काली परत में लिपटा छत्तीसगढ़

रविवार, 15 जून 2014


यह हादसा भोपाल गैस त्रासदी जैसा रूप ले सकता था, लेकिन गनीमत रही कि इसका दायरा सीमित रहा।छत्तीसगढ़ में इंसानी जान कितनी सस्ती है, इसका अंदाजा इस्पात मंत्रालय के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भिलाई स्टील प्लांट में गुरुवार को हुए कार्बन मोनोऑक्साइड गैस रिसाव की उस घटना से लगाया जा सकता है जो टाली जा सकती थी। राजधानी रायपुर से 30 किलोमीटर दूरस्थ प्लांट में गैस लीक होने से धमाका हुआ था। घटना से पहले कबूतर मर कर गिरे तब हड़कम्प मचा मगर तब तक देर हो चुकी थी। गैस की चपेट मे आने से स्टील प्लांट, सीआईएसएफ और फायर ब्रिगेड के 06 व्यक्तियों की मौत हो गई है जबकि 34 लोग घायल हैं। घायलों में से 11 की हालत गंभीर है। एक की मौत भगदड़ के बाद पानी में डूबने से हुई।  दरअसल प्लांट के ब्लास्ट फर्नेस नंबर 2 में पाइप से जहरीली गैस का रिसाव पहले से ही हो रहा था जिसे सुधारने का काम जारी था। इसी का निरीक्षण करने के लिए डीजीएम तथा एजीएम स्तर के अधिकारी गुरुवार को पहुंचे थे। 
पड़ताल के मुताबिक प्लांट के अंदर एक पंप हाउस में मेंटिनेंस के दौरान पंप फटने से हादसा हुआ। पंप फटने की वजह से उसके ऊपर से जाने वाली गैस पाइप लाइन भी फट गई जिससे कार्बन मोनोआक्साइड का रिसाव शुरू हो गया। जीसीपी वॉल्व के फटने से पानी, क्लोरीन और सल्फर युक्त पानी रिसने लगा। पानी की पाइप लाइन के साथ ब्लास्ट फर्नेस को दी जाने वाली गैस की पाइप लाइन भी यहीं बिछी हैं। जहरीली गैस के गंधहीन तथा रंगहीन होने के कारण इसकी जानकारी तभी मिल पाई जब मौत के साये की परछाई वहां पर पड़ी। कर्मचारियों ने मीडियो को बताया कि वहां पर एक यंत्र लगा था जिससे जहरीली गैस का पता चलना चाहिए था लेकिन यह यंत्र काम नहीं कर रहा था। घटना की जानकारी मिलने पर वहां पहुंचे अफसर भी इसकी जद में आ गए। दमकल विभाग और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षाबल के जवानों ने ब्लास्ट पाइप लाइन को बंद करने का प्रयास किया, पर वे भी जहरीली गैस चपेट में आ गए। इसे लेकर आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण पर भी सवाल उठने लगे हैं। यह बात भी सामने आई है कि ब्लास्ट फर्नेस में ऑक्सीजन की व्यवस्था भी नहीं थी। हादसे के वक्त ऑक्सीजन सिलेंडर की भारी कमी रही। ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं होने की वजह से दुर्घटना के शिकार लोगों को सेक्टर-9 लाना पड़ा। सेक्टर-9 अस्पताल की कर्मचारी यूनियन ने कई बार भिलाई स्टील प्लांट प्रबंधन को आगाह किया था। भिलाई स्टील प्लांट 60 एकड़ में फैला है लेकिन राहत कार्य के लिए मात्र एक एंबुलेंस मौजूद है। कलक्टर आर. शंगीता के मुताबिकएडीएम सुनील जैन को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया है जो सुरक्षा इंतजाम, मौत के कारण, दोष सहित समेत आवश्यक बिन्दु पर जांच संयंत्र अधिनियमों के तहत करेंगे। बीएसपी की ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष केडी प्रसाद ने बताया कि यह पूरे बीएसपी परिवार के लिए दुखद घड़ी है। सीटू के अध्यक्ष एसपी डे कहना है कि बीएसपी का आपदा प्रबंधन बहुत कमजोर है। हादसा होता है, तो 10 किमी दूर से एम्बुलेंस बुलानी पड़ती है।
इससे पहले भी राज्य में कोरबा में बाल्को संयंत्र में 2009 में चिमनी हादसे में आधिकारिक तौर पर 41 कर्मचारियों की मौत कई सवालों को जन्म दे चुकी है। छत्तीसगढ़ के सांसद और इस्पात राज्य मंत्री विष्णुदेव साय भी अभी तक पूरे मामले में बोल नहीं पाए हैं। सर्वाधिक प्रदूषक स्पंज आयरन कारखाने व सीमेंट उद्योग हैं।
प्रदूषण झेलता छत्तीसगढ़ 
समूचा शहर काली परत में लिपटा नजर आता है। शहर की वायु में आर्गेनिक कार्बन, ब्लेक कार्बन, क्रोमियम, मैग्जीन, निकिल,आर्सेनिक, मरकरी, वेनेडियम, जिंक, कॉपर, लेड, कोबाल्ट,एन्टीमनी जैसे करीब 24 जहरीले तत्व घुले हुए हैं। अस्पताल में अस्थमा व श्वांस के रोगी हर साल 20-25 प्रतिशत बढ़े हैं।  यह मुद्दा राज्य के औद्योगिक प्रदूषण से जुड़ा है। एक साल के भीतर रायपुर जिले के महज 195 उद्योगों में 17 को नोटिस और तीन उद्योग को बंद करने के निर्देश दिए गए हैं।  भिलाई समीप सिलतरा, उरला आदि इलाकों में स्पंज आयरन उद्योग 46, सीमेंट उद्योग दो, पॉवर जेनरेशन कंपनियां 30, राईस मिल 281, प्लास्टिक उद्योग 153, रि-रोलिंग मील 191, मिनी स्टील प्लांट 90 व अन्य छोटे-बड़े उद्योगों के कल-कारखानें चल रहे हैं। अकेले रायपुर में 2506 छोटे-बड़े उद्योग चल रहे हैं। बीते बरस 1395 उद्योगों की सैंपलिंग जांच की गई है। इनमें से 103 को नोटिस थमाया और 72 उद्योग बंद करने के निर्देश दिए गए हैं जबकि नौ मामले कोर्ट पहुंचे हैं। भिलाई से आने वाली काली धूल और सिलतरा एवं उरला के उद्योगों की धूल उत्तरी व पश्चिमी हवाओं के चलते रायपुर को कालिख से भर देती हैं।
-जहरीली गैस का रिसाव पहले से हो रहा था, इसलिए अधिकारी पहुंचे थे गैस रिसाव की जानकारी देने वाला यंत्र कार्य नहीं कर रहा था 
-कर्मचारी रंगहीन और गंधहीन गैस होने के कारण कबूतरों के मरने पर ही हड़कंप मचा 
-दुर्घटना के वक्त ‘ब्लास्ट फर्नेस’ में आक्सीजन सिलेंडरों की भारी कमी थी 
-अग्निशमनकर्मियों ने पाइप लाइन बंद करने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे इसके चलते आपदा प्रबंधन की कमियों पर भी सवाल उठने लगे हैं 
-भिलाई प्लांट में एक एम्बुलेंस है, 10 किमी दूर से एम्बुलेंस मंगानी पड़ती हैं
-हवा के जहरीले तत्वों से कैंसर व दमा के रोगी बढ़ रहे हैं।
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update november 2017
 सरकार ने राज्य के छह बड़े शहरों में दिसम्बर और जनवरी माह में पटाखे फोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
पटाखे जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए पर्यावरण विभाग ने राज्य के छह प्रमुख शहरों रायपुर, बिलासपुर, भिलाई, दुर्ग, रायगढ़ और कोरबा में दिसम्बर और जनवरी माह में पटाखे फोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध प्रतिवर्ष एक दिसम्बर से 31 जनवरी तक होगा।

