समाज मे एक स्वरीय क्रान्ति ले कर आया रेडियो अब भारत मे तकरीबन सौ साल पूरे करने के समीप है। तमाम कमियो के बावजूद आज भी रेडियो सुनना अच्छा लगता है । जैसे सफ़ारी और जीन्स के युग मे धोती अच्छी लगती है। जैसे विविध भारती पर पुराने नगमो की बरसात पुरानी यादों को जगा जाती है।
दुनिया मे टीवी के तमाम जलवो के बावजूद रेडियो की आज भी क्या अहमियत है इसे बयान करने के लिए एक ताजा मामले की चर्चा। यह मामला रेडियो बनाम ऍफ़ एम् के दिग्भ्रमित काल का एक नायाब उदाहरण है। आरजे ने गर्भवती महारानी केट की तबीयत जानने के लिए ब्रिटेन के हॉस्पिटल को फर्जी फोन कॉल किए थे। इसी अस्पताल की भारतीय मूल की नर्स जैसिंथा सैल्दान्हा किंग एडवर्ड सप्तम अस्पताल के क्वार्टर में अचेतावस्था में मिली थी, जहां वह वरिष्ठ नर्स के रूप में काम करती थी। अब ऑस्ट्रेलिया के दोनों रेडियो जॉकी [आरजे] ने भारतीय मूल की नर्स की मौत पर दुख जाहिर करते हुए अपनी कारगुजारियों के लिए माफी मांगी है। रेडियो स्टेशन ने भारतीय मूल की नर्स की मौत पर दुख जताते हुए उनके परिवार को 2.7 करोड़ रुपये मदद देने का वादा भी किया है। एफ़एम मस्ती बनाम मौत
प्रिंस विलियम की गर्भवती पत्नी केट के इलाज के दौरान अस्पताल में फर्जी फोन करने वाले दोनों ऑस्ट्रेलियाई रेडियो प्रस्तोताओं को बगैर अनुमति के ऐसे किसी भी फोन को प्रसारित नहीं करने का प्रशिक्षण दिया गया था । अस्पताल में उनके फर्जी फोन के बाद भारतीय मूल की एक नर्स की मौत हो गई थी ।
‘2डे एफएम स्टेशन’ के सूत्र के हवाले से ‘द एज’ ने अपनी खबर में लिखा कि रेडियो निगरानी समूहों के नियमों के अनुसार सभी प्रस्तोताओं, निर्माताओं और सामग्री प्रबंधकों को प्रत्येक छह महीने में ‘शिष्टाचार एवं मानदंड’ प्रशिक्षण में भाग लेना होता है ।‘2डे एफएम’ के प्रस्तोताओं मेल ग्रेग और माइकल क्रिश्चन ने महारानी एलिजाबेथ और प्रिंस चार्ल्स बनकर मध्य लंदन के मेरिलबोन स्थिति किंग एडवर्ड सप्तम अस्पताल में भर्ती गर्भवती केट की बीमारी के बारे में पता लगाया था । इस फर्जी फोन के वक्त भारतीय मूल की नर्स जेसिन्था सलादन्हा (46) रिसेप्शन पर मदद कर रही थी। उसने उसी सुबह :पिछले शुक्रवार को: कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। ये दोनों प्रस्तोता प्रसारण पेशेवर हैं। अब वे भोले नहीं बन सकते । अखबार ने सूत्र के हवाले से लिखा है कि ‘2डे एफएम’ की वकील तानिया पेत्सिनिस इस प्रशिक्षण कार्यक्रम को चलाती हैं। इनमें विशेष निर्देश होते हैं जैसे जब तक समुचित मंजूरी ना मिले किसी भी फर्जी फोन को प्रसारित ना किया जाए.. यदि उसके संबंध में कोई संदेह हो तो उसके बारे में प्रबंधन पर बिल्कुल स्पष्ट निर्देश हैं, उनका पालन करना होता है। वर्ष 2009 में ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान 14 वर्षीय बच्ची ने सीधे प्रसारण में कहा था कि उसके साथ बलात्कार हुआ था । इसी कांड के बाद छमाही प्रशिक्षण सत्र शुरू किए गए थे ।
