गायब होती गईं 46 हजार आदिवासी लडकियां
मंगलवार, 15 दिसंबर 2009
छतीसगढ़ की आदिवासी लड़कियों को फुसला कर ले जाने और बाहर बेचे जाने के मामले में लगातार उठती गूँज ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं जो यकीनन किसी बड़े मानव तस्करी गोरखधंधे की तरफ इशारा करते हैं| विधानसभा में विपक्ष ने पिछले सत्र में इस बाबत राज्य सरकार की जम कर खिंचाई की थी और कानून व्यवस्था से जुड़े इस मामले में मंत्री का संतोषजनक जवाब नहीं आने से नाराज कांग्रेस सदस्यों सदन से बहिर्गमन कर के विरोध भी जताया था !
सरकार ने विधानसभा में स्वीकार किया है कि राज्य में आदिवासी लड़कियों की गुमशुदगी के पिछले नौ वर्षों में 46हज़ार 860 मामले दर्ज हो चुके हैं! शिकायतों में यह पाया गया है कि एक बाकायदा रैकेट सक्रिय है जो प्लेसमेंट एजेंसी की आड़ में लड़कियों को नौकरी के ख्वाब दिखा कर महानगरों में ले जाता है, जंहा लड़कियों को घरेलू नौकरानी या दीगर काम धंधों में लगा दिया जाता है! एक बार जो लडकी उनके चंगुल में फंसती है वह दुबारा वापस नहीं आ पाती! कई लडकियां गलत-धंधों में फंसा दी जाती है|
कांग्रेस के नंदकुमार पटेल ने आरोप लगाया है कि आदिवासी इलाके में यह धंधा कई वर्षों से संगठित रूप से फल-फूल रहा है ! 16 हज़ार युवतियां गायब हैं जिनका कोई अतापता नहीं चल रहा है! उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस की नाक के नीचे खुलेआम लड़कियों की तस्करी हो रही है! लड़कियों के शोषण की अनेक घटनाएँ सामने आ चुकी हैं! युवतियों को विदेश में ले जा कर बेच दिया जाता है! जशपुर, रायगढ़ इत्यादि इलाकों में यह काम संगठित रूप से किया जा रहा है!
पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी का भी आरोप है कि यह बेहद संगीन मामला है और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है! आदिवासी बेटियाँ बेची जा रही हैं! सरकार ने इस मामले में विशेष प्रकोष्ठ गठन का वायदा किया था! हश्र हुआ?
इस मुद्दे पर गृह मंत्री ननकीराम कँवर का कहना है कि पुलिस के प्रयास से कई मामले सुलझाए जा चुके हैं! उन्होंने माना कि सात हज़ार 311 मामले में गुमशुदा लोगों का अभी तक कोई सुराग नहीं है और इनको लापता मान लिया गया है लेकिन पुलिस ऐसे मामलों पर लगातार नज़र रखे हुए है और यह मानव तस्करी का नहीं व्यापार का मामला है१ लापता लोगों को खोजा जा रहा है!
दरअसल मानव तस्करी से जुड़े रेकेट के दलाल न सिर्फ छत्तीसगढ़ में बल्कि उडीसा और झारखंड जैसे पिछडे राज्यों में अपना तंत्र फैलाए हुए हैं और लड़कियों को अछ्छी नौकरी का लालच दे कर फुसला कर ले जाते हैं| छत्तीसगढ़ का बगीचा,जशपुरनगर इत्यादि इलाके में प्रायः हर दसरे घर से कोई न कोई लडकी बाहर है | कुछ मामलों में लडकियां घर आ भी जाती हैं लेकिन अधिकतर महानगर में हमेशा के लिए गुम हो जाती हैं| इन लड़कियों के साथ जो हादसे पेश आते हैं उनको बयान करने वाला भी कोई नहीं होता| प्लेसमेंट एजेंसियों के दलाल इलाके में खुलेआम साइन बोर्ड लगा कर धंधा कर रहे हैं ,उन पर निगरानी रखने वाला तंत्र फिलहाल तो निष्क्रिय नजर आता है | इलाके के आशा जैसे संगठन इस बाबत अपनी आवाज कई मंचों पर बुलंद कर चुके हैं|
2 comments:
रमेश भईया इस गोरखधंधे की फुसफुसाहट यदा कदा सुनने में आ रही थी किन्तु यहां 46 हज़ार 860 मामले के रिकार्ड को पढकर बहुत आश्चर्य हुआ, इसके बावजूद सरकार इस पर संवेदनशील है ऐसा मुझे नहीं लगता.
सरकार इस पर संवेदनशील है ऐसा मुझे नहीं लगता. संजीव के कथन से मै भी सरोकार रखता हुँ।
एक टिप्पणी भेजें