करारी हार, जन प्रहार

रविवार, 16 दिसंबर 2018

 छत्तीसगढ़ में इस बार कमल बुरी तरह मुरझा गया और ऐसा लगता है कि 5 सालों में बीजेपी के खिलाफ जनरोष इस कदर बढ़ा कि लोगों ने बीजेपी के निशान कमल की 50 पंखुड़ियों को नोच कर सिर्फ 15 पंखुड़िया रहने दी हैं।15 बरस में बीजेपी 50 से 15 पर आ गई।

 यह हालात छत्तीसगढ़ में अचानक कैसे बन गए जिसका इक्का-दुक्का सर्वेक्षणों में तो हवाला दिया जा रहा था लेकिन बीजेपी तो छोड़िए कांग्रेस और दीगर दलों को भी यह इलहाम नहीं था कि जनता इस बुरी तर ह डॉक्टर रमन सिंह की बेलगाम ब्यूरोक्रेसी नेता गठबन्धन से आजिज, आतंकित और पीड़ित है। 
 
 मतगणना वाले दिन एक सीनियर बीजेपी लीडर की टिप्पणी थी कि ईवीएम से मतगणना के नतीजे नहीं "लोगों की नफरत निकल रही है!" छत्तीसगढ़ में 15 वर्षों से सरकार चला रही बीजेपी का काफिला अचानक कैसे लुट गया और राज्य के 13 मंत्रियों में से 8 बुरी तरह कैसे हार गए, इसको लेकर अब सन्निपात की स्थिति से उभरकर मंथन किया जा रहा है। मोटे तौर पर जो कारण रणनीतिकार गिना रहे हैं उनमे किसानों की नाराजगी और बस्तर से लेकर सरगुजा तक बीजेपी के जिम्मेदार मंत्रियों बड़े कार्यकर्ताओं और रसूखदार लोगों का दंभ अहंकार से भरा हुआ बर्ताव बताया जा रहा जिससे सोशल मीडिया और स्थानीय मीडिया रंगे हुए हैं।

बीजेपी के लिए शर्मनाक नतीजा यह रहा है कि 27 जिलों में से बीजेपी 16 जिलों में आउट हो गई जबकि बीजेपी की पूरे राज्य के इतिहास में ऐसी दुर्गति कभी नहीं हुई। 

अब यहां गौर करने वाली बात यह है कि कांग्रेस ने बेशक 68 सीटें (90 में से) हासिल जरूर कर ली है लेकिन आंकड़े बताते हैं  कि यह बीजेपी की हार है कांग्रेस की जीत नहीं है क्योंकि कांग्रेस के मत प्रतिशत में सिर्फ 1.53 प्रतिशत वृद्धि ही हुई है। उसे इस 43 प्रतिशत मत मिले हैं जबकि पिछली बार 41% मत मिले थे और बीजेपी सिर्फ 1% से भी कम मतों से 50 सीटें लेकर जीत गई थी। इस बार बीजेपी को 15 सीटों पर संतोष करने की मजबूरी है जो कुल वोट प्रतिशत का 10% इधर उधर हुआ है उसमें 8% जोगी और बसपा का गठबंधन  ले उडा है जिनको 7 सीटें मिली है।

राज्य में पिछले चुनाव की तुलना में एक फीसद कम लोगों ने नोटा का बटन दबाया है। यहां इस बार केवल दो फीसद लोगों ने ही नोटा का उपयोग किया है, जबकि पिछली बार करीब चार लाख वोटरों ने नोटा का बटन दबाया था जो कुल मतदान का करीब तीन फीसद था।

छत्तीसगढ़ में ईवीएम से सिर्फ हार जीत नहीं भीषण जनरोष निकला है। निरंकुश अफसरशाही के खिलाफ। एक नाराज कार्यकर्ता के मुताबिक पूरे कुनबे की आंखों में सत्ता् की चाशनी चढ़ गई थी और अकेले रमन जिम्मेदार नहीं, पूरी पार्टी में अहंकार और एक दूसरे को निपटान वृत्ति पनप गई थी और मीडिया देखने वाले लोग पत्रकारों को सूचना भी देने में पिक एंड चूज करने लगे जिससे मीडिया का भी न्यूट्रल वर्ग खफा हो कर बैंड बजाऊ मोड में आ गया।
एक रमन समर्थक व्यापारी के मुताबिक "रमन सिंह को हमेशा विनम्र और गंभीर पाया। झूठ नहीं बोलना चाहिए। सत्ता वत्ता से अपने को क्या लेनादेना मगर वे जिस चांडाल चौकड़ी से घिर गए थे लोगों ने उनको सबक सिखाया है।"

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