रेडियो का रुतबा आज भी कायम है। मेरे पिया गए रंगून जैसे गीतो के जमाने मे रेडियो रखना, रेडियो सुनना सामाजिक शान की बात होती थी। आज भी रेडियो सुनने वाले दो वर्ग है. एक एफ़ एम वाले दूसरे सरकारी रेडि यो सुनने वाले । टी वी की अपनी सीमा है। आज भी धरती के एक छोर से दूसरे छोर तक रेडियो ही चलता है। लाईट न हो तो भी चलता है । टी वी के लिए धंसने को एक सोफ़ा आंखें .. कान , दिमाग सब चाहिए । रेडियो के लिए कान ही काफ़ी है। रेडियो चला लोजिए और सुनते रहिए। काम भी करते रहिए। अब तो इंटरनेट पर संगीत की स्ट्रीमिंग वेबकास्टिंग हो रही है । सैटलाइट रेडियो एक एनालॉग या डिजिटल रेडियो का ज़माना है। इसे स्थानीय एफएम रेडियो स्टेशन की तुलना में काफी विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में इसे सुना जा सकता है।
हालाकि सौ साल भी नही हुए है। 1920 मे हमारे देश मे लोग जान गए थे थे कि रेडियो क्या बला है। 23 जुलाई, 1927 को भारत में रेडियो का पहला प्रसारण मुंबई से हुआ। वैसे कायदे का पहला कार्यक्रम 1923 में मुंबई के रेडियो क्लब द्वारा प्रसारित किया गया था। 1927 में मुंबई और कोलकाता में निजी स्वामित्व वाले दो ट्रांसमीटरों से प्रसारण सेवा की स्थापना हुई। सन् 1930 में सरकार ने इन ट्रांसमीटरों को अपने नियंत्रण में ले लिया और भारतीय प्रसारण सेवा के नाम से उन्हें परिचालित करना आरंभ कर दिया। 1936 में इसका नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो कर दिया और 1957 में आकाशवाणी के नाम से पुकारा जाने लगा।
1995 में सर्वोच्च न्यायालय ने कह दिया था कि रेडियो तरंगों पर सरकार का एकाधिकार नहीं है। सन् 2002 में एन.डी.ए. सरकार ने शिक्षण संस्थानों को कैंपस रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति दी। उसके बाद 2006 में शासन ने स्वयंसेवी संस्थाओं को रेडियो स्टेशन चलाने की अनुमति दी। चाइना रेडियो इण्टरनैशनल (सी॰आर॰आई या सीआरआई) जिसका पुराना नाम रेडियो पेकिंग है, की स्थापना ३ दिसम्बर, १९४१ को हुई थी। श्रीलंका-सीलोन से प्रसारित होने वाले रेडियो से बिनाका गीत माला प्रसरित होती थी, 1950-60 के दशक में यह भारत का सबसे लोकप्रिय रेडियो चैनल था क्योंकि आकाशवाणी तथा अन्य रेडियो स्टेशन उस समय फिल्मी गीत नही बजाते थे। मीडियम वेव और शोर्ट वे्व के उस दौर मे बिनाका और सिबाका गीत माला वाले अमीन सयानी को लोग भूले नही हैं । रेडियो दिन के अलग-अलग समय में घर के अलग-अलग लोगों की जिंदगी से जुड़ा होता था। गीत, समाचार..वगैरह।
बीबीसी हिंदी रेडियो एक समय खास सुना जाता था।
अब देसी केन्द्रो के अलावा विदेश सेवा प्रभाग का प्रसारण 7 देशों, पश्चिमी एशिया, खाड़ी के देशों और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में किया जाता है।यह देश के लगभग 65 प्रतिशत हिस्से और लगभग 76 प्रतिशत आबादी को कवर करता है। प्रसार भारती के केयू बैंड के माध्यम से सीधे घरों में सेवा (डीटीएच) जारी है। देश मे वर्तमान में 231 रेडियो स्टेशन हैं। इनमें से प्रत्येक रेडियो स्टेशन आकाशवाणी के अधीनस्थ कार्यालय के रूप में कार्य करता है। दक्षिण एशिया का पहला स्वतंत्र सामुदायिक रेडियो स्टेशन रेडियो सगरमाथा नेपाल के काठमांडू घाटी का एक अत्यन्त लोकप्रिय एफएम रेडियो स्टेशन है। 'सगरमाथा' का अर्थ है - 'माउंट एवरेस्ट' । यह मई १९९७ से आरम्भ हुआ ।
