कोया कमांडो

सोमवार, 31 मई 2010


कोया कमांडो एस पी ओ (विशेष पुलिस अधिकारी) के रूप में आपरेशन ग्रीन हंट के जरिये नक्सलियों के किले में घुस कर नक्सलियों से लोहा ले रहे हैं|1880 में अंग्रेजों के खिलाफ इस जनजाति ने तगड़ा मूमेंट चलाया था|कोया मूलतः गोदावरी जिले के उत्तर में पहाड़ियों पर बसे हुए हैं और आंध्र प्रदेश, उड़ीसा व छत्तीसगढ़ में जंगल में ही रहते आए हैं|
कोया कमाडो को जंगल की लड़ाई में दक्ष और आक्रामक माना जाता है| कोया कमांडो बने कई युवा पहले नक्सली थे या हिंसक वारदातों के कारण जेलों में बंद थे | सलवा जुडूम आन्दोलन के बाद इस जनजाति के कई युवा शान्ति की खातिर पुलिस बल से जा मिले | यह जनजाति इतनी जीवट होती है कि मौत को सामने देख कर भी कोया रोया नहीं करते| बारूदी विस्फोट में घायल कोया कमांडो कमल सिंह उसी बस में सवार था जो विस्फोट का शिकार बनी लेकिन बुरी तरह जख्मी होने के बावजूद कमल सिंह ने नक्सलियों के ऊपर फायरिंग की और उनको भगा दिया| अस्पताल में भर्ती ऐसे कई कोया कमांडो बयान दे चुके हैं कि अब मौक़ा मिला तो वे जरूर लड़ेंगे| राज्य में लगभग 3,500 एसपीओ स्थानीय युवक हैं। ये सारे युवा बस्तर के जानकार हैं और गश्त में सुरक्षा बलों के आगे चलते हैं और जंगल के हर हालात से वाकिफ हैं|
कोया कमांडोज़ को बस्तर में कुछ साल पहले तैनात नगा बटालियन ने प्रशिक्षण दिया था । नगा बटालियन को जंगल की लड़ाई में अत्यंत कुशल माना जाता है| कोया जनजाति के लड़ाकू जज्बे को देखते हुए फ़ोर्स ने उनको प्रशिक्षित किया| स्थानीय आदिवासी होने की वजह से इन्हें इलाके के जंगल, पहाड़ और नदी-नालों की बखूबी जानकारी है। स्थानीय बोली की इनको पूरी जानकारी है और स्थानीय लोगों का भी इन्हें सहयोग मिल जाता है। कोया जनजाति का इतिहास सदियों पुराना है|

2 comments:

कडुवासच 31 मई 2010 को 4:34 am बजे  

...प्रभावशाली पोस्ट !!!

Unknown 2 सितंबर 2014 को 9:03 am बजे  

शानदार रमेश भैय्या जी

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