दबंग वर्दी के दाग

बुधवार, 15 सितंबर 2010

पुलिस पर प्रताड़ना के आरोप कोई नई बात नहीं है| पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए कई आयोग बने और सिफारिशें अमल में लाई गयी लेकिन ढाक के तीन पात ही रहे हैं| छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के पुलिस कप्तान साहब रविवार को दबंग फिल्म देखने गए थे| उनकी सुरक्षा में लगे जवानो ने किसी बात से तैश में आ कर सिनेमाघर के गेट कीपर को इतना पीटा कि उस बेचारे की जान ही चली गयी| घटना के बाद दो सिपाहियों को मुअत्तल कर दिया गया है और न्यायिक जांच कराई जा रही है|

कुछ प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि एसपी साहब सादी वर्दी में थे लिहाजा भीड़ में जब वे निकले तो गेट कीपर उनको पहचान नहीं पाया और इस वजह से उनको भी भीड़ में रुकना पडा| बताते हैं कि गेट पर भीड़ थी लिहाजा भीड़ को आहिस्ता निकालने के लिए गार्ड ने सादी वर्दी में गए कप्तान साब को रोक दिया था| यह बात सिपाहियों को नागवार गुजरी | उनके जाने के बाद वे सब गार्ड पर पिल पड़े| बताते हैं कि आध दर्जन पुलिस वाले महेंद्र पर टूट पड़े थे और लात-घूसों से उसे पीटा गया| जब उसकी साँसें उखड़ने लगी तो सब भाग निकले| बाद में तारबाहर थाने से पुलिस पहुची और घायल पड़े महेंद्र को अस्पताल ले जाया गया जहां उसने दम तोड़ दिया|

घटना के बाद मृतक के गुस्साए साथियों ने मौके पर जो भी पुलिसकर्मी दिखा उसकी जम कर पिटाई की| पब्लिक की पिटाई से सिपाही दिनेश तिवारी घायल हो गया| पुलिस के आला अफसर मौके पर आए तो भीड़ ने उनको भी खदेड़ दिया|

पूरे शहर में तनाव के हालात के मद्दे नजर पुलिस बल तैनात किया गया| आखिरकार पुलिस के आला अफसरों ने मौक़ा मुआयना करके दो पुलिसकर्मियों के निलंबन की घोषणा की|

यह घटना बताती है कि पुलिस वाले कितने बेरहम हो सकते हैं| अगर मान लिया जाए गार्ड का कोई कसूर भी था तो इस वजह से उसकी ह्त्या का तो अधिकार पुलिस को नहीं मिल जाता| एक बात यह भी सामने आई है कि जो पुलिसवाले सस्पैंड हुए हैं वे नए-नए भर्ती हुए हैं ... तो जाहिर है कि उनकी ट्रेनिंग में जरूर कमी रह गयी थी और यकीनन गलत लोग भर्ती कर लिए गए | मान सकते हैं कि उन्होंने साहब की नजर में अपने नंबर बढ़ाने के लिए बल प्रयोग किया होगा जो कप्तान के लिए मुसीबत बन गया है| दिलचस्प यह है कि एसपी साहब ने पुस्तकें भी लिखी हैं और कई मार्मिक कविताएँ भी| लेकिन वे उस मार्मिकता को अपने सिपाहियों में नहीं उतार पाए| अब जांच में सारे तथ्य सामने आएँगे लेकिन यह बात बिलकुल साफ़ है कि पुलिस वालों को तनाव प्रबंधन और स्थितियों से निपटने के गुर अच्छे से सिखाए जाने चाहिए| दुर्दांत अपराधी और साधारण अपराधी में फर्क होना चाहिए| समाज में लोग गुस्से में तो हैं ही| इसके कई सामाजिक और अनेक कारण हैं मगर पुलिसवाले ही तैश में आ कर हत्याएं करने लगेंगे तो व्यवस्था कैसे चलेगी| और ज़रा सी बात का इतना जानलेवा पुलिसिया गुस्सा तो बेहद खतरनाक साबित हुआ है| कोई दबंग देख कर निकले और फिल्म का प्रभाव किसी की जान ले ले तो यह घटना एक साथ कई सबक लेने के लिए मजबूर करती है|

1 comments:

shikha varshney 15 सितंबर 2010 को 7:15 am बजे  

जब रक्षक ही भक्षक बन जाये तो क्या कहा जाये.

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