वोट दिया तो उंगली काट लेंगे की धमकी के बावजूद

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

लोकसभा चुनावों से पहले आ रहे सर्वे कांग्रेस का सिरदर्द बढ़ा रहे हैं और भाजपा को उत्साहित कर रहे हैं। मगर छत्तीसगढ़ का बस्तर ऐसा क्षेत्र है जहां आज नक्सलियों की सत्ता है और हालिया विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के मुकाबले बस्तर संभाग में ज्यादा सीटें जीतकर भाजपा की चूलें हिला रखी हैं। बस्तर, कांकेर और सरगुजा लोकसभा इलाके में विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा को मिली हार ने कई किंतु परंतु खड़े कर दिए हैं। आदिवासी बहुल बस्तर सरगुजा लोकसभा क्षेत्रों की कुल 23 विधानसभा सीटों में से भाजपा के पास महज पांच सीटें हैं और कांग्रेस 18 सीटों को झटक चुकी है। साफ है कि विधानसभा चुनाव में आदिवासियों ने भी भाजपा को नकार दिया है। बस्तर लोस में आठ विधानसभा सीटों पर जनादेश कांग्रेस के पक्ष में गया है। कांग्रेस को कुल 5 सीटें मिलीं जबकि भाजपा को तीन। बस्तर में भाजपा की करारी हार के पीछे भाजपाई तर्क है कि वहां नक्सलियों की इजाजत के बगैर एक इंच भी नहीं चल सकते। इन इलाकों में बारूदी सुरंगें बिछी हुई हैं। पुलिस ने कई वर्षो से इन इलाकों में प्रवेश नहीं किया है। मतदान केंद्रों की हालत यह है कि आदिवासी मतदाताओं को कई किलोमीटर पैदल चलकर मतदान करने के लिए आना पड़ता है।
नक्सली कई वर्षो से आक्रामक कार्रवाई के कारण मुख्यमंत्री डा रमन सिंह को टारगेट में लिए हुए हैं और नक्सली फरमान की वजह से आदिवासियों ने भाजपा के खिलाफ वोट दिया। सरगुजा, राजनाँदगाँव और बस्तर नक्सल प्रभावित क्षेत्र हैं और इस क्षेत्र में भाजपा को विधानसभा चुनाव में भी करारी हार का सामना करना पड़ता था।
बस्तर में लोकसभा की दो सीटें कांकेर और बस्तर दोनों भाजपा के पास हैं। भाजपा के दिग्गज आदिवासी नेता बलीराम कश्यप बस्तर से विजयी होते आए थे लेकिन दो वर्ष पहले उनके निधन के कारण उपचुनाव में उनके बेटे दिनेश कश्यप विजयी हुए थे। इस उपचुनाव में कांग्रेस विधायक कवासी लकमा 88 हजार मतों से हार गए थे। लकमा इस बार फिर विधानसभा के लिए चुन लिए गए हैं। आदिवासी वोट बैंक को देखते हुए विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़ भाजपा के अध्यक्ष बनाए गए हैं। कांग्रेस को अपनी राह आसान जरूर लग रही है मगर अड़चन है नेताओं के मनमुटाव। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी सार्वजिनक रूप से घोषणा कर चुके हैं कि उन्हें चुनाव नहीं लड़ना लेकिन कांग्रेस नेतृत्व उन्हें लोकसभा चुनाव में लाने की तैयारी में है। प्रत्याशी तय करने के लिए आस्कर फर्नाडीज की अध्यक्षता में छानबीन समिति ने जोगी का नाम बिलासपुर संसदीय सीट से भेजा है। खास यह है कि महासमुंद सीट से दिग्गज नेता शहीद वीसी शुक्ल की बेटी प्रतिमा पांडेय के नाम के साथ अमितेष शुक्ल के बेटे भवानी शुक्ल का नाम भी दिल्ली गया है। बस्तर सीट के लिए शहीद महेंद्र कर्मा के पुत्र और कवासी लखमा के पुत्र के नाम पर विचार चल रहा है। रायपुर की सीट के लिए मोहम्मद अकबर के नाम की सिफारिश है। छत्तीसगढ़ में हमेशा से दो ध्रुवीय मुकाबला होता रहा है। