फिल्म इंडस्ट्री ने कभी गूंजा को समझा ही नहीं
शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014
कौन दिशा में ले के चला रे बटोहिया... जोगी जी धीरे धीरे.. जैसे रविन्द्र जैन के कर्ण प्रिय गीतों से सजी नदिया के पार|जब तक पूरे न हो फेरे सात..तब तक दुल्हन नहीं दुल्हा की। रे तब तक बबुनी नहीं बबुवा की। इस गान के बिना सालों तक बिहार-यूपी में कोई शादी नहीं हुई।
केशव प्रसाद मिश्र के उपन्यास "कोहबर की शर्त" पर बनी नदिया के पार के निदेशक गोविंद मुनीस 80 साल की उम्र में 2010 में चल बसे। नदिया के पार की एक्ट्रेस गुंजा @ साधना सिंह भोजपुरी फिल्मों के पितामह विश्वनाथ शाहाबादी की पुत्र वधु हैं। बनारस और कानपुर में जन्मी और पली-बढ़ी साधना सिंह मुंबई में रहती हैं।
साधना सिंहने एक इंटरव्यू में कहा था -वो कभी खुद को गूंजा से अलग ही नहीं कर पाईं और मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री ने कभी गूंजा को समझा ही नहीं। देखें तो साधना को कई फिल्मे मिल गई होतीं और वे भी मुम्बईया फिल्मो की गलियों में इमेज बदलने का खामियाजा भुगतती भटकतीं मगर साधना ने ठीक किया नदिया के इस पार आने की कोशिश ही नही की और गूंजा को उन लाखो-करोड़ों लोगों के लिए बचा लिया। उस गूंजा को जो फिल्म हीरोईन नहीं लगती थी बल्कि बल्कि पड़ोस में गांव घर में रहने वाली लड़की सी लगती थी।
57 वर्षीय सचिन ने हाल में राजनीति में कदम रखा है और पुस्तक भी लिख चुके हैं ...और साधना सिंह ने जुगनी फिल्म में बीबी सरूप की भूमिका अदा की, सीरियलों में सक्रिय हैं. दोनों कलाकारों को शुभकामना जरूर दीजिए।
2 comments:
आप ने ठीक कहा फिल्म इंडस्ट्रीज़ गूंजा समज ही नहीं पाई। और ऐसा दुनिया में सदियों से होता रहा है। मेरा आप से एक निवेदन है की ऐसे ही और भी लेख गूंजा के बारे में लिखिए। खास समय निकालके।
गूंजा को चाहनेवाले आज भी लाखों लोग है। और सभी उनसे जुड़ना भी चाहते है और सभी कुछ-न-कुछ कहना भी चाहते है। लेकिन सब के पास आप की तरह दिल की बातों को अभिव्यक्त करने की काबिलियत नहीं होती। जब आप जैसे व्यक्ति दिल की बातों को जुबान देते है। तो उन लाखों लोगो को लगता है की अरे ये तो हम भी कहना चाहते थे। पर हमें समज में नहीं आता था की उन जज़्बातों ठीक-ठीक भाषा और शब्दों में कैसे कहे ?
तो ऐसे लेख समय निकालकर जरूर लिखे। ऐसे लेखों से गूंजा के चाहनेवालों के दिलों में जो पिछले तिस सालों से 'गूंजा' के प्रति जो प्यार,भावनाएं और गूंजा की छबि दबी पड़ी है। वो फिर जी उठेगी।
और आप लेखों को और गहराई देंगे तो में दावे से कह शकता हूँ। आप के छोटे से लेख से आप को पता नहीं बहोत कुछ हुआ है। और आगे इतना कुछ हो शकता है की फिल्म इंडस्ट्रीज़ को ही नहीं बल्कि उनके चाहनेवालों को भी एहसास होगा की यह अपराध उनकी तरफ से भी कुछ कम नहीं है। जब चारो-तरफ मूल्य बदलते है तो लाखों की भीड़ का रुख भी बदलता है। ये अपराध तो है ही। लेकिन आप जैसे व्यक्ति की कलम से ये परिवर्तन संभव है।
धन्यवाद !
- दिनेश परीख ( +919699329122 )
बेहतरीन लिखा है आपने हमेशा की तरह।
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