राज्योत्सव और सलमान खान
शनिवार, 30 अक्तूबर 2010
रायपुर में राज्योत्सव की शुरुआत 26 अक्टूबर को हुई| खुशी का मौक़ा था | दो राज्यों के मुख्यमंत्री भी थे | ... सलमान खान भी आए| आए क्या एक उद्योगपति उनको मुहमांगे दाम दे कर मुम्बई से उनके दबंगों समेत उठा लाए | सलमान के लिए रायपुर नया था और रायपुर वालों ने भी जता दिया कि वे स्टारों के ऊपर किस तरह न्योछावर होना जानते हैं| सल्लू मियाँ की जो इमेज है वो सबको पता है मगर यहाँ वे मंच पर मुश्किल से बारह मिनट रुके और एक चवन्नी छाप डायलाग भी सुना गए - "इतनी जगह से छेद कर देंगे कि..." सलमान को देखने उमड़े लोगों के सामने मैदान भी छोटा पड़ रहा था|
पहले तो भरोसा नहीं था कि सलमान आएँगे मगर आ गए तो सारा मंच गड़बड़ा गया | उदघोषिका को खुश करने के लिए सलमान ने जुमला सुनाया| गनीमत थी हमेशा की तरह अपनी शर्ट नहीं उतारी| सलमान ने दस का दम दिखा कर उद्योगपति की खुलेआम पब्लिसिटी की| फिर सवाल आया कि राज्य के गवर्नर और मुख्यमंत्रियों के साथ सलमान को मिला दिया जाए| सभी वीआईपी मंच के नीचे थे | सलमान मंच से उतरते तो यकीनन भगदड़ मच जाती लिहाजा उदघोषिका ने सबको मंच पर बुला लिया | अब मौके की नजाकत देखिए- अचानक गवर्नर को बलाया गया| वे नही जाते तो राज्य के अतिथि की अवमानना के सवाल उठते| भलमनसाहत देखिए गवर्नर भी मंच पर आ गए| सलमान सबसे मिले| मुख्यमंत्रीगण एक कतार में जुट कर सलमान से मिले | गवर्नर भी मिले|
इसी पर बवाल शुरू हो गया | बुद्धि-वमन जैसे हालात हैं| कई बड़े लिक्खाड़चंदों को भी यह मामला पच नहीं रहा है| जितने मुंह उतनी बातें,सुलगते सवाल कलमवीर उठा रहे हैं- गवर्नर साब के प्रोटोकाल का ध्यान रखना था, डा. रमन सिंह को यूँ लाईन लग कर सलमान से नहीं मिलना था| वगैरह वगैरह.. कई सवाल उठ रहे और कार्यक्रम की जम कर लानत-मलामत की जा रही है|मैं उस कार्यक्रम में नहीं था मगर मैंने सारा लाईव देखा है|इस मामले में अपनी साफ़ राय रखता हूँ-
यहाँ कुछ सवाल हैं- क्या तब किसी ने एक शब्द भी लिखा था जब आरोपी (भाई लोग अपराधी लिख रहे हैं) को लाने की ख़बरें आ रही थी? सलमान को कोई रामायण की चौपाईयां सुनवाने नहीं ला रहा था| तब किसी ने एक भी आपत्ति नहीं की, अब सब गरिया रहे हैं कि सलमान को क्यों बुलाया|राज्योत्सव की गरिमा के सवाल सलमान से तो नत्थी नहीं होने चाहिएं- सलमान से उम्मीद भी नहीं की जाए कि वे औपचारिक उद्बोधन देंगे जैसे बाकी मुख्य अतिथि देते हैं| यह सब तो उनको बुलाते समय देखा जाना था| जब बुला लिया तो यह तो देखा जाना था कि कार्यक्रम के मिनट्स क्या होंगे| और खुद सलमान को भी यह एहसास होना चाहिए था कि प्रोटोकाल क्या होता है| मंच से उनने खुद सबको बताया कि वे विख्यात सिंधिया स्कूल-ग्वालियर में पढ़े हैं| मौके की नजाकत राज्यपाल और मुख्यमंत्रियों ने समझ ली और मंच पर चढ़ गए| एन-मौके पर ऐंठते और मंच पर ही नहीं चढ़ते तो कितनी फजीहत मचती | गलती उद्घोषिका की थी मगर वो कौन था जो उनको लिख-लिख कर भेज रहा था जिसे वो पढ़ रही थी| इन सारे सवालों के जवाब लेने की बजाय भाई लोग लकीर को पीट रहे हैं जबकि सांप गुजर चुका है| 28 अक्टूबर को अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में अशोक चक्रधर, पद्मभूषण गोपाल दास नीरज, गजेंद्र सोलंकी, वेदव्रत बाजपेयी, शशिकांत यादव, कुंवर बैचेन, डॉ. सुरेश अवस्थी, डॉ. प्रवीण शुक्ला, पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे, ममता शर्मा, दानेश्वर शर्मा एवं मुकुंद कौशल अपनी कविताओं से लोगों को गुदगुदा गए पर इस पर कोई कुछ नहीं लिख रहा |
2 comments:
बहुत अच्छी पोस्ट रमेश शर्मा जी
राज्योत्सव में एक दिन गए थे बस अद्भुत नजारा था।
आप भी हो आएं
छत्तीसगढ राज्य की 10वीं वर्षगांठ पर हार्दिक बधाई।
प्रिय रमेश जी आपने ठीक लिखा है कि जब सलमान का कार्यक्रम बना तब किसी ने भी चूं-चपड़ नहीं की थी और अब जब राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने शालीनता का परिचय देकर सलमान से मुलाकात कर ली तो बवाल मचाया हुआ है। लेकिन सवाल है कि जब सलमान को सरकारी आमंत्रण नहीं था तो राज्योत्सव का मंच दिया ही क्यों गया ? बताया गया है कि सलमान एक निजी कंपनी के बुलावे पर राज्योत्सव में शामिल होने आए थे। और, ऐसा ही था तो उक्त निजी कंपनी एक अलग मंच/कार्यक्रम आयोजित कर सलमान को बुला लेती और राज्योत्सव में उन्हें विशिष्ट आमंत्रितों की कुर्सी दे दी जाती और फिर मुख्यमंत्री या राज्यपाल उसे मंच पर बुला लेते तो बात गरिमामय होती। यह प्रदेश की अस्मिता के लिए भी सवाल खड़े कर देता है। प्रदेश में राष्ट्रपति का संवैधानिक प्रतिनिधि राज्यपाल और प्रदेश का लोकतांत्रिक मुखिया मुख्यमंत्री एक फिल्म कलाकार के लिए लाइन लगा दे यह पद की विपरीत लगता है।
राज्य की दसवीं वर्षगांठ और दीपोत्सव की कोटिश: बधाई आपको भी और ब्लॉगर्स को भी।
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