18वें बरस में छत्तीसगढ़
शुक्रवार, 17 नवंबर 2017
नवंबर 2000 में मध्यप्रदेश से
अलग होकर एक नया राज्य छत्तीसगढ़ बना था। एक छोटे से
राज्य के रूप में उदित हुआ छत्तीसगढ़ अपनी स्थापना के 18वें वर्ष में प्रवेश कर गया
है। विकास तो हुआ है जो बताने के काबिल है। एक छत्तीसगढ़ जो स्मार्ट सिटी रायपुर, दुर्ग,
बिलासपुर और दीगर शहरों में नजर आता है जहां कुछ ख़ास इलाकों में अचंभित कर देने वाली
शान का किसी आदिवासी को सहमा देने वाला रूतबा है, प्रगति पथ की धाक है, चमचमाती हाई
मास्ट लाईटें हैं और दूसरी तरफ बहुतेरे छोटे खूबसूरत गांव -कस्बे हैं ..जहां नागरिक
सुविधाएं और एक समूची पीढ़ी को गांव में ही टिकाए रखने के अवसर चाहिए .. शहर और गांव
के बीच की खाई है.. यह बताता है कि सफर अभी बहुत लंबा है..मीलों चलना है।
राज्योत्सव में लोगों को संगीत और लोकनृत्य
के अनेक रंग देखने को मिले.. ख़ास तौर पर आए
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने छत्तीसगढ़ राज्योत्सव के समापन समारोह में शहीद जवानों
को याद किया । उन्होंने कहा कि जवानों ने कुर्बानी नहीं दी होती तो आज हम यह उत्सव
भी नहीं मना रहे होते। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने नया रायपुर में पांच दिवसीय राज्योत्सव
का शुभारंभ किया।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने
रायपुर आ कर कहा कि आयोग ने राज्य सरकार को आश्वासन दिया है कि छत्तीसगढ़ के विकास
के लिए नीति आयोग पूरी मदद करेगा. कुमार ने कहा कि छत्तीसगढ़ में तेज गति से विकास
हुआ है और इसे और तेज होना है. आदिवासी क्षेत्रों में जहां गरीबी ज्यादा है, वहां और
भी बेहतर काम करने की जरुरत है. वहीं, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अधिक काम
करने की जरुरत है.
उन्होंने कहा कि राज्य में कुपोषण तथा
संपर्क साधनों पर भी काम करने की जरूरत है. यहां बहुत से ऐसे इलाके हैं जहां रेल, सड़क
और टेलीकॉम की सुविधा अन्य स्थानों के मुकाबले कम है. इस क्षेत्र में भी काम करने की
जरूरत है.
कुछ मसले अहम् हैं। छत्तीसगढ़-झारखंड-उड़ीसा के सीमाई जंगलों में उन्मत जंगली हाथियों के झुंडों
और इंसानी बस्तियों के बीच अरसे से भिड़ंत चल रही है। वर्चस्व कायम रखने के इस शुध्द
नैसर्गिक संघर्ष में फिलहाल हाथी ही आगे हैं लेकिन जब भी हाथियों को गुस्सा आता है,
वे मानव बस्तियों में घुसकर उन्हें रौंद डालते हैं और फसलों को जितना चट करते हैं,
उससे अधिक नुकसान पहुंचा जाते हैं।दरअसल, झारखंड
अलग राज्य बनने के बाद वहां जारी उत्खनन और पेड़ों की कटाई के चलते हाथी जंगलों को
छोड़ रहे हैं। वे झुंडों में चिंघाड़ते हुए राज्य की सीमाओं को चुनौती देते हैं। मूलत:
शाकाहारी इस प्राणी ने इंसान की मुश्किल बढ़ाई जरूर है लेकिन उसकी मुश्किलें भी कम
नहीं हैं। दांत वाले हाथी घात लगाकर गोली दागने वालों से डरे रहते हैं और लंबे अरसे
तक हिंसक बने रहते हैं। उनसे छेड़छाड़, पथराव, बम-पटाखे, ढोल-नगाड़े बजाने जैसी कोशिशों
के कारण उनका क्रोधित हो जाना स्वाभाविक है। नेचर क्लब बिलासपुर का मानना है कि वन्य
प्राणियों का लगातार होता शिकार और उनके निवास क्षेत्र में इंसानी अतिक्रमण उनके अस्तित्व
के लिए खतरे की घंटी है। नवनिर्मित छत्तीसगढ़ में वन्य प्राणी संरक्षण की नीति को कारगर
बनाने की जरूरत है। सरकार को सुरक्षित वन क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यान एवं अभयारण्यों
की सीमा रेखा में वन ग्रामों का सीमांकन करना चाहिए। वनों की कटाई हाथियों ही नहीं,
दीगर जानवरों के लिए भी बेहद मुश्किलों का सबब बनती जा रही है।
पिछले कुछ समय में नक्सलवाद भारत की आन्तरिक
सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद कैंसर की तरह
फैल चुका है और प्रथम स्टेज पर ही बीमारी को टालते रहने का नतीजा यह हुआ है कि अब यह
पूरी तरह जानलेवा बन चुका है लेकिन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी हाल में इंटरव्यू में
कहा कि विकास कार्यों के चलते नक्सलवाद की समस्या अपने अंतिम दौर में है। देश में नक्सलवाद के खिलाफ अंतिम लड़ाई छत्तीसगढ़
में होगी। बस्तर अंचल में नक्सल विरोधी अभियान जारी रहेगा।
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1 comments:
छत्तीसगढ़ हमें अपनी शरण में ले लो..........हम है, विश्व प्रसिद्ध ओडिशा के कालाहांडी के निवासी
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