वे जो हमसे बड़े हैं
सोमवार, 27 सितंबर 2010
सुबह एक अच्छी खबर से दिन का आगाज हुआ| खबर है कि छत्तीसगढ़ सरकार आगामी अक्टूबर माह में बुजुर्ग लोगों के लिए एक विशेष अभियान चलाएगी जिसमे एक जगह पर शिविर लगा कर उनके स्वास्थ्य परीक्षण से लेकर जरूरी मुफ्त चीजों के वितरण तक के कार्य संपन्न होंगे| यह खबर अखबार में प्रथम पृष्ठ पर नहीं किसी भीतरी पन्ने के निचले पायदान पर मिली लेकिन खबर ने मन को प्रसन्न किया| मैं जानता हूँ कि ऐसी वास्तविक मदद वाली योजना का खाका होता तो सबके मन में है मगर अमल में लाने का हौसला दिखाने वाले ही सराहे जाते हैं| दिल्ली में डा. हर्षवर्धन जब स्वास्थ्य मंत्री थे तब वे इसी तरह के अनूठे काम हाथ में लेते थे और यह बताने की जरुरत नहीं है कि भारत से पोलियो को उखाड़ फेंकने के वृहत अभियान चलाने का बीड़ा डा. हर्षवर्धन ने ही उठाया था| अब डा. रमन सिंह ऐसे कामों को आगे बढ़ा रहे हैं तो यकीनन उनकी साख और लोगों के दिल में उनके प्रति सम्मान में बढ़ोतरी ही होगी| राजनीति में एक चीज साफ़ दिख रही है कि जहां भी पढ़े लिखे लोग सत्ता या विपक्ष में हैं वहां चीजें बदल रही हैं | नजरिया बदला है और एक दिन शायद आए जब नेताओं से तौबा करने वाली जनता सचमुच अपने नायकों के ऊपर फख्र करे|
बताने की जरुरत नहीं है कि हमारे देश में बुजुर्गों की औसतन क्या स्थिति है| वे सिर्फ एक चलते-फिरते या सोए हुए या अध् सोए ऐसे सदस्य समझे जाते हैं जिनसे यही उम्मीद की जाती है कि टाईम पर खा लें और चुपचाप पड़े रहें| बोलना हो तो पूजाघर में सिर्फ मन्त्र बोलें या शादी ब्याह या किसी अन्य मौके पर आशीष वचन बोलें वरना चुप ही रहें|
भारत में एक हज़ार से भी अधिक वृद्धाश्रम हैं। वहाँ जा कर देखा जा सकता है कि यह वही देश है जहां वानप्रस्थ की कल्पना की गयी थी मगर समय ने सब कुछ बदल दिया और जिनको पकी उम्र में सहारा मिलना था वे बेसहारा कर के छोड़ दिए जाते हैं| कोई उनसे दो बोल भी नहीं बोलना चाहता है | आज घर से चला तो मुझे सड़क पर एक सज्जन दिख गए| वे साइकिल थामे चले जा रहे थे| मैंने मुस्करा कर देखा और रुका तो वे समझे कि मैं उनका कोई परिचित हूँ| वे लगे बताने- उम्र हो गयी है 90 साल | बस कट रही है| वगैरह वगैरह .. मैं आश्चर्य से भरा देखता रहा गया नब्बे की साल उम्र !! सड़क पर अकेले साइकिल थामे| प्रणम्य सेहत | ऐसा ही होता है| लोग चलते रहते हैं जब तक चल सकें| कुछ घरों में जरा सी दिक्कत पर डाक्टर बुला लिए जाते हैं मगर फिर भी तकलीफें हजार |
भारत सरकार की सीनियर सिटीजन की सुविधाओं को दर्शाने वाली वेबसाईट बताती है कि छत्तीसगढ़ में एक भी वृद्धाश्रम नहीं है? शायद इसका कारण कोई बता सके| मुझे लगता है कि अभी वो कल्चर यहाँ नहीं आया है जिसमे लोग पकी उम्र में ऐसे ठिकानों पर ढकेल दिए जाने के लिए मजबूर कर दिए जाते हैं| मगर इससे यह नतीजा निकाला नहीं जा सकता है कि यहाँ बुजुर्ग बहुत मजे में हैं| उनकी तकलीफें कम करने की दिशा में सरकार आगे आ रही है तो इसे एक सकारात्मक पहल ही माना जाए और दुआ कि वृद्धजन दिवस ( 1 अक्टूबर ) आशानुरूप मनेगा|
7 comments:
योजनाएं तो बहुत बनती हैं .काश कार्यान्वित भी काएदे से हो पायें.
