राजनीति की महानदी
शनिवार, 22 अक्तूबर 2016
महानदी भी अब राजनीति की भेंट चढ़ रही है। विवाद
राजनीतिक रंग लेने लगा है। विवाद इसके जल-उपयोग का है जिसमे ओडीशा में सरकार
चला रहे बीजू जनता दल ने छत्तीसगढ़ में सिंचाई परियोजनाओं को बंद करने की मांग के
साथ ही लगभग टकराव के हालात पैदा कर दिए हैं । ओडीशा का कहना है कि रायगढ़ में बांध
नहीं बने (जो अब पूर्णता की और है)। ओडीशा सरकार की ओर से पहले भी अरपा-भैंसाझार
सिंचाई परियोजना के निर्माण का विरोध किया गया था और केन्द्रीय जल आयोग में आपत्ति
दर्ज कराई गई थी । आयोग ने उसकी आपत्ति खारिज कर दी थी।
तीन साल बाद ओडीशा में विधान सभा चुनाव होने हैं और दो साल बाद छत्तीसगढ़ में, और दोनों राज्यों के कई भड़काऊ नेता जिस तरह से पानी उलीच रहे हैं लगता है कावेरी-कृष्णा की तरह महानदी का दामन भी दागदार हो जाएगा। महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ में धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है और यह ओडीशा के रास्ते समुद्र में मिल जाती है।
चेतनशील सामाजिक संगठन के संयोजक अनंतभाई पण्डा ने
ओडीशा सरकार द्वारा महानदी पर विवाद को ढकोसला बताया है. उन्होंने ईटीवी/प्रदेश18
से बातचीत में कहा कि नदियां अब समाप्ति की और हैं. ओडिशा सरकार ने अब तक 90
उद्योगों को पानी देने के लिए एमओयू किया है जिनमे अधिकांश उद्योगों को महानदी के
हीराकुंड से पानी दिया जाएगा. हीराकुंड डेम का अधिकांश पानी उद्योगों को दिया जा
रहा है. पहले हीराकुंड डेम में 332.8 मीट्रिक टन मछली उत्पादन हुआ करता था, वह घटकर
महज 150 मीट्रिक टन रह गया है. 20 हजार मछुवारों का भविष्य खतरे में है. महानदी के
जल प्रवाह की एक रिपोर्ट यह भी है जितना पानी इस नदी में बहता है उससे ओडिशा का
हीराकुंड बांध चार बार भरा जा सकता है।
इस मुद्दे पर तनातनी न हो यह सबकी चिंता है। वरिष्ठ
पत्रकार ललित सुरजन की राय में दोनों राज्य के सांस्कृतिक मेल को बिगाड़ने की कोशिश
हो रही है. सामाजिक और अन्य संगठनों की जिम्मेदारी है कि ऐसा माहौल तैयार करें
जिससे दोनों राज्य सरकार शांतिपूर्ण तरीके से बातचीत करें और जरूरत हो तो केंद्र
सरकार को चर्चा में शामिल किया जायें. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ल ने कहा
कि दोनों राज्य सरकारें गलत तत्थों को बताकर जनता को गुमराह कर रहे है. सरकार
सार्वजनिक करें कि कितना पानी उधोगपति को देने का अनुबंध किया है. वक्ताओं ने
महानदी के पानी को लेकर हो रही निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा दोनों प्रदेश की जनता
के बीच वैमनस्य फैलाने की तीखी आलोचना की.
