मैं कवि नहीं आग की लपटें हूँ - हरिओम पवार
मंगलवार, 27 जुलाई 2010
रायपुर के शहीद स्मारक सभागार में सोमवार की रात देश के ख्यातिनाम कवियों को सुनने के लिए एकत्र हुए श्रोता बाहर बरसात और सभागार के भीतर गीतों-कविताओं में रससिक्त रहे| जिस कार्यक्रम में हरिओम पंवार आएं और देशभक्ति का समा न बंध जाए ऐसा हो ही नहीं सकता| बहुत ओज़ है इनकी रचना में और मंच पर सबसे आखिर में आते है|तब तक कवि सम्मेलन सुन कर पूरी तरह उर्जायमान हो चुके श्रोताओं पर उनके ओज के गीत एक नया जोश भर देते है|
इसलिए केवल अंगार लिए फिरता हूँ मैं गीतों में
आंसू से भीगा अख़बार लिए फिरता हूँ मैं गीतों में,
ये जो आतंको पर चुप रह जाने की लाचारी है
ये हमारी कायरता है, अपराधिक गद्दारी है
ये शेरों का चरण पत्र है भेड़ सियारों के आगे
वट वृक्षों का शीश नमन है खर पतवारों के आगे
जैसे कोई ताल तलय्या गंगा जमुना को डांटे
चार तमंचे मार रहे एटम के मुह पर चांटे
किसका खून नहीं खौलेगा पढ़-सुनकर अख़बारों में
शेरों की पेशी करवा दी चूहों के दरबारों में
इन सब षड्यंत्रों से पर्दा उठना बहुत ज़रूरी है
पहले घर के गद्दारों का हटना बहुत ज़रूरी है
पांचाली के चीरहरण पर जो चुप पाए जाते हैं
इतिहास के पन्नो में वो सब कायर कहलाते हैं ……..
अमूमन आजकल कवि सम्मेलनों में यह आम है कि कविता कहाँ शुरू होती है और कब चुटकुलों का रीमिक्स शुरू हो जाता है,यह फर्क करना मुश्किल हो जाता है मगर कविता की गरिमा को हरिओम पंवार कभी कम नहीं होने देते। दमदार बेबाकी से जब वे देश की पीड़ा को गाते हैं तो श्रोता दम साध कर सुनते हैं और श्रोताओं का एक वर्ग झूमने लगता है| देश-भक्ति की रचनाएं जोश का जूनून जगा देती हैं मगर इसका वरदान हर कवि को हासिल नहीं है| उनकी कविताओं में शहीद, सिंहासन, पांचाली, वट वृक्ष जैसे शब्द धडल्ले से आते हैं और रचना का स्तर नीचे जाता हुआ नहीं लगता बल्कि भारत के इतिहास, संस्कृति, दर्शन और पौराणिक प्रसंगों को आम बोलचाल के शब्दों में पिरो देते हैं| उनकी रचना देश की माटी का गौरव गाती है और शब्द अंगारों के तरह बरसते हैं|
"मैं कवि नहीं हूँ , आग की लपटें हूँ. छुओगे तो जल जाओगे और छू नहीं पाए तो छूने के लिए तरसोगे"- वे गरज कर कहते हैं|
कवियों में सर्वश्री राहत इन्दौरी, राजेश चेतन, राजेश यादव,विष्णु सक्सेना, महेंद्र अजनबी, गजेन्द्र सोलंकी, अनीता सोनी ने रचनाएं पढीं और सभी कवि मंच पर जम कर जमे |
अवसर था साधना न्यूज चैनल की वर्षगाठ का जिसमे दिग्गज कवियों की रचनाओं में देर रात तक श्रोता मगन रहे| कारगिल के शहीदों की याद का दिन था लिहाजा कारगिल से शुरू हुई बात बस्तर के नक्सलवाद पर जा कर टिक गयी और हर कवि नक्सलियों की करतूतों पर जम कर प्रहार करता नजर आया| सुरेन्द्र दुबे हास्य के कवि माने जाते हैं मगर उनने बस्तर पर में महुए की जगह घुल गयी बारूद का जो खाका खीचा और आदिवासियों के दर्द की थाह ली तो मंचस्थ कवि भी बस्तर के हालात में गम और गुस्साजदा हो गए|
12 comments:
धन्यवाद रमेश भाई, पवार जी की कविता एवं इस कवि सम्मेलन की रिपोर्टिंग प्रस्तुत करने के लिए.
किसका खून नहीं खौलेगा पढ़ सुनकर अख़बारों में
शेरों की पेशी करवा दी चूहों के दरबारों में
किसका खून नहीं खौलेगा पढ़ सुनकर अख़बारों में
शेरों की पेशी करवा दी चूहों के दरबारों में
क्या बात है ..
आभार इस रिपोर्टिंग का .
बहुत बढिया प्रस्तुति रमेश भाई,
सबसे तेज चैनल--यायावर चैनल
मैं हरिओम जी को नहीं सुन पाया क्योंकि बरसात के कारण मुझे जल्दी जाना पड़ा लेकिन सुरेन्द्र दुबे जी ने बस्तर के दर्द को शब्दों का रुप देकर बस्तर की व्यथा व्यक्त कर दी।
बढिया रिपोर्टिंग
आभार
Pawar ji ki kavita padhakar abhibhut ho gaya ..
बहुत आभार इस रपट का. पवार जी की रचना पढ़कर आनन्द आ गया.
sundar reporting.. main chah kar bhi nahi aa paya, tumhari rapat se aadha maza le liya..
badhiya vivran,
shukriya bhai sahab ise uplabdh karne ke liye..
बढ़िया रिपोर्ट . शुक्रिया पढाने के लिए.
हरिओम पवार, मेरे फेवरेट कवि हैं । उनके एक-एक शब्द और उनका प्रस्तुतीकरण दोनों लाजवाब है । " मैं भारत का संविधान हूँ , लाल किले से बोल रहा हूँ " पवार जी की यह कविता मुझे सर्वाधिक पसन्द है । रमेश शर्मा जी को बहुत-बहुत धन्यवाद ,जिनके सौजन्य से हमें कवि-सम्मेलन का आनन्द मिला । प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
fine veer ras ke kavi hain mere feveriot
veer ras ke kavi achhe lagte hain
Kya khena pawar je
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