12 वीं पास ऐक्ट्रेस मंत्री
मंगलवार, 27 मई 2014
प्रथम ग्रासे मक्षिका पातः -पहले कौर में मक्खी की तर्ज पर एक मंत्री निशाने पर हैं। वजह क्या है कि एक 12 वीं पास ऐक्ट्रेस मंत्री कैसे बन गई। वो भी मानव संसाधन विकास मंत्रालय की जिसके तहत देश के दो लाख से अधिक प्राध्यापक और दो सौ से अधिक कुलपति आते हैं। अब बराय मेहरबानी इस बात पर भी एका हो कि इस ख़ास मंत्रालय के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए। मंत्री पी एच डी-डी लिट हो या हॉवर्ड रिटर्न हो। और ये भी तय हो कि कोई निरक्षर मंत्री बन सकता है या नही?
निरक्षर ज्ञानी हो सकता है मगर साक्षर ही ज्ञानी होगा इसकी क्या गारंटी है?
जिनकी चौपाइयां बांच रहा ये देश वे गोस्वामी तुलसीदास किस स्कूल में ग्रेजुएट हुए थे और जितने बड़े मनीषी दार्शनिक हुए वे कहाँ तक पढ़े थे। मंत्री तो बारहवीं पास है , यह मुद्दा एक तरफ कीजिए और अब शहरी समाज यह भी तय करे कि समान अवसर की नैसर्गिक और (कानूनी भी ) अवधारणा से उलट इस तरह की बौद्धिक अस्पृश्यता के कारण एक बड़ा निरक्षर तबका जो फटी चप्पलों में अपनी बेबसी को ढंके गांव से शहर आ कर किसी बिल्डिंग में घुसने की हिमाकत नही कर पाता उसके लिए... मैनेजमेंट स्कूल के सिलेब्स में लालू को पढ़ने वाले महानगरीय दबदबे वाले देश में सिर्फ फर्जी वायदे या उतरन वाले कपड़े पकड़ा कर पुण्यात्मा कहलाने के झुनझुने ही हैं या अधकचरी सभ्यता वाली हिकारत ही उसकी नियति है।
जब किसी की निरक्षरता को इंगित किया जाए तो यह भी देखा जाए कि पढ़ने के लिए उसके गांव में स्कूल था या नही। जब कोई निरक्षर मंत्री बनेगा तभी न उस दर्द को महसूस करेगा जो उसने भोगा है वर्ना अब तक का रिकार्ड निकालिए , माननीय मंत्री तो सुदूर जाना ही नही चाहते वे आंचलिक जनता का दर्द क्या महसूस करेंगे। निरक्षर-साक्षर कोई हो, काम नही करेगा तो हटा दिया जाएगा चुनाव में।
निरक्षर ज्ञानी हो सकता है मगर साक्षर ही ज्ञानी होगा इसकी क्या गारंटी है?
जिनकी चौपाइयां बांच रहा ये देश वे गोस्वामी तुलसीदास किस स्कूल में ग्रेजुएट हुए थे और जितने बड़े मनीषी दार्शनिक हुए वे कहाँ तक पढ़े थे। मंत्री तो बारहवीं पास है , यह मुद्दा एक तरफ कीजिए और अब शहरी समाज यह भी तय करे कि समान अवसर की नैसर्गिक और (कानूनी भी ) अवधारणा से उलट इस तरह की बौद्धिक अस्पृश्यता के कारण एक बड़ा निरक्षर तबका जो फटी चप्पलों में अपनी बेबसी को ढंके गांव से शहर आ कर किसी बिल्डिंग में घुसने की हिमाकत नही कर पाता उसके लिए... मैनेजमेंट स्कूल के सिलेब्स में लालू को पढ़ने वाले महानगरीय दबदबे वाले देश में सिर्फ फर्जी वायदे या उतरन वाले कपड़े पकड़ा कर पुण्यात्मा कहलाने के झुनझुने ही हैं या अधकचरी सभ्यता वाली हिकारत ही उसकी नियति है।
जब किसी की निरक्षरता को इंगित किया जाए तो यह भी देखा जाए कि पढ़ने के लिए उसके गांव में स्कूल था या नही। जब कोई निरक्षर मंत्री बनेगा तभी न उस दर्द को महसूस करेगा जो उसने भोगा है वर्ना अब तक का रिकार्ड निकालिए , माननीय मंत्री तो सुदूर जाना ही नही चाहते वे आंचलिक जनता का दर्द क्या महसूस करेंगे। निरक्षर-साक्षर कोई हो, काम नही करेगा तो हटा दिया जाएगा चुनाव में।
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