तथ्य
-छत्तीसगढ़ के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 55
प्रतिशत हिस्से का पानी महानदी में जाता है। यह नदी और इसकी सहायक नदियों के कुल
ड्रेनेज एरिया का 53.90 प्रतिशत छत्तीसगढ़ में, 45.73 प्रतिशत ओडिशा में और 0.35
प्रतिशत अन्य राज्यों में है। हीराकुंड बांध तक महानदी का जलग्रहण क्षेत्र 82 हजार
432 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से 71 हजार 424 वर्ग किलोमीटर छत्तीसगढ़ में है, जो
कि इसके संपूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र का 86 प्रतिशत है।
-33 साल पहले दोनों राज्यों के
तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने इस बोर्ड के गठन का निर्णय लिया था।
-महानदी सहित नदियों पर बने बांधों द्वारा हुए
विस्थापन, नदियों के पानी का औद्योगिक उपयोग, खासकर पानी निगलने एवं धुआँ उगलने
वाले तापविद्युत गृहों से हो रहे नुकसान एवं सामाजिक तनाव के मुद्दे अहम् हैं।
छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों के बीच चल रहा यह महानदी
विवाद केंद्र सरकार के पास जा पहुचा है। वैसे भी यह विवाद 33 साल पुराना
है।
महानदी के पानी को लेकर
ओडिशा और छत्तीसगढ़
में तनाव के हालात की गूँज
दिल्ली में भी हुई।
इस विवाद को सुलझाने केंद्रीय जल
संसाधन मंत्री उमा भारती ने मंत्रालय के ओएसडी अमरजीत के नेतृत्व में एक समिति
बनाने का निर्देश दिया है। इस बीच छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने एक बार
फिर दोहराया है कि महानदी पर छत्तीसगढ़ में निर्मित सभी जल परियोजनाएं केन्द्र सरकार
के निर्धारित मापदंडों और नियमों के अनुरूप है। बातचीत से ही इस विषय का समाधान
निकलेगा। महानदी पर वह हर तरह की बातचीत और विचार विमर्श के लिए हमेशा तैयार है और
बातचीत से ही इस विषय का समाधान निकलेगा। उन्होंने ओडिशा के सामने दोनो राज्यों का
एक कंट्रोल बोर्ड बनाने का प्रस्ताव भी रखा और कहा कि इससे भविष्य के सभी
परियोजनाओं के लिए भी आपसी सामजंस्य की राह बनेगी।
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक बैठक से खुश नहीं थे।
उन्होंने दिल्ली में कहा कि उनकी सरकार राज्य के हितों की रक्षा के लिए कोई फैसला
लेगी। बैठक में पटनायक ने कहा कि वह चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ तत्काल अपने यहां महानदी
पर बन रहे बैराजों का काम रोक दे। लेकिन बैठक में मौजूद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री
रमन सिंह ने इस मांग को स्वीकार नहीं किया।
उन्होंने त्रिपक्षीय बैठक में कहा कि छत्तीसगढ़ पूरी
पारदर्शिता के साथ अपनी जल परियोजनाओं पर कार्य कर रहा है और इससे ओडिशा का हित
प्रभावित नहीं होता है। उन्होंने कहा कि महानदी के पानी पर किसी भी तरह का विवाद
अनावश्यक है। डॉ. रमन सिंह ने बैठक में कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि महानदी के
पानी पर विवाद करने के बजाय किस तरह इसका बेहतर उपयोग किया जाए। बैठक में छत्तीसगढ़
के जल संसाधन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और मुख्य सचिव विवेक ढांड भी उपस्थित
थे।
बैठक में छत्तीसगढ़ सरकार ने केन्द्रीय जल आयोग की संयुक्त
समिति द्वारा एक सप्ताह में छत्तीसगढ़ और ओडिशा की जल परियोजनाओं की प्राथमिक
समीक्षा के केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती के प्रस्ताव को सहमति
प्रदान की।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा कि महानदी पर ओडिशा की
सभी आशंकाए भ्रम या सही तथ्यों की जानकारी न होने पर आधारित है। उन्होंने कहा कि
तथ्य यह बताते है कि छत्तीसगढ़ में निर्माणाधीन सभी जल परियोजनाओं के बाद भी महानदी
में इतना पानी शेष बचता है कि इससे हीराकूद बांध 5 से 7 बार तक भरा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि महानदी में मानसून में जल का प्रवाह 96 प्रतिशत और गैरमानसून में
केवल 4 प्रतिशत होता है, इसलिए किसी भी बांध में केवल वर्षा का जल ही संचय रहता है।
उन्होंने कहा कि आंकड़े यह भी दर्शाते है कि इन्ही बांधों के चलते 70 के दशक से
गैरमानसून समय में नदी में पानी के बहाव में वृद्धि देखी गई है। मुख्यमंत्री ने यह
भी बताया कि छत्तीसगढ़ ने केवल 274 एमसीएम नई जल संग्रहण क्षमता निर्मित की है जो की
बांधों में सिल्टिंग के कारण हुई खोई क्षमता से भी कम है ।
डॉ.
रमन सिंह ने कहा कि महानदी का 57 प्रतिशत पानी बिना उपयोग आए समुद्र में चला जाता
है। ओडिशा को छत्तीसगढ़ द्वारा बनाये गये बांधो में एकत्रित 274 एमसीएम पानी की
चिंता करने के बजाय अपने राज्य में व्यर्थ जा रहे 57 प्रतिशत जल के सदुपयोग पर
ध्यान केन्द्रीत करना चाहिए। डॉ. रमन सिंह ने कहा – राज्य में महानदी पर समोदा,
शिवरीनारायण, बसंतपुर , मिरोनी , साराडीह और कलमा बांध निर्माणाधीन है और ये सारी 2
हजार हेक्टेयर से कम में सिंचाई क्षमता की परियोजनायें है। इनकी सम्मिलित सिंचाई
क्षमता कुल 3 हजार 149 हेक्टर है । उन्होंने बताया कि दो हजार हेक्टर से कम सिंचाई
क्षमता वाली सिंचाई परियोजनायें लघु सिंचाई परियोजनायें होती है और इसके लिए
केन्द्रीय जल आयोग से स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि इन सभी
परियोजनाओं में वर्षा जल एकत्रित होगा जिससे नदी को कोई हानि नही है। इसी तरह
अमामुडा, सालका, लच्छनपुर और खोंगसरा डाइवर्जन योजना अरपा नदी पर है तथा ये सभी
योजनायें भी दो हजार हेक्टेयर से कम सिंचाई क्षमता वाली लघु सिंचाई योजनायें है ।
राज्य की केलो और अरपा भैंसाझार परियोजनाओं को केन्द्रीय जल आयोग की पहले ही
स्वीकृति मिल चुकी है तथा पैरी-महानदी और तांदुल लिंक परियोजना अभी प्राथमिक चरण
में है और इसकी डीपीआर ओडिशा राज्य को भेजी जा चुकी है ।
बैठक में छत्तीसगढ़ के जल संसाधन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने
बताया कि ओडिशा ने हदुआ, हीराकूद की सासोन नहर के आधुनिकीकरण और लोअर इंद्र
परियोजना की कोई जानकारी छत्तीसगढ़ को उपलब्ध नहीं कराई है।
राजनीति न हो -अमित जोगी
मरवाही विधायक अमित जोगी की राय में केंद्र सरकार मसले का
राजनीतिकरण करने की कोशिश कर रही है। इसे सुलझाने के बजाए उसे और लटकाते हुए ठंडे
बस्ते में डाल दिया गया है। पहले संयुक्त नियंत्रण बोर्ड बनाने की बात थी, लेकिन
वहां तो मामले को लटकाने के लिए अस्थाई कमेटी बनाए जाने का निर्णय ले लिया गया और
रमन सरकार ने उस पर सहमति भी दे दी। जोगी ने कहा कि महानदी बेसिन का नेट सिंचित
क्षेत्र का रकबा कम होता जा रहा है। राज्य सरकार यह नहीं देख रही कि राज्य के
किसानों को पानी मिल रहा है या नहीं। उन्होंने राज्य सरकार से मांग की कि महानदी
बेसिन में किसानों को कितना पानी मिल रहा है, इस पर राज्य सरकार श्वेत पत्र जारी
करे। कहीं इसे भी कावेरी नदी जल विवाद की तरह न लटका दिया जाए। जिसकी वजह से आज
कर्नाटक जल रहा है।
ओडीसा में राजनीति
एक
अख़बार की खबर के मुताबिक महानदी मामले में बीजद के नेता परस्पर विरोध में है।
ढेंकानाल के सासद तथागत सतपथी ने एक स्थानीय ओडि़या अखबार में अपने संपादकीय में
मुख्यमंत्री नवीन पटनायक एवं जल संपदा विभाग के अधिकारियों को सीधे तौर पर टारगेट
किया है। उन्होंने लिखा है कि जल संपदा विभाग केवल कैनालों की खुदाई कर ठेकेदारों
का पेट भर रहा है। उन्हें दंडित करना राज्य सरकार का दायित्व है। खुद मुख्यमंत्री
नवीन पटनायक जल संपद विभाग को अपने पास रखे हैं फिर भी ऐसा लग रहा है कि विभाग का
कोई माई व बाप नहीं है। बीजद सासद के इस लेख से राज्य की राजनीति में भूचाल आ गया
है।
बीजद प्रवक्ता अमर सतपथी ने कहा है कि तथागत बाबू अपने