ऍफ़ एम् के दौर में भी हवा महल भारत के विविध भारती रेडियो का जानामाना कार्यक्रम है जो हर रात प्रसारित होता है। सखी सहेली भी एक अनूठा कार्यक्रम है । हैलो फरमाईश फ़ोन इन सीधे लोगो से जुड़ा है।
चूकि पत्रकारिता की शुरुआत ही 1981 मे रायपुर आकाशवाणी से हुई तब लीलधर मंडलोईजी कार्यक्रम अधिशासी हुआ करते थे..तब 'आज मेरी बारी है' की बारी का युववाणी श्रोताओं को खासा इन्त्ज़ार रहता था.. तब खरखराते रेडियो में अब तकनीकी बद्लाव यह आया है कि रायपुर (छत्तीसगढ़) में मौजूदा 100 केडब्ल्यू एम डब्ल्यू ट्रांसमीटरों के स्थान पर आधुनिकतम प्रौद्योगिकी वाले ट्रांसमीटर लगाए गए हैं।
बहुत गौर करे तो क्षेत्रीय लोक और हल्के फुलके या शास्त्रीय संगीत के आकाशवाणी का प्रयोजन हमारे देश की समृद्ध लोक सांस्कृतिक विरासत को सामने लाना, प्रोत्साहन देना और आगे बढ़ाना रहा है।मगर अब निजी एफ़ एम भी सक्रिय है। कई तो सिर्फ़ चुट्कुलो पर काबिज है। आकाशवाणी का मकसद विकास था..चौपाल था. गान्व था खेत और खलिहान था मगर अब ...एफएम रेडियो शुद्ध धन्धे जैसी चीज हो गया है। यह कहने मे भी गुरेज नही कि आज भी सरकारी बन्दिश है तो विविध भारती मे सलीके के गीत बजते है। सलीके के प्रस्तोता है। जवाबदेही है।
देखा जाए तो एफ़ एम बैंड का मौजूदा चलन रेडियो की उस बिल्ली की तरह है जो अपने बच्चे को मार के खा जाती है।
कलकत्ता विश्वविद्यालय में शोधार्थी आदित्य कुमार गिरि एक गम्भीर सवाल उठाते है कि आकाशवाणी का ढाँचा विकासमूलक कार्यक्रमों पर आधारित था। किसानों की, मजदूरों की समस्याओं पर कार्यक्रम बनाये जाते थे। साहित्य के लिए स्पेस था। लोगों की अन्य समस्याओं को भी एक उचित स्थान दिया जाता था।इसकी जगह एफएम ने मनोरंजन का संसार रच दिया है। कहा जाना चाहिए कि सामाजिक सांस्कृतिक मुद्दों को भी मनोरंजकपरक बनाकर एक मजाकिया रवैया अपनाया जाता है। पहले से ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (टीवी चैनल्स) ने मनोरंजन का एक वृहद संसार रच दिया है। इसके आदि दर्शक और श्रोता रेडियो के इन कार्यक्रमों को भी मनोरंजन के एक प्रकार के रुप में लेते हैं,जिसके कारण उस मुद्दे की गंभीरता नष्ट हो जाती है। कार्यक्रमों के निर्माण की रुपरेखा में जनवाद की जगह उपभोक्तावादी दृषि्ट का प्रयोग किया जाता है।
'असल में अगर केवल मनोरंजन को भी आधार बनाया जाता तो कोई समस्या नहीं थी,परन्तु यहां तो सामाजिक मुद्दों का मजाक बना दिया जाता है।व्यकि्त की कुंठाओं और जब्ती प्रवृतियों पर आधारित कार्यक्रम बनाये जाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया,इंटरनेट आदि को अधिक महत्तव दिया जाता है और यह समझा जा रहा है कि एफएम रेडियो के श्रोताओं की संख्या या प्रभाव क्षेत्र कम है,पर यह एक गलत धारणा है। एफएम रेडियो के पास बड़ी संख्या में श्रोता हैं।देश के बड़े-बड़े पूँजीपतियों का रेडियो में पैसा लगाना इस बात का प्रमाण है कि रेडियो का एक बड़ा प्रभाव-क्षेत्र है।अतः प्रसार भारती द्वारा एफएम रेडियो की जवाबदेही तय की जानी चाहिए।कलकत्ते के एफएम चैनेल 93.5 रेड एफएम ने अपने यहां एक कार्यक्रम आयोजित किया। उसमें जनता से प्रश्न किया गया कि आज देश भर में बिजली की जो कटौती हुई है उसका कारण यह है कि हमलोग ज्यादा ऊर्जा की खपत करते हैं,अतः श्रोता फोन करके बताएं कि सबसे ज्यादा किस काम में ऊर्जा लगती है प्रश्न के साथ,जब-जब यह प्रश्न दुहराया जा रहा था,एक बात जरुर कही जा रही थी (अत्यंत अर्थपूर्ण ढंग से) कि शादी-शुदा लोग भी इस प्रश्न का जवाब दे सकते हैं।'
