आडवाणी का नया कोण और छत्तीसगढ़

शुक्रवार, 14 जून 2013

भाजपा के नक्शे पर नरेन्द्र मोदी वर्सेस लालकृष्ण आडवाणी का जो नया कोण उभरा है, उसका तनिक असर भी छत्तीसगढ़ की राजनीति पर नहीं पड़ रहा, मौजूदा हालात में तो कम से कम यही आकलन है। वजह बहुत साफ है। यहां आडवाणी के समर्थक तो हैं पर चूंकि मुख्यमंत्री डा रमन सिंह खुल कर मोदी के पक्ष में खड़े हैं लिहाजा कोई मोदी की खुली खिलाफत करने की हिमाकत नहीं कर रहा। 
बीते माह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह द्वारा की गई प्रदेशव्यापी विकास यात्रा के अंतिम दिन खास तौर पर मोदी सम्मिलित हुए। रमन उनको अपने निर्वाचन क्षेत्र राजनांदगांव में आयोजित सभा में ले गए जहां गुजराती काफी तादाद में हैं। लाखों की भीड़ देख कर मुख्यमंत्री द्वय मुदित हो गए। मोदी इस बार जिस तरह उन्होंने डा.सिंह की तारीफों के पुल बांधे वह एक नए गठजोड़ का संकेत था। रमन सिंह मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भी शरीक हुए थे। डा.रमन सिंह की विनयशीलता का जिक्र नरेन्द्र मोदी ने किया और यहां तक कहा कि मुझे गर्व है कि वे मेरे मित्र हैं। मोदी यहां नीतीश कुमार से हिसाब चुकाते दिखे। कहा, रमन सिंह अपने काम का हिसाब गांव-गांव जाकर दे रहे हैं। वहीं कई ऐसे मुख्यमंत्री (नीतीश) हैं, जिन्हें काले झंडे और पत्थरबाजी की वजह से अपनी यात्राओं को स्थगित करके लौट जाना पड़ा है। मोदी ने रमन सिंह को अपना जिगरी दोस्त बताता और कहा मेरे साथी ने छत्तीसगढ़ की सूरत बदल कर रख दी है। वह दिन दूर नहीं, जब यह राज्य विकास के मामले में गुजरात से भी आगे निकल जाएगा। राज्य में 2003 में बजट छह हजार करोड़ का था, जो आज 2013 में बढ़कर 49,000 करोड़ का हो गया है। मोदी का कहना था कि देखिएगा, रमन सिंह की र्थड टर्म भी शानदार रहेगी। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी का नाम बार-बार लेते हुए कहा, ‘वह अटलजी थे कि एक भी लाठी नहीं चली और छत्तीसगढ़ का निर्माण हो गया। मोदी ने यहां भी आडवाणी का नाम तक नहीं लिया। गोवा में नई भूमिका पर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी मोदी को बधाई देते हुए कहा कि इस निर्णय से आने वाले चुनावों में पार्टी को फायदा होगा। उन्होंने कहा कि पार्टी अब युवा शक्ति और अनुभव दोनों के साथ चुनाव में उतरेगी और निश्चित रूप से फायदा होगा। 

नरेन्द्र मोदी का छत्तीसगढ़ और डा.रमन सिंह के प्रति यह अतिशय लगाव इस बात का द्योतक है कि आगामी चुनाव में मोदी, रमन और राजनाथ की तिकड़ी कोई असर दिखाएगी। गुजरात में मोदी का जादू जिस तरह सिर चढ़ा है, उसी तर्ज पर विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाने की कवायद में जुटे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह इस बार दोतरफा फामरूले पर काम कर रहे हैं।

 वह एक ओर जनता को रिझाने के लिए न सिर्फ उनके बीच जाकर योजनाओं का ऐलान कर रहे हैं, दूसरी ओर पार्टी में भी चढ़ते सूरज को नमन करना नहीं भूल रहे हैं। 

छत्तीसगढ़ निर्माण में अहम भूमिका अदा करने वाले आडवाणी के प्रति राज्य भाजपा में सम्मान तो है मगर उनका कोई गुट नहीं है। सांसद रमेश बैस और नंद कुमार रमन सिंह के विरोधी जरूर हैं मगर उनका असर कुछ पाकेट्स तक सीमित है मगर वे अभी खामोश हैं। 
छत्तीसगढ़ में विधान सभा चुनाव नवम्बर में होने हैं।
बीते चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच 10 सीटों का अंतर रहा है।
कुल 90 सीटें हैं। 

बस्तर की 12 सीटें ही किसी पार्टी की सरकार बनाने का स्वप्न पूरा कराती हैं, इनमें 11 सीटें पिछली बार भाजपा को मिली थी। इस बार बस्तर में कांग्रेस के कई नेताओं की नक्सलियों द्वारा की गई ह्त्या के बाद से यह आकलन खतरे में नजर आ रहा है .

सवाल है कि क्या बस्तर फिर से रमन की झोली भरेगी या अब भी गुटों में फंसी कांग्रेस लाभ ले जाएगी, यह सवाल दीपावली तक हल होने की उम्मीद है।  
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