आदमी को हांकता है आदमी
मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
उत्तर प्रदेश को देश भर में सिरमौर राज्य का दर्जा यूं ही हासिल नहीं है| फिर चाहे वह साहित्य के क्षेत्र में हो या राजनीति के क्षेत्र में| हाल के वर्षों के कुछ घटनाक्रम को छोड़ दिया जाए तो यूपी ने हमेशा लीड किया है और एक बार फिर से अलीगढ के एक काबिलेतारीफ अफसर ने मानवता को हमेशा कलंकित करने वाले पेशे के खिलाफ अपना हौसला दिखाया है|
जिलाधिकारी रविंद्र नायक ने एक आदेश निकला है जिसके मुताबिक़ ऊंचाई वाली जगहों पर रिक्शे पर बैठा हुआ पाए जाने पर सवारी को 500 रुपये का जुर्माना भरना पड़ेगा।आदेश में साफ़ चेतावनी है कि अगर अलीगढ शहर में फ्लाईओवरों, पुलों या चढ़ाई वाले अन्य स्थानों पर किसी व्यक्ति को साइकिल रिक्शा पर बैठे हुए पाया गया तो उससे 500 रुपये का जुर्माना वसूला जाएगा| नायक का कहना है कि मानवता के लिहाज से यह आदेश जारी किया गया है। मुझे लगता है कि रिक्शेवाले को चढ़ाई वाली जगहों पर किसी व्यक्ति को बैठाकर रिक्शा खींचने में बहुत परेशानी होती है। ज्यादातर लोग चढ़ाई पर नहीं उतरते, जो उचित नहीं है।
अब ज़रा गौर करें अपने शहर के हालत पर.. एक हांफता हुआ इंसान खींच रहा है सवारियों से लदा हुआ रिक्शा| मोटे-मोटे हट्टे-कटटे लोग जम कर बैठ जाते हैं और यह भी नहीं देखते कि बेचारा रिक्शावाला कितनी तकलीफ से रिक्शा खीचता है|
गिरीश पंकजजी की कविता से बात शुरू करें जो बरसों पहले जब उनने आग उगलती कविताएँ रचने के दौर में लिखी थी-
खून से जो ज़िन्दगी को सींचता है
आदमी आदमी को खींचता है
आदमी को हांकता है आदमी
इस सदी की सबसे बड़ी नीचता है|
सचमुच यह काम बहुत अमानवीय है कि कोई रिक्शे पर सपरिवार चढ़ जाए और रिक्शा-वाले की जान पर बन आए| रिक्शा वालों की दशा सुधरने के लिए दुर्ग की सांसद सरोज पांडे ने मेयर रहते हुए कई अच्छी काम किये थे| उनको चिकित्सा और दीगर सहूलियतें दी थी मगर वो काम नहीं कर पाईं जो रविन्द्र नायक साहब कर गए हैं| सचमुच होना चाहिए जुर्माना और यह भी तय हो कि कितने लोग बैठें? सवारियों की लदान को देखते हुए कुछ शहरों में रिक्शे डिजाइन ही इस तरह किये गए कि दो से ज्यादा लोग बैठ ही ना सकें| आखिरकार एक इंसान की मेहनत की मजदूरी देने का मतलब यह तो नहीं कि उसे बैल की तरह जोत दिया जाए| यह मांगें भी उठती रही हैं कि रिक्शों पर प्रतिबन्ध होना चाहिए| मतलब रिक्शे बंद| मेरी राय में यह अति होगी| कई लोगों से बातचीत में मैंने पाया कि रिक्शे आजीविका के सहज स्रोत हैं| गाँव से शहर में आए हैं कोई काम नहीं मिला तो पेट भरने के लिए रिक्शा खींच लिए| कोई ठौर नहीं मिला तो रिक्शे में ही सो लिए| वैसे अंततः बैन ही विकल्प है मगर वो आदर्श स्थिति तब आएगी जब हर हाथ को मनचाहा काम मिलेगा और हर सवारी को गली के मोड़ पर वाहन मिलेगा| मगर तब तक ऐसे आदेश की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए बल्कि खुद यह नियम लागू हो जाए कि ऊँचे रास्तों पर सवारी यदि उतर सके तो उतर जाए वरना भरिये जुर्माना|
5 comments:
मेरे हिसाब से तो सवारी रिक्शों का चलन ही बंद कर देना चाहिए और चीन जैसे सायकिल की सवारी को बढावा देना चाहिए। जिससे पर्यावरण प्रदूषण कम होगा और लोगों का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। रक्तचाप और मधुमेह की बीमारी में नियंत्रण होगा।
सरकार को रिक्शा खींचने की इस अमानवीय प्रथा को बंद करने का ईमानदार प्रयास करना चाहिए। फ़िर जुर्माना लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
प्रेरणादायक प्रस्तुति.आभार .
... vichaarneey muddaa ... saarthak abhivyakti ... prabhaavashaalee post !!!
भावना तो बहुत अच्छी है लेकिन देखें, क्या असर दिखाता है प्रशासन का यह कदम.
कानूनी पहल से अलावा सवारी रिक्शों को चलने वालों की जीवन शैली को बेहतर बनाने उन लोगों के भीतर आत्मसम्मान जगाना जरूरी है. ऐसी योजना बने की सवारी रिक्शा वाले प्रोग्रेस फ्रेंडली बनें.
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