गैरों पे करम, अपनों पे सितम
शनिवार, 22 जून 2013
अपने समय की मशहूर तारिका माला सिन्हा ने दादा साहेब फाल्के अकादमी पुरस्कार नहीं लिया .सही किया या या गलत किया ..इस पर बहस हो सकती है मगर एक बात बिलकुल निर्विवाद है -वे बेजोड़ अभिनेत्री हैं .
माला सिन्हा दादा साहब फाल्के पुरस्कार समारोह में नहीं पहुंचीं क्योंकि वह अपने प्रति पुरस्कार समिति के असम्मान से आहत थीं.
1950 से 1960 के दौर में अपनी मोहक मुस्कान और दमदार अभिनय से बॉलीवुड पर राज करने वाली माला के सुहाने बीते दौर की बात करें तो उनकी गिनती भी बॉलीवुड की उन अभिनेत्रियों में होती है, जिन्होंने फिल्मों में स्टार के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई. वे बांग्ला फिल्मों से हिंदी फिल्मों में आई थीं..
माला सिन्हा दादा साहब फाल्के पुरस्कार समारोह में नहीं पहुंचीं क्योंकि वह अपने प्रति पुरस्कार समिति के असम्मान से आहत थीं.
1950 से 1960 के दौर में अपनी मोहक मुस्कान और दमदार अभिनय से बॉलीवुड पर राज करने वाली माला के सुहाने बीते दौर की बात करें तो उनकी गिनती भी बॉलीवुड की उन अभिनेत्रियों में होती है, जिन्होंने फिल्मों में स्टार के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई. वे बांग्ला फिल्मों से हिंदी फिल्मों में आई थीं..
माला सिन्हा ने कहा कि मैंने फाल्के पुरस्कार अस्वीकार कर दिया है, वे मेरा अपमान कर रहे हैं .अवॉर्ड कमेटी द्वारा उनका उचित ढंग से सम्मान नहीं किए जाने के चलते उन्होंने ऐसा किया. इसके पीछे कारण है कि इस अवॉर्ड के लिए आयोजकों ने ना तो उन्हें सही से निमंत्रण दिया और ना ही उन्हें निमंत्रण पत्र पर उनका नाम है.
माला सिन्हा ने फ़िल्मों में लंबा सफर तय किया और अपनी अलग पहचान बनाई. वे बांग्ला फ़िल्मों से हिंदी फ़िल्मों में आई थीं.1954 में प्रदशत फिल्म ..बादशाह ..में माला सिन्हा को प्रदीप कुमार के साथ काम करने का मौका मिला .जो नायिका के रप में उनकी पहली फिल्म थी .
"आँखें" में उनका अभिनय मर्मस्पर्शी था. एक देशभक्त जासूस की उनकी भूमिका यादगार हो गयी है
फिल्म के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये 2007 में उन्हें स्टार स्क्रीन लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
एक खास बात यह है कि 11 नवम्बर 1936 को जन्मी माला सिन्हा अभिनेत्री नरगस से प्रभावित थीं और बचपन से ही उन्हीं की तरह अभिनेत्री बनने का ख्वाब देखा करती थीं. उनका बचपन का नाम आल्डा था और स्कूल में पढने वाले बच्चे उन्हें ..डालडा.. कहकर पुकारा करते थे. बाद में उन्होंने अपना नाम अल्बर्ट सिन्हा की जगह माला सिन्हा रख लिया.
गुरूदत्त की 1957 में प्रदशत क्लासिक फिल्म .प्यासा ने उनको स्थापित किया . निर्माता.निर्देशक बी.आर.चोपड़ा की 1959 में प्रदशत फिल्म ..धूल का फूल .. के हिट होते ही वे स्टार बन गईं . गुमराह ,,,वक्त ...के अलावा बहू रानी 1963 जहां आरा 1964 और हिमालय की गोद में 1965 से उनकी पहचान बनी . अभिनेता धमेन्द्र के साथ खूब जमी .सबसे पहले यह जोड़ी 1962 में प्रदशत फिल्म ..अनपढ़ ..में पसंद की गयी.इसके बाद इस जोड़ी ने पूजा के फूल 1963 , जब याद किसी की आती है नीला आकाश 1965 बहारे फिर भी आयेगी 1966 और आंखे 1968 जैसी सुपरहिट फिल्मों में काम किया.संजीव कुमार के साथ ..कंगन ..राजेश खन्ना के साथ ..मर्यादा ..और अमिताभ बच्चन के साथ संयोग ..खास तौर पर उल्लेखनीय है .
माला सिन्हा की फ़िल्में
माला सिन्हा ने लगभग 100 फिल्मों मे काम किया . इनमे रंगीत रातें 1956,प्यासा 1957, धूल का फूल 1959,धर्मपुत्र 1961 अनपढ़ हरियाली और रास्ता 1962, गुमराह 1963 जहांआरा 1964, जब याद किसी की आती है , हिमालय की गोद में मेरे हुजूर 1969 ,गीत 1970 , मर्यादा 1971, कर्मयोगी 1977 खेल 1994 याद की जाती है। माला सिन्हा ने जब नेपाली फिल्मों के हीरो सीपी लोहानी से शादी की तब तमाम चाहने वालों के दिल टूट गए .
उनके कुछ हिट गीत गुनगुनाएं ...
मिलती है जिंदगी में मोहब्बत कभी कभी
लता मंगेशकर, साहिर लुधियानवी, रवी,आंखे (1968)
गैरों पे करम, अपनों पे सितम
लता मंगेशकर, साहिर लुधियानवी, रवी,आंखे (1968)
हैं इसी में प्यार की आबरु
लता मंगेशकर, राजा मेहंदी अली खान, मदन मोहन,अनपढ़ (1962)
हम आपकी आँखों में, इस दिल को बसा दे तो
गीता दत्त - रफी, साहिर लुधियानवी, सचिनदेव बर्मन,प्यासा (1957)
इन हवाओं में, इन फिजाओं में,
आशा - महेंद्र कपूर, साहिर लुधियानवी, रवी,गुमराह (1963)
तसवीर तेरी दिल में जिस दिन से उतारी हैं
लता - रफी, मजरुह सुलतानपुरी, सलील चौधरी,माया
तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ
लता - महेंद्र कपूर, साहिर लुधियानवी, धूल का फूल (1959)
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