शुक्र है संकट टला

गुरुवार, 23 सितंबर 2010


कल 24 सितम्बर है. इसे मीडिया की मेहरबानी कहें या सरकारों और नेताओं की कि इसे एक ऐसा कुहासे से आशंकित दिन बना दिया गया है मानों कोई एक बड़ी घटना होने वाली है जिसके होने की सशंक प्रतीक्षा में कई लोग दुबले हो रहे है सिर्फ अंदेशे से| अंदेशा यह है कि कोर्ट से फैसला क्या आएगा| फैसले के बाद की संभावित स्थितियों को लेकर सारे इंतजाम हैं |ला एंड आर्डर की "स्थिति तनावपूर्ण मगर नियंत्रण में" करने तक| पूरा ध्रुवीकरण एक ऐसे फैसले पर है जिसे साठ साल से टाला ही गया था| अब कर रहे हैं मानो देश तैयार खडा हो| कोर्ट से जो भी फैसला आए उसके प्रभाव को लेकर व्यापक चिंताएं हैं| पूरा शहर छावनी बना नजर आता है| हर मोर्चे पर जवान और हर संदिग्ध की पहचान| तलाशी, एहतियात व निपटने का पूरा साजो सामान |
सुबह इस बात की चिंता कि बच्चे कल स्कूल जाएं या नहीं| स्कूल प्रबंधन परेशान|अपन तो बीच का रास्ता चुनते हैं| बेहतर हो आधे दिन की गणेश विसर्जन की छुट्टी ताकि बच्चियां सुरक्षित घर आ जाएं| यह क्यों बताया जाए बच्चों को कि टेंशन का माहौल है | बच्चों को फसाद ही नहीं उसके कारणों से भी दूर रखा जाना चाहिए यह मेरी राय थी जिसे मान लिया गया शुक्रिया |
खीझ इस बात की है कि पिछले साठ वर्षों बाद भी हम कितना बदले? आज भी हमारे देश में धर्म के नाम पर इतना मोबिलाइजेशन होता है जो दीगर समस्याओं को लेकर भी होना चाहिए| भूख, गरीबी. अशिक्षा , नक्सलवाद, लिंग परीक्षण , भ्रष्टाचार, दुराचार जैसे कई मुद्दे हैं मगर हम उनको तवज्जो नहीं दे पाते हैं और जब भी धर्म का मुद्दा उठता है तो आशंकाएं पूरे देश को दुश्चिंताओं के भवर में उलझा देती हैं| जो जोड़े वह धर्म और जो तोड़े वो कैसा धर्म| कितने दिहाड़ी मजदूर और अखबार नहीं पढने वाले लोग कल रोजी कमाने नहीं जा पाएंगे| एक आशंका पूरे समाज को गिरफ्त में ले चुकी है| कई पैरंट्स तो आज भी स्कूल पहुचे और गणेशजी एक दिन पहले विसर्जित कर दिए गए| वहां क्या बनाना चाइए ताकि झगड़ा ख़त्म हो इसे ले कर बहस चलती है मगर सर्वमान्य फार्मूला सामने आए तो बात बने| फिलहाल तो यह समस्या सामने रही है कि कल का दिन शान्ति से गुजरे और अब अयोध्या का फैसला मर्यादित रीति-नीति से हो वरना रावण तो तैयार बैठे लगते हैं मगर कुछ भी हो एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर रहे भारत में 1992 बीत चुका है और किसी भी सूरत में भाईचारे को बनाए रखकर धर्मांध और तिरंगा विरोधी ताकतों को 2010 में सही जवाब मिलना चाहिए। देश और आपसी सद्भाव से ऊपर कोई पूजाघर नहीं है। समरसता इस देश की गंगा जमुनी संस्कृति का हिस्सा है और समभाव भारत का आदि दर्शन रहा है|
चलते-चलते : शुक्र है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को हफ्ते भर तक टाल दिया है| गौर कीजिए, दोनों पक्ष कोर्ट में थे| दोनों ने कहा कि फैसला ही चाहिए | माननीय जज ने कहा कि जब आप इस मुद्दे पर राजी हो, एक हो तो आपस में भी राजी हो कर आगे तय कर लो और फैसला टल गया |

इस मौके पर दो कवित्त पुष्प की सुगंध आप भी लीजिए

घर से मस्जिद है बहुत दूर
चलो यूं कर लें -किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
- निदा फाजली

ऐसा कोई जहान मिले
चेहरे पर मुस्कान मिले
काश मिले मंदिर में अल्लाह
मस्जिद में भगवान् मिले
- गिरीश पंकज

6 comments:

shikha varshney 23 सितंबर 2010 को 4:11 am बजे  

क्या कहें क्षोभ होता है .काश मिडिया ही अपना फ़र्ज़ निभाता .

ब्लॉ.ललित शर्मा 23 सितंबर 2010 को 6:30 am बजे  

मिडिया को सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए....

नवीन 23 सितंबर 2010 को 7:29 am बजे  

कुछ दिनो पहले तो हमने ईद की सेवाईयां खाई थी,और कल ही गणेश का विसर्जन भी किया है ये भारत है यहां की भाईचारा की मिसाल पूरी दुनिया देती है,मुझे तो तरस आ रहा है ख़बरियां चैनलो पर बिचारो ने कल(24)को लेकर न जाने क्या क्या प्लान बनाऐं बैठे रहे होंगे सब धरी की धरी रह गई।

KISHORE DIWASE 23 सितंबर 2010 को 12:10 pm बजे  

Hiiii

Swarajya karun 24 सितंबर 2010 को 9:51 pm बजे  

जो इंसान को जोड़े वह धर्म , जो तोड़े , वह कैसा धर्म ? आपका आलेख निश्चित रूप से सार्थक और प्रासंगिक है . आभार .

bahujankatha 27 सितंबर 2010 को 7:55 am बजे  

आपकी यह टिप्पणी अयोध्या पर निर्णय की टली हुई तिथि पर पढ़ा। एक प्रवृत्ति तो साफ है कि हमने शुतुरमुर्ग की तरह अपनी समस्याओं से किनारा करने की आदत सी बना ली है। किसी तरह समस्या टल जाए बस। सौहार्द्र के नाम पर हम अप्रिय फैसलों को हमेशा टालते रहे हैं और जब वह नासूर बन जाता है तो...

एक टिप्पणी भेजें

संपर्क

Email-cgexpress2009@gmail.com

  © Free Blogger Templates Columnus by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP