डर्टी सेंसर बोर्ड

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

क्या सेंसर बोर्ड इतना पतित हो चुका है कि गाली-गलौज की भाषा भी उसे समझ नहीं आती? क्या बोर्ड के मेम्बरान अनकट ही सर्टिफिकेट जारी कर देते हैं ? बहुत शर्मिंदगी की बात है कि सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की नैतिक छोड़िए (ये तो अब महानगरीय सभ्यता मे पिछड़ेपन का शब्द है ) कोई कानूनी जिम्मेदारी है या नहीं , या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर माँ-भैन की गाली भी जायज है ?
 "डर्टी पॉलिटिक्स" फिल्म में नेता बने ओम पुरी जिस प्रकार मां-बहन की गाली खुले आम बकतेहैं ..देख कर समझ नहीं आता ये कौन सा प्रगतिशील यथार्थवाद या दृश्य की मांग है और चाहे जो सर्टिफिकेट मिला हो यह पास कैसे हो गया ? माँ-बहन की गाली सड़क चलते सुनाई पड़े तो समझ आता है लेकिन फिल्म में यह सब हो तो कतई बात हजम नही होती। होनी भी नही चाहिए।
 भारत एक सभ्य देश है जहां सच तो है गालियां भी बकी जाती है लेकिन सेंसर बोर्ड के अपने कोई नॉर्म्स हैं या नही … और रियलिस्टिक सिनेमा के नाम पर यह सब पास ही होना है तो सेंसर बोर्ड की जरूरत क्या है निर्माता सीधे कारखाने में फिल्म बनाएं और सप्लाई करें ?

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