जांबाज़ कोया कमांडो
शनिवार, 7 अगस्त 2010
कल दंतेवाडा में नक्सलियों और जिला पुलिस बल के बीच हुई मुठभेड़ के बाद अब यह साफ़ हो गया है कि नक्सलियों के निशाने पर पुलिस नहीं कोया कमांडो ही थे जिनको नक्सली किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं| इसकी वजह बिलकुल साफ़ है कि कोया कमांडो नक्सलियों के बीच से ही निकल कर पुलिस बल से जा मिले हैं और यह "गद्दारी" नक्सली बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं| कल हुए हमले में करीब 70 जवान बाल-बाल बच गए। पुलिस ने जम कर गोलियों का जवाब गोलियों से दिया जिस वजह से नक्सली नुकसान में रहे| लड़ाई कई घंटे चली जिसमे जीत पुलिस और कोया कमांडोज़ की ही हुई| कोया कमांडोज़ ने घने जंगलों में पेड़ों पर चढ़ कर जिस प्रकार मोर्चा सम्हाला और डट कर नक्सलियों को भागने पर विवश किया उससे यह आशंका है कि नक्सली एक बार फिर खुन्नस ने कोया कमांडोज़ को निशाने पर लेने के लिए किसी भी हद तक जा गुजरेंगे|
कोया कमांडोज़ की मदद से पुलिस ने कुछ नक्सलियों को मार गिराने का भी दावा किया है। किरंदुल थाना क्षेत्र से एसटीएफ, जिला पुलिस बल और कोया कमांडो का संयुक्त दल गश्त के लिए रवाना हुआ था। दल जब किरंदुल थाना से लगभग 12 किलोमीटर दूर गुमियापाल के जंगल में पहुंचा तो नक्सलियों ने गोलीबारी शुरू कर दी।
कोया कमाडोज़ के प्रति नक्सलियों की नफरत यात्रियों से भरी बस को विस्फोट से उड़ाने की साजिश के रूप में पहले भी सामने आ चुकी है| 29 जून को नक्सलियों के निशाने पर दरअसल कोया कमांडो ही थे जो एस पी ओ (विशेष पुलिस अधिकारी) के रूप में आपरेशन ग्रीन हंट के जरिये नक्सलियों के किले में घुस कर नक्सलियों से लोहा ले रहे हैं|
सलवा जुडूम आन्दोलन के बाद इस जनजाति के कई युवा शान्ति की खातिर पुलिस बल से जा मिले और अब वे नक्सल विरोधी हैं| यह जनजाति इतनी जीवट होती है कि शेर भी सामने पड़ जाए तो कोया उससे भिड जाने का जोखिम तत्काल ले सकते हैं और मरने मारने से कोई संकोच नहीं करते| राज्य में लगभग 3,500 एसपीओ स्थानीय युवक हैं। ये सारे युवा बस्तर के जानकार हैं और गश्त में सुरक्षा बलों के आगे चलते हैं और जंगल के हर हालात से वाकिफ हैं|
कोया कमांडो से आमना-सामना हो जाए, तो देखा यही गया है कि नक्सली पीछे हट जाते हैं। पिछले पांच सालों के दौरान छत्तीसगढ़ की पुलिस ने ऐसे 600 से ज्यादा लड़ाकों को तैयार किया है। इन टुकड़ियों को इंसास के अलावा एके 47 एसॉल्ट राइफल से लैस किया गया है।
कोया नक्सलियों को पहचान लेते हैं और जंगल में मूवमेंट करने में उनको डर नहीं लगता क्योंकि वे भी जंगल में रहते हैं|
इन कोया कमाण्डोज की दंतेवाड़ा जिले के नक्सलियों के अन्दर दहशत है। इन कोया कमाण्डोज की सन् 2006 में विशेष पुलिस अधिकारी के पद पर भर्ती हुई थी। इन कमाण्डोज को तत्कालीन डी.जी.पी. ओ.पी. राठौर ने गुरिल्ला वार की विशेष ट्रेनिंग दिलावाई थी। कांकेर के जंगल वार फेयर कॉलेज की ट्रेनिंग से लेकर जम्मू-कश्मीर के भारतीय सेना के कैम्पों में इनको विशेष प्रशिक्षण दिया गया था। जम्मू में इनको प्रशिक्षण कर्नल रजनीश शर्मा के नेतृत्व में मिला। फिर इन कोया कमाण्डोज को दंतेवाड़ा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक राहुल शर्मा का नेतृत्व मिला | इन कोया कमाण्डोज को दंतेवाड़ा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक राहुल शर्मा ने नागा फोर्स के साथ भी प्रशिक्षण करवाया। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने केन्द्र द्वारा दिये जा रहे पंद्रह सौ रुपये में पहले छ: सौ पचास रुपये बढ़ाये थे। अब मानदेय पूरा तीन हजार कर दिया है, जिसके लिए मुख्यमंत्री धन्यवाद के पात्र हैं। इन विशेष पुलिस अधिकारियों को 2 रुपये किलो वाला चावल भी दिया जायेगा। इसके बावजूद भी जो मानदेय दिया जा रहा है, वह बहुत कम हैं,इन विशेष पुलिस अधिकारियों को कम से कम छ: हजार रुपये प्रतिमाह तो मिलना ही चाहिए साथ में वे सारी सुविधाएं भी मिलनी चाहिए जो आरक्षकों को मिलती हैं। जैसे जूते, वर्दी, आवास आदि की सुविधा। बीमा, प्रोविडेन्ट, पेंशन चिकित्सा सुविधा की भी इनको दरकार है।
अंतर्राष्ट्रीय समाचार एजेंसी आईएएनएस ने एक रिपोर्ट में माना है कि केन्द्र व राज्य सरकार ईमानदारी से नक्सलवाद से मुकाबला करना चाहती है तो छत्तीसगढ़ प्रदेश के तीस हजार नवयुवकों को कोय कमाण्डो की तरह शीघ्र तैयार करना चाहिए। नक्सल प्रभावित एक भी जिले का नवयुवक बेरोजगार नहीं रहना चाहिए। आदिवासी क्षेत्रों में विकास के कार्य तेजी से करने चाहिये। शिक्षा,चिकित्सा ,सड़क ,बिजली,पानी,कृषि आदि के विकास पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
इन कोया कमाण्डोज ने सन 2006 से मई 2010 तक लगभग 300 नक्सलियों को मुठभेड़ों में मार गिराया है। उनके हथियार व कुछ नक्सलियों के मृत शरीर भी बरामद किये थे। लैण्डमाइन्स की सर्चिंग में भी इन कोया कमाण्डोज का काफी योगदान रहा है।
1 comments:
उम्दा पोस्ट-सार्थक लेखन के लिए शुभकामनाएं
आपकी पोस्ट वार्ता पर भी है
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