साफ़ बात है कि रेडियो में अब बड़ी पूँजी का प्रवेश हो चुका है और कोइ पैसे लगता ही कमाने के लिए है। गनीमत है कि दूरदर्शन आज भी है... आकाशवाणी आज भी है वरना लोक कलाकार और लोक संस्कृति गांव में ही कैद रह जाते ।
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2012 रेडियो इंडस्ट्री के लिए मिला-जुला साल
एंटरटेनमेंट नेटवर्क इंडिया लिमिटेड (ईएनआइएल) के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर हितेश शर्मा के अनुसार, 2012 रेडियो इंडस्ट्री के लिए मिला-जुला साल रहा है। इस वर्ष का सबसे बड़ा निराशाजनक पहलू फेज3 के लागू होने में देरी होना है। इंडस्ट्री अभी भी 2006-07 में क्रिएट किए गए ऑपरेटिंग सिस्टम से चल रहा है। यह आश्चर्यजनक है कि पूरा विश्व जहां अपने विस्तार की ओर देख रहा है, या कर रहा है, रेडियो अभी भी पुरानी दुनिया के नियमों पर चल रहा है। एक्सचेंज4मीडिया को बयान मे कहा कि अस्थिर बाजार की स्थिति और 2012 में कोई नाटकीय बदलाव ना होने के बावजूद, रेडियो स्टेशन के विकास की दर 11 से 12 प्रतिशत है जो 2011 के बराबर है। उन्होंने बताया कि कठिन वर्ष होने के बावजूद, रेडियो का स्थान, मार्केटिंग के लिए, मीडिया के क्षेत्र में बढ़ा ही है।
आईआरएस के अनुसार, 2012 में रेडियो श्रोताओं की संख्या 105 मिलियन के लगभग स्थिर है। शर्मा के अनुसार हमने मोबाइल फोन के द्वारा रेडियो श्रोताओं की संख्या में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी को देखा है। प्रोग्रामिंग के लिए यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव है क्योंकि श्रोता आसानी से एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पर स्वीच ऑफ कर जाते हैं। मोबाइल फोन पर रेडियो श्रोताओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए, विज्ञापनदाताओं के लिए, एक बड़ा अवसर लेकर आया है।
मोबाइल के द्वारा रेडियो श्रोताओं की बढ़ती संख्या से स्मार्टपोन इकोसिस्टम के लिए नए द्वार खोल दिया है। और इस तरह से, मोबाइल मार्केटर्स और ब्रांड के लिए रेडियो एक नया चुनौतीपूर्ण अवसर लेकर आया है।उन्हें रेडियो इंडस्ट्री के भविष्य में विकास को लकर काफी आशायें हैं। उन्हें आशा है कि सरकार रेडियो इंडस्ट्री में विदेशी निवेश पर जल्द ही फैसला लेगी, जिससे इसके विकास को पंख लग सके। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि रेडियो प्लेयर्स को अधिक से अधिक उपभोक्ताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आने वाला साल 2013 रेडियो इंडस्ट्री के लिए नई आशायें लेकर आएगा, ऐसी उम्मीद है।
2 comments:
सधा हुआ जानकारीपरक आलेख
बहुत बढ़िया एवं जानकारियों से भरपूर लेख।
धन्यवाद
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