पर्यावरण प्रदूषण को मापदंडों के अनुरुप रखने के उद्देश्य से आवास एवं पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव अमन कुमार सिंह ने  वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जिलों के कलेक्टर्स, एसपी, RTO, नगर निगम आयुक्त, CMO और पर्यावरण अफसरों की महत्वपूर्ण बैठक  ली. उन्होंने  अफसरों से दो-टूक कह दिया कि इन निर्देशों के अलावा भी शासन पर्यावरण से जुड़े हर मामले में जीरो टॉलरेंस का सख्ती से पालन करने जा रहा है। राजधानी समेत प्रदेशभर में पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए शासन ने होटलों और ढाबों में कोयला और लकड़ी जलाने पर बैन लगा दिया है। सभी को गैस सिलेंडरों का इस्तेमाल करना होगा। यही नहीं, नगर निगम भी शहरी इलाकों में ठंड में अलाव उन्नत चूल्हों पर ही जला सकेंगे, ताकि प्रदूषण कम हो।  जिला प्रशासन एवं पर्यावरण मंडल को मिलकर प्रदूषण को कम करने के उपाय करने होंगे। उन्होंने कहा कि कंस्ट्रक्शन साइट्स पर पर्यावरण विभाग के नियमों का पालन होे, साइट पर ग्रीन नेट लगाने के साथ ही मेटेरियल का परिवहन ढंककर किया जाए और यह इधर-उधर न पड़ा रहे, इसकी मानीटरिंग करनी होगी। यही सख्ती सरकारी निर्माण एजेंसियों पर भी की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि ठंड में शहरों में जलाए जाने वाले अलाव का सिस्टम बदला जाए और यह क्रेडा के उन्नत चूल्हों में जलाया जाए। आवास पर्यावरण सचिव संजय शुक्ला ने बताया कि इससे हवा के प्रदूषण में 40 फीसदी की कमी होगी। मुख्यमंत्री रमन सिंह और आवास एवं पर्यावरण मंत्री राजेश मूणत के निर्देशों के अनुरूप प्रदूषण रोकथाम के लिए लगातार कार्वाई की जा रही है, जिसके फलस्वरूप वायु प्रदूषण का स्तर काफी कम हुआ है।

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