नक्सलवाद पर जो भी बोला खुल कर बोला

सोमवार, 14 जून 2010


रायपुर में रविवार को सचिदानंद उपासने और शताब्दी पांडे ने नक्सलवाद पर एक सार्थक संगोष्ठी आयोजित की जिसमे जो भी बोला खुल कर बोला और उससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक यह रहा कि श्रोता भी तालियाँ पीट कर अपनी सहमति का इजहार करने में पीछे नहीं रहे | रायपुर में मैंने वो दौर भी देखा है जब कोई नक्सली वारदात हो जाती थी तो आमतौर पर एक सन्नाटा सा व्याप्त हो जाता था| अब इधर जब से बस्तर की लाल हवाओं ने पूरे राष्ट्रीय परिदृश्य में अपनी तपिश कायम की है तो यहाँ के बुद्धिजीवी भी सक्रिय हुए हैं| गोष्ठी में पर्यटन मंत्री और बेबाक वक्ता बृजमोहन अग्रवाल, सांसद नन्द कुमार साय, आर एस एस से जुड़े राजेंद्रजी, आर एस नायक , संसदीय सचिव महेश गागडा तो बोले ही पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन ने भी एक्स टेम्पो वक्तव्य दे कर पुलिस महकमे पर किये जा रहे प्रहारों पर अपनी तरफ से सफाई दी और इस लड़ाई को थोपने वालों के खतरनाक इरादों और गंभीर खतरों के प्रति चेतावनी दी|
शहीद स्मारक हाल में एसी और पंखे काम नहीं कर रहे थे और उमस ने खचाखच भरे सभागार में सबको बेचैन कर रखा था मगर विषय के प्रति एक किस्म की बौद्धिक ललक में सुनने और समझने के लिए जमे बैठे श्रोता पूरे समय तालियाँ पीटते रहे| नक्सलवाद के नाम पर लोगों का खून बहा रहे चंद भटके हुए लोगों के प्रति लोग कितने बेचैन हैं यह इस आयोजन में साफ़ नजर आया| बृजमोहन ने कहा कि वे लगातार यह कहते रहे हैं कि तिरुपति से लेकर पशुपति तक लाल कारीडोर बनाने वाले लोग प्रजातंत्र को निगल जाना चाहते हैं और यह जो बार-बार कहा जाता है कि आदिवासी उनके साथ हैं दरअसल वे क्या जानें कि आदिवासी की क्या मजबूरी है| वे तो मजबूर हैं और भय के कारण उनके साथ हैं| बस्तर में जो एन जी ओ चल रहे हैं वे अपना हित साध रहे हैं| नक्सली आदिवासी का भला चाहते हैं तो वे उनका सस्ता चावल और नमक क्यों लूट लेते हैं? बृजमोहन ने मीडिया को भी सनसनीखेज ख़बरों के लिए आड़े हाथ लिया |
राजेन्द्र जी ने सीधे तौर पर पुलिस को आड़े हाथ लिया और बोले कि जो अफसर नक्सली मोर्चे पर काम ना कर पाएं उनको वापस बुला लिया जाए और केंद्र सरकार सोचे कि इस समस्या का इलाज क्या है| जी-२४ घंटे चैनल के प्रमुख आर एस नायक ने दो टूक कहा कि मारना है तो पहले उनके सरदार को मारा जाए तभी नक्सलवाद की कमर टूटेगी | जो लोग जुनूनी होते हैं उनको प्यार की भाषा समझ नहीं आती|नक्सली हमारी सेनाओं से ज्यादा लड़ने का मनोबल लिए चल रहे हैं|
साय ने कहा कि नक्सलवाद का इलाज राष्ट्रवाद ही है| एक आदिवासी होने के नाते सोचा गया कि साय का भाषण कुछ अलग होगा मगर वे यहाँ भी एक नेता की तरह बोले|
