शान्ति की कामना में बस्तर के आदिवासी

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009


छत्तीसगढ़ को किसी जमाने में शान्ति का टापू कहा जाता था लेकिन आज हालात ऐसे नहीं हैं बस्तर की शांत वादियों में बन्दूक और बारूद की गूँज है और हजारों साल से जंगल की लौकिक तपस्या में लीन आदिवासी पुलिस बनाम नक्सली मुठभेडों से त्रस्त हो चुके हैं| एक आम शहरी अब पेड़ों की छाँव और झरनों की गोद में सुस्ताने के इरादे से बस्तर जाने का ख्वाब जरूर देखता है लेकिन उसको मालूम है कि बस्तर में नीरवता और सन्नाटे की उसकी कामना रक्तरंजित क्रान्ति के आधुनिक प्रणेताओं और उनसे लोहा ले रहे सुरक्षा बालों ने छीन ली है

बस्तर को अब शान्ति चाहिए यह बात यंहा के आदिवासी पिछले पांच सालों से सलवा जुडूम की भाषा में कह रहे हैं| सलवा जुडूम (शान्ति के लिए जनजुडाव) आन्दोलन बस्तर में १९९५ में इसी इरादे से शुरू हुआ था लेकिन यह अलग बात है कि इसमें भी शहर की राजनीति ने अड़ंगा लगा कर इसे सरकारी शिविरों में कैद कर दिया| आज भी करीब ५० हजार लोग नक्सलियों के भय से राहत शिविरों में रह रहे हैं लेकिन आदिवासियों का दर्द यह है की उनकी बात न तो सरकार सुन रही है ना नक्सली जो उनके रहनुमा बन कर जंगलों में आए थे लेकिन अब हालात यह हैं कि आदिवासियों को नक्सली भी मार रहे हैं| आदिवासी की दिक्कत देखिये, पुलिस उससे मुखबिरी कराना चाहती है और वह मुखबिरी करता है तो नक्सली उसकी जान के दुश्मन बन जाते हैं| उसके सामने दोनों तरफ से मुश्किल|

बस्तर में जा कर किसी आम नागरिक से बात की जाए तो उसका पहला सवाल यही होता है कि यह कब तक चलेगा? अव्वल तो बाहर से जाने वाले हर इंसान को आदिवासी शक की निगाह से देखते हैं क्योंकि हालात ही ऐसे हो चुके हैं कि पुलिस और नक्सली दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं| पुलिस ने अब सख्त आक्रामक रवैया अख्तियार करना शुरू कर दिया है तो नक्सली भी पलटवार में जब भी उनको मौका हाथ लगता है, वे सुरक्षा बलों से भरी हुई जीप विस्फोट के जरिये उड़ा देते हैं| छत्तीसगढ़ में इस साल अब तक २५० लोगों की ह्त्या हो चुकी है जिसका सीधा सम्बन्ध नक्सली मामले से है| नक्सलवाद के सूरमा अब निहत्थे आदिवासियों पर निशाना साध रहे हैं और आदिवासियों से भरे ट्रक को विस्फोट के जरिये उड़ा रहे हैं| बस्तर में स्कूल भवन ध्वस्त नजर आते हैं क्योंकि नक्सली यह कह कर भवन को बर्बाद कर देते हैं कि इन भवनों में सुरक्षा बल को ठहराया जाता है| बस्तर में भीतरी इलाकों में घुसते ही एक अजीब सी सिहरन और आतंक मिश्रित डर की भावना पूरे रास्ते आपके साथ चलती है जब आप चौपाया किसी वाहन में चलते हैं| क्या पता कब कोई गोली आकर आपकी खोपडी उड़ा दे या जिस गाडी में सवार हैं, वह किसी लैण्ड माइन की चपेट में आ जाए? आए दिन बस्तर में बिजली के पोल गिरा कर समूचे इलाके को मध्य युग में धकेल दिया जाता है| नक्सली यह कहते हैं कि सरकार की बिजली भी नहीं चाहिए| बस्तर में शुद्ध पेयजल आज भी झरने से ही मिल सकता है और जब झरने सूख जाते हैं तो आदिवासी कीचडयुक्त झिरिया से पानी पीते हैं|

बस्तर में एक और समस्या से आए दिन लोग परेशान होते हैं- जब भी पुलिस कोई बड़ा अभियान चला कर नक्सलियों को मारती है तो नक्सली संगठन बंद का आव्हान करके पूरे इलाके में सड़क परिवहन ठप कर देते हैं| हाल में एक अजीब से फरमान से सभी ट्रांसपोर्टर परेशान हैं| नक्सली फरमान है कि किसी भी पुलिसवाले को बस में नहीं बिठाया जाए| इस फरमान से डरे बस चालकों ने बसें खड़ी कर दी| सरकार की समस्या असल यह है कि बात किससे की जाए? सरकार कहती है कि पहले बंदूकें छोड़ कर बात के लिए नक्सली आगे आएं जबकि नक्सली कहते हैं कि हमारे पास बन्दूक है तभी तो सरकार बात के लिए आगे आती है

एक टिप्पणी भेजें

संपर्क

Email-cgexpress2009@gmail.com

  © Free Blogger Templates Columnus by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP