काल सलाम

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010


आमतौर पर अपनी विचारधारा के लिए सराहे और बुद्धिजीवी वर्ग में भी "हमारे अपने भटके हुए लोग" मान कर पुचकारे जाने वाले नक्सली मानवता को कलंकित कर रहे हैं और सभ्यता से तो उनको कभी कोई लेना-देना नहीं था, हैवानियत के मामले में भी लिट्टे और तालिबान को मात दे रहे हैं| रायपुर लाए गए 27 जवानों के शवों की हालत बताती थी कि उनके साथ कितना क्रूर बर्ताव किया गया था| जो जवान मारे गए वे ड्यूटी कर रहे थे और वे किसी और देश के नहीं इसी देश के नागरिक थे|रोजी-रोटी की खातिर फ़ोर्स में भर्ती हुए थे और हुक्म था इसलिए तैनात थे| पहला वार भी उनने नहीं किया था|

27 जवानों की हत्या के बावजूद कुल 63 सदस्यीय अभियान दल में ज़िंदा बच गये बहादुरी से लड़े चार जवान परमानद, अनिल, अजय और शफीकुल रायपुर में अपना इलाज करा रहे हैं। इन सीआरपीएफ जवानों ने घटना का जो विवरण पेश किया है, वह साबित करता है कि नक्सली जितने क्रूर और निर्मम हैं उतने ही कायर भी हैं। वे छुप कर बैठे हुए थे और इस बार उन्होंने अकस्मात् फायरिंग कर के एक झटके में करीब दस जवान हलाक कर दिए। चारों तरफ से गोलियों की बौछार ने सर्चिंग करने निकले और हर तरह के खतरे से निपटने के लिए तैयार जवानों के बीच हडकंप का माहौल बना दिया जो सारे अंदेशों के बावजूद पल भर के लिए पेड़ की छांव तले खड़े थे। उनको पोजीशन लेने का भी मौका नहीं मिला। परमानंद के मुताबिक हमारे जो साथी कुछ मिनट पहले साथ में चल रहे थे वे निर्जीव थे। ऊपर आसमान से बूंदें आ रही थी और सामने से गोलियों की बौछार.. सोचने-समझाने का वक्त ही नहीं था। जिसने पोजीशन ले ली वह बच गया। यह हमला इतना अकस्मात् और ताबड़तोड़ था कि एकबारगी होश गुम कर देने के लिए काफी था मगर जिसे जहां जगह मिली वहीं पोजीशन ले ली और फायरिंग का जवाब फायरिंग से दिया। हर कोई मौत के मुंह में फंसा था और उस वक्त एक चीज समझ में आ रही थी कि लड़ो और मारो वरना मारे जाओ। अपने साथियों के खून से लथपथ शवों के बीच शोक और सदमे के हालात थे| गोलियां चारों तरफ से आ रही थी।
शहीद जवानों के शवों का परीक्षण करने वाले रायपुर के आंबेडकर अस्पताल के डाक्टर भी नक्सलियों के क्रूरता के गवाह बने हैं। गले रेतने और अंग-भंग के शिकार जवान हुए| डॉक्टरों के मुताबिक नक्सली हमले में तीन जवानों की गला काट कर हत्या की गयी थी और दो जवानों सिर कुचल कर मारा गया था। कुछ जवानों के हाथ पांव भी काटे गये थे। मुठभेड़ के दौरान हर जवान को तकरीबन तीन से चार गोलियां मारी गयी। मारने का ढंग बताता है कि नक्सलियों ने सारी हदें पार कर ली हैं| आदमी को काटता है आदमी | इस सदी की सबसे बड़ी नीचता| शिशुपाल की सौ गलतियां पूरी हो चुकी हैं और अब कृष्ण की बारी है| कलिकाल में सुना है कल्की अवतार होना है|मैं मानता हूँ कि यह अवतार दिव्य शक्ति से लैस हो यह बिलकुल काल्पनिक है मगर समझना यह चाहिए कि सेना के रूप में भी यह अवतार हो सकता है जिसकी मांग लगातार उठ रही है| समस्या का इलाज हो,यह जरूरी है| बातचीत से हो यह सर्वश्रेष्ठ है, मगर जिसकी बोली ही गोली हो उनको समझाने के लिए श्रीमान माओ त्से तुंग को कहाँ से लाया जा सकता है|

मलहम से क्या होगा जख्म नासूरी है
जख्म का इलाज तो काँटा और छुरी है

5 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish 2 जुलाई 2010 को 4:36 am बजे  

रब खैर करे।
………….
दिव्य शक्ति द्वारा उड़ने की कला।
किसने कहा पढ़े-लिखे ज़्यादा समझदार होते हैं?

shikha varshney 3 जुलाई 2010 को 10:07 am बजे  

Uff काश कोई इन्हें थोड़ी सी इंसानियत सिखा सकता ...ये मिलेगा इन्हें ये सब करके.

नवीन 3 जुलाई 2010 को 9:27 pm बजे  

उम्दा लेख .... पर छत्तीसगढ़ की भौगोलिक स्थिति को देखकर क्या आपको लगता है कि यहा सेना उतारने से कुछ हासिल होगा , हो सकता है कि इससे कुछ हद तक इस समस्या से हमे निज़ात मिल जाए पर उसके बाद खड़ी होने वाली समस्याओं से हम कैसे निपटेंगे , क्या हम सेना उतार कर वन पुत्र भोलेभाले आदिवासियों को सही मायने में न्याय दिला पाऐंगें , इस तरह के कई कारण है जिसके बारे मे राज्य और केन्द्र सरकार भी पुरी तरह वाकिफ है । क्या सेना का इस्तेमाल ही सही विकल्प है ये तो उस तरह होगा कि घर से चूहे भगाने के लिए बिल्ली पाल लो जब बिल्ली परेशानी खड़ी करे तो कुत्ते के विकल्प पर विचार करों , क्या सही मायने में इस तरह कभी समस्या कभी सुलझ पाऐंगा ?

अहफ़ाज रशीद 8 जुलाई 2010 को 5:34 am बजे  

achchhi soch..

रवीन्द्र गोयल 3 अगस्त 2010 को 7:27 am बजे  

बहुत अच्छे जनाब, दिलजले लगते हो

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