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 90 में 49 सीटें मिली थीं। पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इसमें भाजपा का वोट प्रतिशत 0.77 ही बढ़ा। भाजपा ने 2004 और 2009 में राज्य की 11 लोकसभा सीटों में से 10 पर जीत दर्ज कराई थी। राज्य में भाजपा को मोदी के अलावा रमन पर भी खासा भरोसा है। जानकारों की मानें तो मोदी का जादू शहरी क्षेत्र की सात सीटों पर ही चल सकता है, जबकि सरगुजा और बस्तर जैसे आदिवासी इलाकों में विधानसभा चुनाव में मोदी के लिए लाल किला बना कर भी आदिवासी रिझाए नहीं जा सके थे। कांग्रेस के मौजूदा प्रदेश पार्टी अध्यक्ष भूपेश बघेल की जोगी से पुरानी रार है। इसी वजह से भाजपा को दो कांग्रेस के अंदरूनी मतभेद और नरेंद्र मोदी के जादू का भरोसा है। पार्टी का मजबूत संगठनात्मक नेटवर्क है। दिक्कत यह भी है कि भाजपा के वर्तमान सांसदों का काम संतोषजनक नहीं है। कांग्रेस अब भी संगठनात्मक ढांचा कमजोर होने से पीछे है। पार्टी में गुटबाजी की समस्या से उबरने में समय लग सकता है। प्रदेश में 11 लोकसभा सीट हैं। इनमें चार सीट बस्तर, कांकेर, रायग व सरगुजा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इसी तरह जांजगीर-चांपा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित आधा दर्जन लोकसभा क्षेत्र रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, महासमुंद, बिलासपुर व कोरबा से सामान्य वर्ग के प्रत्याशी चुनाव लड़ सकते हैं। राज्य में पिछले 20 सालों के लोकसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि वर्ष 1991 में सभी सीटें कांग्रेस को गई थीं लेकिन इसके बाद के चुनाव में लगातार भाजपा ने अच्छा प्रदशर्न किया और क्रमश: वर्ष 1996 में छह सीटें, वर्ष 1998 में सात सीटें, 1999 में आठ सीटें और वर्ष 2004 में 10 सीटों पर जीत हासिल की। यह सिलसिला इस बार के चुनाव में भी जारी रहा। 2009 में कोरबा सीट से पार्टी के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री चरणदास महंत ने पूर्व प्रधानमंत्री अटलिबहारी वाजपेयी की भतीजी करु णा शुक्ला को हराया था। कोरबा के अलावा कांग्रेस को सभी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। सरगुजा, राजनाँदगाँव और बस्तर लोकसभा सीटों पर उसके उम्मीदवार एक लाख से भी अधिक वोटों के अंतर से हारे। विधानसभा चुनाव के नतीजों के मुताबिक बहुजन समाज पार्टी को नुकसान ही हुआ है। आप ने बस्तर में इस बार विवादित समाज सेविका सोनी सॉरी को उम्मीदवार बनाया है मगर उनकी राह में कई रोड़ें हैं। आप के नेता ज्यादातर रायपुर में बैठ कर राजनीति कर रहे हैं। इस चुनाव में भाजपा को 45.16 प्रतिशत वोट मिले जबकि कांग्रेस को लगभग आठ फीसदी कम यानि 37.4 फीसदी मत प्राप्त हुए । इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को केवल 4.56 फीसदी मतों से ही संतोष करना पड़ा है। विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच केवल 6.76 फीसद वोट का ही अंतर था। कुल मिलाकर देखा जाए तो पता चलता है कि पिछले छह महीने के दौरान कांग्रेस लगातार यहां से पिछड़ती चली गई है। राज्य की बिलासपुर लोकसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी के खिलाफ 2009 में स्वर्गीय दिलीपसिंह जूदेव 20 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीते थे। इस इलाके में जूदेव की कमी भाजपा को प्रभावित करेगी।

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ब्लॉग बुलेटिन 21 फ़रवरी 2014 को 7:20 am बजे  

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, गूगल और 'निराला' - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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