छत्तीसगढ़ : नौ बरस चले अढ़ाई कोस
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009
छत्तीसगढ़ को अस्तित्व में आए हुए ९ साल पूरे हो रहे हैं और इन वर्षों में एक राज्य के रूप में यह नवोदित राज्य पूर्णतः बीमारू राज्य की श्रेणी से निकल कर अपने पाँव पर दौड़ते राज्यों की पंक्ति में आ गया है | दिल्ली से १३०० किलोमीटर की दूरी पर मौजूद इस राज्य में एक तरफ बस्तर जैसे इलाके में ४००० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को जकड़े अबूझमाड़ जैसा पाषाणयुगीन आदिम सभ्यता वाला ठेठ जंगली इलाका है, दूसरी तरफ रायपुर,बिलासपुर,भिलाई,दुर्ग,रायगढ़ और कोरबा जैसे नगरीय इलाके भी हैं जहां इन बीते वर्षों में हाई टेक ऊंची इमारतों का संजाल बिछ रहा है और शॉपिंग काम्पलैक्स ,गगनचुम्बी आवासीय फ्लैट्स,आलीशान मॉल्स भी तैयार खड़े हैं|
राजधानी रायपुर में अत्याधुनिक निर्माण तकनीक से बना गौरव पथ और फ्लाई ओवर भी हैं और बस्तर में किसी पेड़ के नीचे चलती हुई पाठशालाएं भी हैं| माना एयरपोर्ट पर यात्रियों के लिए शीतल जल प्रदान करने वाली वाटर प्यूरीफिकेशन मशीने भी हैं और आदिवासी इलाके में सदियों से गर्मियों में पेयजल के निमित्त बनाई जाने वाली "झिरिया" भी हैं जहां किसी पोखर में जल को छान कर पानी पिया जाता है|
राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में बिजली, सड़क निर्माण, ढांचागत सुधार और लोक निर्माण से जुडी योजनाओं के क्षेत्र में निस्संदेह काफ़ी काम नजर आता है लेकिन सामाजिक विकास के मानकों पर आज भी हालात चिंताजनक हैं और क़ानून व्यवस्था के मोर्चे पर तो हालात रोजाना बद से बदतर हो रहे हैं | नक्सली समस्या राज्य का नासूर बन कर उभरी है और इस वजह से आज भी कुछ जिलों में क़ानून और व्यवस्था के नाम पर संगठित हिंसक समूहों की हुकूमत चलती है|
छत्तीसगढ़ की ताजा पहचान यह है की देश भर में नक्सली हिंसा के सर्वाधिक मामले इस राज्य से ताल्लुक रखते हैं और आंकड़ों के मुताबिक़ इस साल अब तक कोई ५०० से ज्यादा लोग नक्सली हिंसा के शिकार हो कर अपनी जान गंवा चुके हैं| नक्सलियों को खदेड़ने का अभियान कब तक सफलीभूत होगा यह दावा कोई नहीं कर पा रहा है| राज्य में बिजली के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति का आलम यह रहा की पावर कट फ्री स्टेट बन जाने के दो साल बाद भी राज्य की पहचान नक्सल समस्या की वजह से नकारात्मक है और राज्य में आदिवासी इलाकों में पिछड़ेपन की समस्या जस की तस कायम है| आप कल्पना कर सकते हैं कि देश का एक इलाका ऐसा भी है जहां पिछले कई दशकों से किसी भी शहरी आदमी के कोई कदम नहीं पड़े? जहां आज भी आदिवासी नंग-धडंग रहते हैं और सरकार का कोई भी कारिन्दा वंहा राजस्व सर्वे के लिए नहीं जा पाया है| अबूझमाड़ के इस भूभाग में आज भी नक्सलियों के स्थायी शिविर हैं और पुलिस भी वहाँ जाने से थर्राती है|
छत्तीसगढ़ अलग राज्य बन जाने से इतना जरूर हुआ है कि जब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश में शामिल था तब इलाके में विकास के लिए भोपाल से साल भर में अधिकतम 5०० करोड़ रूपये विकास के मद में आते थे लेकिन अब राज्य का योजना बजट २० हजार करोड़ से भी ऊपर जा पहुंचा है और सबसे बड़ी बात यह है कि राज्य में ५० से भी अधिक बिजली बनाने वाली कंपनियों के एम्ओयूं हो कर काम चालू है जिसका लाभ यह होगा की योजनाएं अगर सचमुच धरातल पर आ गयी तो राज्य में १० हजार मेगावाट बिजली सरप्लस होगी जिससे दीगर राज्यों को भी लाभ मिलेगा लेकिन सामाजिक मोर्चे पर हालात आज भी राष्ट्रीय चिंता के विषय बनते हैं जब शिशुमृत्यु दर में कोई कमी नहीं आने के आंकड़े जारी होते हैं| यह घोषित होता है कि रायपुर देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की कतार में है और देश भर में सबसे ज्यादा कुष्ठ के रोगी छत्तीसगढ़ में हैं| स्वास्थ्य, शिक्षा, आदिवासी कल्याण, पेयजल, रोजगार, सिंचाई जैसे क्षेत्रों में काफी काम की गुंजाईश के बावजूद छत्तीसगढ़ के साथ अस्तित्व में आए दो नए राज्य उत्तराखंड और झारखंड की तुलना में छत्तीसगढ़ ढांचागत विकास से छलांग लगा कर कई क्षेत्रों में काफी आगे निकल गया है जिसमे सबसे अहम् मानकों में योजना व्यय पर पूरा नियंत्रण और स्थापना व्यय में संतुलन के लिए पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी भी राष्ट्रीय स्तर पर सराहे जाते रहे और मौजूदा मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने आर्थिक मोर्चे पर वित्तीय अनुशासन रख कर एक रूपये किलो चावल की सरकार को सालाना ३००० करोड़ रुपयों का भार देने वाली योजना भी मिसाल के रूप[ में पेश कर दी जिसको दूरी पार्टियों ने भी अपने राष्ट्रीय एजेंडे में शामिल किया है| इसका असर यह हुआ है कि छत्तीसगढ़ में पलायन की समस्या पर काफी अंकुश लगा लेकिन यह आलोचना भी हो रही है कि लोगों को एक रूपये किले चावल दे कर सरकार गरीब को गरीब ही बना रही है और इस सरकारी रसद (माह में प्रत्येक व्यक्ति को ३५ किलो चावल) दे कर सरकार मुफ्तखोरों की पीढी तैयार कर रही है| सिर्फ चावल से लोगों का भला नहीं होने वाला है| लेकिन मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह इस आरोप से इनकार करते हैं और उनका कहना है कि राज्य में पलायन रोकने के लिए यह जरूरी था और सरकार की यह योजना आगे भी जारी रहेगी|
नया राज्य बन जाने के बावजूद छत्तीसगढ़ में राजनीतिक मोर्चे पर भारी अशांति और अस्थिरता जैसी कोई समस्या नहीं है जैसी कि झारखंड में है और इस वजह से सलवा जुडूम जैसे आन्दोलन भी भाजपा और कांग्रेस मिलकर चला लेते हैं| यह अलग बात है कि नक्सलियों के खिलाफ शुरू हुआ यह आन्दोलन अब दम तोड़ गया है और इससे जुड़े हजारों आदिवासी नक्सलियों के भय से राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं| बस्तर में बड़े संयंत्र लगाने का नक्सली संगठन विरोध कर रहे हैं और जो मौजूदा कारखाने हैं उनके कारण शहरों में ही नहीं गावों में भी प्रदूषण फैलने से विपक्षी ही नहीं सत्तारूढ़ भाजपा से भी प्रदूषण के खिलाफ तीखी आवाजें सुनाई पड़ रही हैं| भाजपा विधायक देवजी पटेल के मुताबिक़ प्रदूषण के कारण सबका जीवन दूभर हो चुका है और इस समस्या से निजात के लिए वे लम्बी लड़ाई भी लड़ने के लिए भी तैयार हैं| राज्य में नेता प्रतिपक्ष रवीन्द्र चौबे कहते हैं कि नक्सली अब हीरा खदान क्षेत्र तक आ पहुचे हैं जो राजधानी के समीप है लेकिन सरकार का रवैया अभी भी नहीं बदला है| निश्चित रूप से नक्सली समस्या राज्य की सबसे विकराल समस्या बनी नजर आती है जिससे जूझ रहे सुरक्षा बलों को केंद्र से हरी झंडी का इन्तजार है| आपरेशन शुरू नहीं हो पाने के कारण राज्य में इसको लेकर अनिश्चितता का माहौल है और फिलहाल तो यह समस्या राज्य में सबसे बड़ी समस्या के रूप में सामने है|
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