उनके प्रति-आदर्श

शुक्रवार, 31 मई 2013

जिस जंगल, जल, जमीन के हक के लिए वे हथियारबंद हैं, उन्हीं पर निर्माण जारी रखने दे ने के एवज में निजी घरानों व सरकारी महकमों से मोटी रकम वसूलते हैं। इसके चलते वह आम आदिवासियों के एकमात्र रहनुमा नहीं रह जाते हैं। इससे साम्यवादी शासन और समन्वित विकास के उनके प्रति-आदर्श का खोखलापन जाहिर होता है। अगर कोई अभियान संसदीय पद्धतियों में गरीब-गुरबा के हक को हाशिये पर धकेले जाने के खिलाफ है तो शुरू से आखिर तक उसकी समस्त कार्यवाहियों की शुचिता में यह बात झलकनी चाहिए। अं तिम अभियान शुरू करने के पहले हमारी हुकूमत को भी जांचना चाहिए कि सुशासन का फर्ज कहां तक पूरा हुआ है। 
इसी पर हस्तक्षेप www.rashtriyasahara.com

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