आह!गडकरी, वाह!गडकरी

शनिवार, 17 जुलाई 2010

भाजपा ने 1980 में अपनी स्थापना के बाद से इतना विवाद नहीं झेला होगा जितना श्री नितिन गडकरी के अध्यक्ष बनने के बाद से वह झेल रही है| ताजा विवाद, विवादों को हमेशा लपकने और अपने मनमाफिक रंगत देने में माहिर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के साथ उनके बयानों को लेकर हुआ है जिसमे गडकरी उलझे हुए नजर आते हैं| इससे पहले वे लालू और मुलायम के बारे में तलवे चाटने वाला बयान दे कर खेद जता चुके हैं|

अब यह विवाद उनको लम्बे अरसे तक नाहक विवाद में घसीटेगा और सबसे बड़ी चीज जो दाँव पर लग गयी है वो है भाजपा की साख जिसे गडकरी से पहले अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवानी इतनी मजबूती तो दे ही गए थे कि आने वाले दस साल तक गडकरी अध्यक्ष ना भी रहें तो उन दोनों के नाम पर पार्टी चल सकती है| हैरत और मलाल इस बात का है कि भाजपा के अशोक रोड स्थित दफ्तर में मैं पत्रकार के रूप में जाता रहा हूँ और पार्टी के कई नेताओं को जूझते -लड़ते-भिड़ते विपक्ष से सत्ता के शिखर तक पहुचने के कई एतिहासिक मौकों का बतौर रिपोर्टर साक्षी भी रहा हूँ| भाजपा को मैंने एक ऐसी पार्टी के रूप में पाया है जिसमे नेता भाषा का तो संयम बरतते ही पाए गए हैं| इक्का -दुक्का अपवाद तो हो सकते हैं मगर अमूमन 'तलवे चाटने' और 'कौन किसकी औलाद है' जैसे बयान तो देते हुए किसी को नहीं सुना गया|

भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है. और एक मज़बूत विपक्ष के रूप में संसद में कांग्रेस के बाद दूसरे नंबर पर है |सात बड़े-बड़े राज्यों में वह सरकार चला रही है. मगर गडकरी लगातार नागपुर महानगर पालिका की सोच से बाहर ही आते नजर नहीं आते| अध्यक्ष बने उनको सात महीने हो रहे हैं मगर भाषणों के जरिये विवाद और खंडन-मंडन के अलावा उनके खाते में सिर्फ बिला-वजह की बयानबाजियां दर्ज हैं | ऐसे बयान जिनका स्तर एक राष्ट्रीय पार्टी के मुखिया का तो होना ही नहीं चाहिए था मगर यह हो रहा है और मजे की बात है कि लोग मजे ले रहे हैं| पार्टी का एक बड़ा वर्ग शायद यह मान कर चुप है कि अब दुबारा सत्ता में आने के लिए एक और आपातकाल और फिर लंबा विपक्षी अनुभव झेलना ही पडेगा क्योंकि न कोई लहर है न कोई मुद्दा है| एक बड़ा वर्ग किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में है| मामला अध्यक्षजी का है लिहाजा साधारण कार्यकर्ता मन मसोसे बैठे हैं|

हाल में भाजपा से निलंबित पूर्व भाजपा सांसद एवं कांग्रेस महासचिव दिग्विजयसिंह के अनुज लक्ष्मणसिंह ने एक बयान में कहा है कि यदि गडकरी अपने कथन पर माफी नहीं माँगते, तो वे ऐसे दल मे रहने को तैयार नहीं हैं। सिंह ने कहा कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी में राजनीतिक अनुभव की कमी है तथा उनका संबोधन सुनने के बाद अधिवेशन में ही मेरी उनसे मिलने तक की इच्छा नहीं हुई थी। भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी तक भाषा के संयम को लेकर गडकरी को नसीहत दे चुके हैं।

श्री गडकरी के बयानों का ग्राफ बताता है कि वे ठाकरे स्टाईल में किला फतह करना चाहते हैं मगर दिक्कत यह है कि उनकी आक्रामकता के कारण पार्टी को बार-बार सफाई की मुद्रा में आना पड़ रहा है| भाजपा के शिखर नेता अब सोच रहे होंगे कि अटल और आडवानी की जगह कब भरेगी? प्रेक्षकों की राय में वह शायद ही भर पाए क्योंकि जब समय था तब जनाकृष्णमूर्ती से लेकर वेंकैया नायडू तक के प्रयोग किये गए और पार्टी के वट वृक्षों तले किसी पेड़ को हरा-भरा होने के पहले निकाल दिया गया या राह नहीं मिली तो वे खुद निकल गए| भाजपा अब गडकरी को ना उगल पा रही है ना गटक पा रही है|

4 comments:

फ़्र्स्ट्रू 17 जुलाई 2010 को 12:36 pm बजे  

गडकरी जी कुछ करो यार, लोग बाग आपकी बजाने पे तुले हुए हैं.

ब्लॉ.ललित शर्मा 17 जुलाई 2010 को 7:52 pm बजे  

अच्छी पोस्ट रमेश भाई
गुड़करी जी ऐसे ही गुड़ते रहेंगे।
समय मिले तो सम्पर्क करना।

मस्त रहो मस्ती में,आग लगे बस्ती में

मर्द को दर्द,श्रेष्ठता का पैमाना,पुरुष दिवस,एक त्यौहार-यहाँ भी देखें

कडुवासच 18 जुलाई 2010 को 9:48 am बजे  

... प्रभावशाली पोस्ट!!!

पंकज कुमार झा. 20 जुलाई 2010 को 5:14 am बजे  

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय.
औरों को शीतल करे, आपुही शीतल होय.
बहुत अच्छा लिखा है आपने रमेश जी....वैसे क्या कहें ..यह मीडिया पर भी निर्भर करता है कि किस तिल को कब टार बना दें...अन्यथा लालू और मायावती जैसे लोग तो ऐसे जुबान का इस्तेमाल कर-कर ही राजनीति में ज़िंदा हैं....लेकिन फिर भी भाजपा जैसी पार्टी के अध्यक्ष से तो वाणी का संयम अपेक्षित है ही.....सादर.
पंकज झा.

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