सैल्यूट इंडिया
शनिवार, 2 अक्तूबर 2010
महात्मा गांधी और शास्त्रीजी की जयन्ती पर देश अब शायद पहली बार एक शान्ति और एक सुकून का अनुभव कर रहा है| अयोध्या पर फैसला आ चुका है| कोर्ट का नहीं भारत का, 21वीं सदी के भारत ने यह फैसला सुना दिया है कि दुनिया जिसे अब तक सांप सपेरों और ज़रा सी बात पर लड़-मरने के लिए उतारू होने वाले पिछड़े और दकियानूस लोगों का देश मानती थी वे समय के साथ अपनी सोच में आमूलचूल परिवर्तन लाने के साथ नए विश्व नागरिक बन गए हैं और अब ३ अक्टूबर से राष्ट्र मंडल खेलों का उदात खेल भावना और पूरे उचित माहौल में आनंद लेने के लिए तत्पर हैं| कहना न होगा कि अयोध्या फैसले पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी थी|यकीनन कुछ लोगों को और शायद कुछ देशों को भी यह उम्मीद रही होगी कि अयोध्या का जिन्न जिस दिन बोतल से बाहर आएगा भारत में 1992 फिर से दोहराया जाएगा और साम्प्रदायिक दंगे एक बार फिर से विश्व की बड़ी शक्ति बन कर उभर रहे भारत के भाल पर कलंक की नई कालिख पोत देंगे|मगर इस बार इतिहास पलटा और ऐसा मुझे लगता है सिर्फ मीडिया के कारण हुआ है| याद करें जब भी दंगे भड़के तो मीडिया या तो मौजूद नहीं था या उसकी भूमिका ही सीमित थी मगर इस बार फैसले के दिन पूरा मीडिया एक सुर में राग सौमनस्य गा रहा था| हालाकि कुछ भाई इतने उत्तेजित हो कर अयोध्या लाईव कर रहे थे कि उनकी उत्तेजना ने फसादी तत्वों को को भी एकबारगी सोचने के लिए मजबूर कर दिया होगा|हमेशा आग उगलने वाले धर्म-गुरुओं को भी फैसले पर संयम बरतते देखना सुखद लगा| कुल मिला कर कहें कि नगर निगम के नल से इस बार सब जगह गंगाजल बहता दिखा | देश ने एक सुर में.. एक सांस में और एकजुट हो कर बता दिया कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा|
और नक्सली भाई...
देश में जब फैसले के बाद सुखद बयार बह रही थी तो बस्तर में भी नक्सलियों के दिल पसीजे नजर आ रहे थे| नक्सलियों ने 12 दिनों तक बंधक बनाए रखने के बाद चार पुलिस कर्मियों को आजाद कर दिया| नक्सली गिरफ्त में एक पुलिसकर्मी की त्वरित प्रतिक्रया थी कि "भाईयों" ने मेरे साथ कोई बुरा व्यवहार नहीं किया|
सरकार की समझ, परिजनों की पीड़ा, पुलिस के संयम और बस्तर व आंध्र प्रदेश के पत्रकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की कई दिनों की मेहनत ने जंगली गुरिल्लों का दिल नरम किया| अब एक उम्मीद भी बंधी है कि बंदूकों और बारूदी धमाकों से तप कर थरथरा रही जंगल की फिजाओं में बंदूकों का सिर हमेशा नीचे रहेगा और गांधी के देश में शान्ति से सारे मसले हल होगे|
8 comments:
... saarthak abhivyakti !!!
आशा है हम सबका यह विश्वास लंबे समय तक कायम रहेगा.
बहुत अच्छी भावनाओं की बेहतरीन अभिव्यक्ति . आलेख का शीर्षक अगर'सैल्यूट इण्डिया'की जगह 'सलाम भारत' या 'सलाम हिन्दुस्तान' होता तो यह और भी अच्छा लगता .
डियर रमेश जी
आपकी बात सोलह आने ठीक है। मैं समझता हूँ कि सलाम भारत को बेहतर बताना अपनी जगह बुरा तो नहीं है लेकिन सवाल यह है कि मोबाईल और रेलगाड़ी की हिंदी क्या होगी! एक बात जब हिंदी की बढ़ोतरी की बात करते हैं तो यह बता दूँ कि अंग्रेज़ी की व्यापकता का सबसे बड़ा कारण है कि अंग्रेज़ी ने दूसरी भाषाओं के शब्दों में अपने में समाहित किया है। संकीर्ण दायरे से बाहर निकली इसलिए वह वैश्विक भाषा बन गई। ऐसा भी नहीं है कि हिंदी कहीं पीछे नहीं रही। वह भी विश्वव्यापी तो हो ही गई है, जब अमेरिका के राष्ट्रपति कहते हैं कि हिंदी सीखो वरना हिंदुस्तानी दुनिया पर राज करेंगे।
bilkul sach kaha hai aapne .
चलिये ऐसा ही हो तो अच्छा है ।
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