विश्व रंजन ने सबसे पहले कह दिया कि मैं अपनी पीठ नहीं थपथपाऊंगा |आंध्र में नक्सलियों से लड़ना आसान था क्योंकि वे गुरिल्ला लड़ाई लड़ रहे थे मगर अब वे सैन्य प्रशिक्षण के साथ और अत्याधुनिक हथियारों के साथ लड़ रहे हैं और उनके मास्टर माईंड लोगों के दस्तावेज बताते हैं कि उनका लक्ष्य आदिवासी कल्याण नही बल्कि सत्ता कब्जाना है| यह लड़ाई दरअसल अच्छे और बुरे की है| पुलिस महकमे में पुराने अफसरों के दावों और आलोचनाओं से घिरे विश्व रंजन ने कहा कि कुछ लोग अपने अनुभव के गुलाम हो जाते हैं जबकि वह अंतिम सत्य नहीं होता| और कोई भी लड़ाई जीरो केजुअल्टी से नहीं लड़ी जा सकती है| उन्होंने मीडिया से हौसला अफजाई की उम्मीद की और बताया कि वे पहले पुलिस अफसर हैं जो अबूझमाड़ में पैदल घूम चुके हैं|
नक्सलवाद के नाम पर बेबस और मजबूर लोगों का खून बहाने , आदिवासियों का गला रेत कर मौत के घात उतारने और सिर्फ एक अदद नौकरी की खातिर ड्यूटी करने वाले गरीब और मध्य वर्ग के पुलिसकार्मिकों को विस्फोट से मारने का यह जो खूनी दौर इन दो-तीन सालों में शुरू हुआ है उससे छत्तीसगढ़ का आम नागरिक दुखी है| बुद्धिजीवी वर्ग में वो तबका जो कभी वामपंथ की तरफ रुझान के कारण नक्सलियों के प्रति चुप्पी साध लेता था वो भी इस खून-खराबे की खिलाफत में है| कुछ अरुंधती राय जैसी जमीनी हकीकत से नावाकिफ नेत्रियाँ (एक्टीविस्ट) जरूर बेलगाम हो चुके रक्त पिपासुओं का समर्थन कर रही हैं| मगर जिस दिन वे छत्तीसगढ़ आ कर महीने भर रह लेंगी शायद उनको अपने विचार बदलने पड़ेंगे| नक्सली ही नहीं जो भी संगठन हिंसा में यकीन रखता है वह निंदा का ही पात्र रहेगा| गोली कभी भी बोली का विकल्प नहीं बन सकती| आपको सत्ता चाहिए तो चुनाव लड़िये और जाईये संसद में, बदलिए क़ानून| कल्पना की जा सकती है उन आदिवासियों की जो मुक्त जीवन जीते रहे हैं और अब धमाकों ने उनका जीना दूभर कर दिया है| हम यदि आदिवासी का भला चाहते हैं तो उनको उनके हाल पर छोड़ दें| नक्सली भी सोचें कि बस्तर को इन बीस -तीस सालों में उन्होंने कहाँ से कहाँ ला पटका है|

3 comments:

36solutions 14 जून 2010 को 10:31 am बजे  

रिपोर्टिंग के लिए धन्‍यवाद भईया, हम इस संगोष्‍ठी में चाह कर भी नहीं आ पाये थे.

SAMEER 19 जून 2010 को 2:30 am बजे  

bahut achhi reporting....dhanyvad aapka

Amitabh Mishra 7 अगस्त 2010 को 9:28 am बजे  

बंधु, अब तो यह आप भी जानते ही होंगे कि अरुंधती जैसे लोग नावाकिफ नहीं हैं. ये लोग बड़े चालाक लोग हैं और खतरनाक दुष्प्रचार के सहारे बहुत सारे अज्ञानियों को गुमराह करने का कार्य करते हैं. ऐसा ये केवल अपने रोजी-रोटी के जुगाड़ और चर्चा में बने रहने के लिए करते हैं. साथ ही इनकी नज़र मैगसेसे और नोबल जैसे पुरस्कारों पर भी रहती है. इनसे बड़ा देश का और जनता का दुश्मन कोई नहीं है.

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