जागरूक करती अच्छी पोस्ट.
डियर रमेश जी, आपने सीनियर सिटीजन की सुविधाओं को दर्शाने वाली वेबसाईट के हवाले से लिखा तो आपकी जानकारी में यह बात तो होगी ही कि छत्तीसगढ़ में वृद्धाश्रम हैं। अपने ही शहर में लायंस क्लब, रोटरी क्लब रायपुर वेस्ट के अलावा माना कैम्प में भी एक सरकारी वृद्धाश्रम है। यदि आप अपने ब्लॉग के जरिए या और किसी तरीके से भारत सरकार की उस वेबसाईट तक यह जानकारी पहुँचा दें तो कितना ही अच्छा हो। यदि हमारे प्रदेश को लेकर नकारात्मक सूचना कहीं प्रसारित हो रही हो तो मेरे अनुसार उसका प्रतिकार करने की ज़रूरत भी है। ऐसा भी नहीं है कि छत्तीसगढ़ में बुजुर्गों को घर के बाहर फेंकने की प्रवृत्ति नहीं है। मैं तो मानता हूँ कि हर जगह अच्छे-बुरे लोग रहते हैं। इसलिए यह कहना भी ठीक नहीं लगा कि छत्तीसगढ़ में ऐसा कल्चर नहीं है।
वृद्धजनों के लिए छत्तीसगढ़ में अक्टूबर में स्वास्थ्य शिविर लगाने की रमन सरकार की सार्थक पहल पर आपका आलेख भी सार्थक और प्रासंगिक है.आम तौर पर इस प्रकार की सरकारी पहल की ओर लेखकों का ध्यान कम ही जाता है, शायद यह उनके चिंतन और लेखन की प्राथमिकता में नहीं आता.भले ही वह सरकारी पहल मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण क्यों न हो ! लेकिन आपने किसी अखबार में छपे इस समाचार को एक वैचारिक आलेख का विषय बनाया , यह आपके रचनात्मक नज़रिए का परिचायक है. आगामी एक अक्टूबर को विश्व वृद्धजन दिवस है . इस मौके पर रमन सरकार द्वारा राज्य में माह भर स्वास्थ्य शिविर लगाने की पहल निश्चित रूप से स्वागत योग्य है. आलेख के जरिए वृद्धजनों के प्रति समाज के नजरिए में बदलाव लाने की आपकी कोशिश का भी स्वागत किया जाना चाहिए. आभार .
नजरिया बदला है और एक दिन शायद आए जब नेताओं से तौबा करने वाली जनता सचमुच अपने नायकों के ऊपर फख्र करे|
is din ka hum sabko intzaar hai.sarthak post.
बहुत भावुक मार्मिक एवं प्रासंगिक आलेख. मुख्य्धारा की मीडिया से उपेक्षित हो गए विषयों मे से एक पर की बोर्ड चलाकर वास्तव में रमेश जी असली पत्रकारिता का परिचय दिया है. ऊपर की एक प्रतिक्रिया बिना मतलब की लगी. आखिर सबको मालूम है कि बुरी और अच्छी चीज़ें हर जगह हुआ करती है. लेकिन इस अच्छाई को हम क्यू नही प्रकाशित करें कि अपने छत्तीसगढ़ में अभी भी परिवार व्यवस्था अपेक्षाकृत बेहतरतम है और इसलिए बुजुर्ग ज्यादे सुरक्षित हैं. बधाई रमेश जी...साधुवाद आपको.
पंकज झा.
संवेदनशील लेख। अच्छी जानकारी से युक्त।
संवेदनशील लेख। अच्छी जानकारी से युक्त।
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