क्यों बौखलाए हैं नक्सली
मंगलवार, 25 अप्रैल 2017
बस्तर की खूनी धरती पर एक बार फिर जघन्य नक्सली वारदात ने उन रक्तरंजित सवालों को कुरेद दिया है जो इस शांत वादी में लगातार सुलग रहे हैं। नक्सली वारदातों में हाल में आई तेजी के लिए कई कारण गिनाए जा रहे हैं जिसमे पहला कारण स्ट्रैटेजिक है।
नक्सली कतई नहीं चाहते हैं कि जंगल में उनके महफूज ठिकानो तक सड़के बने। दरअसल बस्तर में अब सडक निर्माण का काम कराना सुरक्षा बलों के जिम्मे है जिसमे रोड ओपनिंग पार्टी के लगातार बढ़ते दबाव की वजह से बस्तर संभाग में नक्सलियों के पैर उखड़ने लगे हैं।
नक्सली बयानों में हमेशा कहा गया है कि 'छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक संपत्ति व संसाधनों खासकर जल-जंगल-जमीन व खनिज संसाधनों एवं आदिवासी अस्तित्व पर आद्योगिक खतरे हैं। इसलिए सडके नहीं बनने देंगे।'
नक्सली बयानों में हमेशा कहा गया है कि 'छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक संपत्ति व संसाधनों खासकर जल-जंगल-जमीन व खनिज संसाधनों एवं आदिवासी अस्तित्व पर आद्योगिक खतरे हैं। इसलिए सडके नहीं बनने देंगे।'
वे बुरी तरह बौखला गए हैं...छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना, बंगाल और मध्य प्रदेश के नक्सलियों के प्रभाव वाले 44 जिलों में 5,412 किमी सड़क निर्माण परियोजना को मंजूरी दी गई है. निर्माणकार्यों से ये नक्सली खतरा महसूस करते हैं.
रायपुर से 500 किलोमीटर दूर सुकमा/बस्तर छत्तीसगढ़ का वो इलाका है जहां नक्सली हुकूमत तक सरकार भी नहीं पहुंच पाती है। बड़े पत्तों वाले सालवन से ढंके जंगलों में कई नक्सली ठिकाने हैं।
जाहिर तौर पर 26 जवानों की शहादत खुफिया महकमे की नाकामी मानी जा रही है लेकिन दो महीने में दूसरी बड़ी घटना बताती है कि सीआरपीएफ के ही जवान लगातार शहीद हो रहे हैं तो हैं कही न कही इनपुट ओरिएंटेड कॉर्डिनेशन में कमी है। बस्तर में आम नागरिक सिर कलम किये जाने के भय से खुफिया सूचनाएं देने का साहस नही जुटा पाता और नक्सली भय का माहौल लगातार कायम रखने इस तरह की जघन्य वारदातों को अंजाम देते हैं। यह उनकी रणनीति का हिस्सा है।
जीरम घाटी में नक्सलियों के दुश्मन नंबर एक बस्तर टाईगर के नाम से मशहूर दिलेर महेंद्र कर्मा मार डाले गए थे। 2013 की इस घटना बाद नक्सलियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नही हुई और दुश्मनो को निपटा कर नक्सली अपने मकसद में कामयाब हो गए।
बस्तर का ही सुकमा ,दंतेवाडा व नारायणपुर सबसे ज्यादा तबाह है। नक्सलियों के रास्ते में बाधक जनप्रतिनिधि व आदिवासी नक्सलियों के निशाने पर हैं। लगातार इनकी हत्या और अपहरण की घटनाएं सामने आ रही हैं। इसके पीछे लोकतंत्र को कमजोर करने और दहशत फैला कर अपना वजूद कायम रखने की नक्सली मंशा साफ है। 2015 में मोदी की बस्तर में सभा न होने पाए इस मंशा से बस्तर में काबिज माओवादियों ने एडी चोटी का जोर लगा दिया था . लालगढ़ (पश्चिम बंगाल) में सेना के हाथों बुरी तरह कुचले जाने और आंध्र प्रदेश में ग्रे हाउंड फोर्स से खदेड़े जाने के बाद पश्चिम ओडीसा और दक्षिण छतीसगढ़ नक्सिलयों का अभ्यारण्य बना हुआ है।शबरी नदी के तट पर स्थित सुकमा जिला न केवल बस्तर संभाग बल्कि छत्तीसगढ़ के भी दक्षिण छोर का आखिरी जिला है। इसकी सीमा ओड़िशा और आन्ध्र प्रदेश से लगी हुई है।
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