संपादकीय में अपना विचार प्रकट किए हैं। वह बीजद से लोकसभा सदस्य हैं। वह अपने
अखबार में अपना विचार प्रकट किए हैं। जल संपद विभाग ओडिशा के लिए काफी महत्वपूर्ण
है। बीजद के ही एक और प्रवक्ता शशि भूषण बेहेरा ने कहा है कि तथागत बाबू एक अखबार
के संपादक के तौर पर अपना विचार रखे हैं। यह उनका संपादकीय विचार है। वहीं समवाय
मंत्री दामोदर राउत ने कहा है कि जल संपद विभाग तो क्या किसी भी विभाग के कोई
माई-बाप नहीं हैं। वह यदि एक विभाग को बता रहे हैं कि कोई माई- बाप नहीं हैं तो
मेरे पास इसका जवाब नहीं है। सासद के संपादकीय पर तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए। वहीं
भाजपा के महासचिव पृथ्वीराज हरिचंदन ने कहा है कि तथागत सतपथी के संपादकीय ने राज्य
के असली मुखौटा को खोल दिया है। मैं इस संपादकीय का स्वागत करता हूं। पीसीसी
अध्यक्ष प्रसाद हरिचन्दन ने कहा है कि खाली जल संपद विभाग ही नहीं ओडिशा सरकार के
माई- बाप हैं मुख्यमंत्री नवीन पटनायक। प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ में शासन की
बागडोर है और ठेकेदारों के हाथ में जल सिंचाई विभाग।
सामाजिक प्रयास शुरू
जल
विवाद पर भुवनेश्वर में एक राष्ट्रीय सेमीनार हुआ जिसकी की अध्यक्षता जनार्दन पाती
ने की और महानदी जल विकी। इस सम्मलेन में बताया गया कि ओडिशा और छत्तीसगढ़ सरकार ने
पानी संरक्षण क्षमता से ज्यादा उद्योगों को पानी देने के लिए समझौता कर लिया है
जिसके कारण पानी का संकट गहराया है। उद्योगों का दबाव सरकारों पर बढ़ रहा है।
सेमिनार में ओडिशा के पूर्व वित्तमंत्री पंचानन कानूनगो, राज्य सचिव सीपीआईएम
भुवनेश्वर सुरेश पाणिग्रही, अंतर्राष्ट्रीय जल विशेषज्ञ डॉ. श्रीनिवास चोकाकुला,
सीपीआईएम रायपुर धर्मराज महापात्र, ट्रेड यूनियन कौंसिल रायगढ़ के गणेश कछवाहा,
ओडिशा डेवलोपमेंट ट्रस्ट के चेयरमेन विष्णु मोहंती एवं सीआईटीयू ओडिशा के अध्यक्ष
लंबोदर नायक मुख्य रुप से शामिल हुए। अन्य प्रयासों में भुवनेश्वर एक अन्य सम्मलेन
में देशबन्धु समाचारपत्र के प्रधान संपादक ललित सुरजन ने कहा कि समाज जब तक अपनी
जिम्मेदारी नहीं समझेगा तब तक ऐसे हालात बनते रहेंगे। इसके समाधान के लिए समाज अपनी
आम राय दे और उसके माध्यम से सरकार को निर्णय लेना चाहिए। दिए।
'महानदी जोड़़ती है, तोड़ती नहीं'
शीर्षक को लेकर भुवनेश्वर में आयोजित ओडिशा-छत्तीसगढ़
सामाजिक संगठन के सम्मेलन में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को
सौंपने प्रस्ताव पत्र बनाया गया है। इसके अलावा दोनों राज्यों को जोडऩे के लिए
महानदी यात्रा की जाएगी। प्रस्ताव को केन्द्र तक पहुंचाते हुए जनसंगठनों की ओर से
एक सम्मेलन करने का निर्णय भी लिया गया है। इस सम्मेलन में आगामी ओडिशा के संयोजक
सुदर्शन दास, भूतपूर्व राष्ट्रदूत अबसर बरुआ, वरिष्ठ भाषाविद् पद्मश्री देबी
प्रसन्न पटनायक, धीरेन्द्र राय, दिलीप सावत, डॉक्टर विनायक रथ, छत्तीसगढ़ बचाओ
आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला, वरिष्ठ राजनेता आनंद मिश्रा, किसान नेता नंद कुमार
कश्यप आदि इस सम्मेलन में शामिल हुए।
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