विकराल बस्तर हिंसा

सोमवार, 27 मई 2013


देश के 13 राज्यों के 165 जिलों में फैल चुका रेड कॉरीडोर आज राष्ट्रीय समस्या बन चुका है।  नक्सलवाद को आतंकवाद घोषित करने के बाद समस्या और विकराल हुई है। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की हैवानियत एक बार फिर सामने आई है। बस्तर टाइगर महेन्द्र कर्मा की मौत ने बस्तर में नक्सलवाद से उपजी हिंसा के खिलाफ उठी सलवा जुडूम (शांति के लिए जन जुड़ाव) आंदोलन को पस्त कर दिया है। यह आंदोलन 2005 में बस्तर से शुरू हुआ था जिसके प्रणोता महेन्द्र कर्मा ही थे।

मगर उन्होंने जो अभियान शुरू किया था वह कई साल पहले ही राजनीति की भेंट चढ़ गया। तब से कर्मा नक्सलियों की आंख की किरकिरी बने हुए थे।  उन्होंने लोगों को गाड़ी से उतारा और उनके मोबाइल लिए, नाम पूछे और फिर दूर तक पैदल ले गए। कर्मा ने कार से उतर कर दिलेरी से कहा, मुझे मार दो मगर बाकियों को छोड़ दो। नक्सलियों ने गोलियां चला दी। कर्मा को मारने की धमकी के बैनर इलाके में टांगे गए थे। नक्सलियों को पता था कि कौन किस गाड़ी में है इसीलिए काफिले में चुनी हुई गाड़ियों को निशान बनाया गया। काफिले में रोड ओपनिंग पार्टी भी नहीं थी। 8 नवम्बर 2012 को महेंद्र कर्मा पर नक्सली हमला हुआ पर वह इस हमले में बाल बाल बच गए जबकि पांच लोग घायल हुए थे। महेंद्र कर्मा और उनके परिवार पर पहले भी नक्सलियों ने कई हमले किए गए थे।

शनिवार की घटना बताती है कि पिछले कई वर्षो के सतत काम्बिंग अभियान के बावजूद नक्सली इलाके में महफूज हैं। अपने खिलाफ उठने वाली कोई भी आवाज वह खामोश कर सकते है। संवाद, संविधान, और प्रजातंत्र किसी को नक्सली नहीं मानते। नक्सलियों के खिलाफ शुरू हुआ सलवा जुडूम आंदोलन अब दम तोड़ गया है। इससे जुड़े हजारों आदिवासी नक्सलियों के भय से राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं। अपने आखिरी साक्षात्कार में कर्मा ने इस संवादादाता से कहा था कि बस्तर को हिंसा से मुक्त करना ही उनकी जिंदगी का मकसद है। मगर अफसोस कर्मा नक्सलियों का निशान बने। 

 नक्सलियों का टॉरगेट होने की वजह से ही कर्मा को सरकार ने जेड प्लस कमांडो सुरक्षा मुहैया करवाई थी। लेकिन इस बार नक्सलियों का सूचना तंत्र मजबूत रहा।

उन्हें पहले ही यह जानकारी मिल चुकी थी कि महेंद्र कर्मा काफिले के चौथे वाहन में सवार हैं। तीन वाहन गुजर जाने के बाद ही चौथे वाहन पर निशाना लगाया गया। नवंबर, 2012 में कर्मा के बुलेटप्रूफ वाहन पर हमला हुआ था। इस हमले में बचने के बाद उन्होंने मीडिया से कहा था कि वह अपनी किस्मत की वजह से बचे। बुलेट प्रूफ वाहन के इंजन की वजह से उनकी जान बची। ब्लास्ट इंजन पर हुआ था। इसलिए वाहन के पीछे ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। उन्होंने कहा था कि नक्सली रोज हमसे जीत रहे हैं और रोज हम नक्सलियों से हार रहे हैं। नक्सली सलवा जुडूम अभियान से जुड़े अग्रिम पंक्ति के सभी नेताओं को अलग-अलग तरीके से मारने की प्लानिंग बना चुके हैं। कर्मा ने खुद कहा था कि नक्सलियों का स्माल एक्शन ग्रुप इस आंदोलन से जुड़े नेताओं को श्रृंखलाबद्ध तरीके से मार रहे है। अप्रैल 2010 में चिंतलनार में सीआरपीएफ के 75 जवानों की नक्सली हमले में मौत समेत कई बड़ी घटनाएं दंतेवाड़ा-सुकमा अनुमंडल में ही हुई थीं। 12 जुलाई 2009 को भी राजनांदगांव में एक एसपी समेत 30 जवान झांसे में ला कर मार दिए गए थे।

 13 राज्यों के 165 जिलों में  माना जा रहा है कि नक्सलवाद को आतंकवाद घोषित करने के बाद समस्या और विकराल हुई है।

बीते रविवार सुबह दूरदशर्न के टावर पर नक्सलियों के हमले में तीन जवान शहीद हो गए और एक घायल हो गया। यह टावर बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर तेलीमारेंगा गांव में स्थित है। अबूझमाड़ के इस भूभाग में आज भी नक्सलियों के स्थाई शिविर हैं और पुलिस भी वहां जाने से र्थराती है। छत्तीसगढ़ के 27 में से 18 जिलों में बुरी तरह पसर चुके नक्सलियों ने इस वारदात के बाद के बाद यही साबित किया है। लालगढ़ (पश्चिम बंगाल) में सेना के हाथों बुरी तरह कुचले जाने और आंध्रप्रदेश में ग्रे हाउंड फोर्स से खदेड़े जाने के बाद ओडीसा और छतीसगढ़ नक्सलियों का अभ्यारण्य बना हुआ है।

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