वे जो नील आर्मस्ट्रांग थे
रविवार, 26 अगस्त 2012
यह इतिहास के पन्नो पर है-43 साल पहले 16 जुलाई 1969 को अमरीका की तरफ से अपोलो 11 चन्द्रमा मिशन के लिए प्रक्षेपित हुआ और 20 -21 जुलाई को नील आर्मस्ट्रांग चाद पर कदम रखने वाले पहले इंसान बन गए थे । आज सारा ज़माना नील को याद कर रहा है| नील आर्मस्ट्रांग के नेतृत्व में माइकल कोलिन्स और एडविन एल्ड्रिन जूनियर ने चंद्रमा यात्रा की थी और नील व एल्ड्रिन ने चाँद पर कदम रख दिए थे | कोलिन्स चक्कर लगा रहे थे उस यान में जो तीनो को वापस ले कर आया.
पहला कदम रख कर नील की इन्सानी आवाज 3 लाख 86 ह्सजार किलोमीटर दूर चांद से ह्यूस्टन स्थित कंट्रोल रूम में कौंधती हुई आई जिसे टीवी पर 86 देशों में सुना गया| भारत में रेडियो बजते थे उस जमाने में. यह नील की आवाज थी... -
’यह मानव के लिए एक छोटा कदम, पर मानव जाति के लिए एक बड़ी छलांग है’
इस यात्रा की भी एक कहानी है. नील कदापि उतर नही पाते . ईगेल (चन्द्र यान ) में उनका कम्प्यूटर जाम हो गया. आपात अलार्म संकेत 1202 आया और उतरना रोकने की तत्काल योजना थ . ह्यूस्टन में बैठे वैज्ञानिकों के दिल धड़क रहे थे. खुद नील और एडविन आल्द्रिन में बक झक हो रही थी. मगर इन्सान हार नही मानते और हौसले की कोई उम्र नही होती, तब 24 साल के इंजीनियर स्टीवन बैलेस ने ह्यूस्टन से ओके रिपोर्ट दी और कहा कि "यू आर गो ..यह आपात अलार्म रडार के जाम होने से है'.
अमरीका के करोड़ों रूपये दांव पर थे और साख भी, एन वक्त पर मशीन जाम हो गयी और फ्यूल भी सिर्फ चंद मिनटों के लिए बचा था, तब नील ने हौसला दिखाया और मनुअल आपरेशन के सहारे चन्द्र यान लिए ट्रेंक्वालिटी बेस यानी चन्द्रमा के शून्य सतह पर उतरा . यान का अराईवेल ईधन भी सिर्फ चन्द सेकण्ड का बचा था. बाहर गर्द उड़ रही थी. नील की आवाज आई- 'ह्यूस्टन ट्रंकवालिटी बेस (प्रशांत सतह )हीयर'. किसी इंसान की यह पहली आवाज थी जो चन्द्र सतह से आई. ३लाख ८६ हजार किलोमीटर दूर से. तब तक उनकी रक्तचाप दर दुगुनी (१४०-५०)हो चुकी थी मगर वे मन में ठान चुके थे कि ज़िंदा ही लौटना है.और लौटे .
लौट कर नील ने चाँद को भुनाया नही बल्कि गुमनाम से रहे. मगर एड्विन ने खूब भुनाया अपनी यात्रा को. एड्विन ने अपनी यात्रा का खूब प्रचार किया मगर नील शान्त रहे. एड्विन को कई तकलीफ़े झेलनी पडी. इसमे एक शिखर से उतरने के शून्य से उपजा खालीपन और हताशा का असर था मगर नील हमेशा एक जैसे रहे. नील को कमान्डर के रूप मे इनही खूबियो के कारण चुना गया था.
वक़्त गुजरने के साथ चीजें कितनी मूल्यवान हो जाती हैं. चंद्रमा पर सबसे पहले पहुंचने वाला पन्ना जिस पर नील आर्मस्ट्रांग के हस्ताक्षर भी हैं, डेढ़ लाख डालर में नीलाम हुआ था। इस पन्ने पर लिखा गया था- एक शख्स का छोटा सा कदम, इंसानियत के लिए एक बड़ी छलांग। यह पेज बोनहम्स नीलामी घर, न्यूयार्क में बेचा गया। दरअसल आर्मस्ट्रांग ने पेज पर अपने दस्तखत कर इसे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लोक सूचना कार्यालय को दे दिया था। यह पन्ना उस वक्त दिया था जब धरती पर लौटने पर जॉन्सन अंतरिक्ष केंद्र में उनका चन्द्र प्रभाव परीक्षण किया जा रहा था।
चंद्रमा, जिसको बुढिय़ा के बाल, स्वर्गलोक की सीढ़ी और न जाने किन- किन मिथकों के सहारे परिभाषित किया जाता था, वह अब इंसान के लिए चंदा मामा दूर के भर नहीं रह गया है। चांद हर बार कोई न कोई खबर बनता है. बीते साल 19 मार्च सुपरमून को लेकर कई तरह के अंदेशे धरती पर उठ रहे थे। आशंकाएं थी, चांद के गुरुत्वाकर्षण बल से धरती पर क़यामत आ सकती है । आंखों को सुकून देने वाला चांद पृथ्वी के बेहद करीब था जिसमे महाविनाश की कहानियाँ ढूंढी जा रही थी| कहा जा रहा था धरती और चांद 19 साल में सबसे करीब थे और इस निकटता को संभावित और निर्मूल सिद्ध हुई तबाही की वजह बताया जा रहा था। उस महापूर्णिमा के दिन चांद अपने पूरे रूप में दिखा जो 20 साल बाद पृथ्वी के सबसे करीब था । 19 मार्च २०११ को पृथ्वी से चांद सिर्फ 2 लाख 21 हजार 556 मील दूर आया । आमतौर पर चांद हमसे 2 लाख 35 हजार मील दूर होता है। लेकिन धरती की परिक्रमा करते करते चांद साढे 14 हजार मील पास आ गया है।
सुपरमून को लेकर कई देशों में रिसर्च भी की जा रही है। खबरों में दर्ज है , दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में खराब मौसम का जिम्मेदार भी चांद ही देखा गया है। इसके उलट कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद में इतनी कुव्वत ही नहीं कि वो धरती को धमका सके। मगर संयोग है कि 1938 सुपरमून हुआ था और न्यू इंग्लैंड में चक्रवात ने भयंकर तबाही मचाई थी। फिर साल 1955 में सुपरमून दिखा और हंटर वैली में बाढ़ और बारिश ने भयंकर तबाही मचाई थी। 1974 में सुपरमून आसमान पर फिर चमका महाचांद और ट्रेसी साइक्लॉन ने ऑस्ट्रेलिया के डार्विन शहर को तबाह कर दिया था। जनवरी 2005 में सुपरमून से ठीक दो हफ्ते पहले सुनामी आई। इंडोनेशिया में हजारों लोग मारे गए और तबाही के ठीक 14 दिन आसमान पर चमका ये सुपरमून। कथ्य हैं कि सूरज और चांद धरती को अपनी अपनी तरफ खींचते हैं|
तथ्य हैं कि चंद्रमा से ज्वार भाटा आता है|
चन्द्रमा कपोल कल्पनाओं का प्रिय विषय है. सदियों से लोहे को सोना बनाने वाले फिलॉस्फर स्टोन (पारस पत्थर) की बातें कही और सुनी जाती रही हैं। कल्पित पत्थर को छूने भर से कोइ अमर हो जाता था। भरपूर वक्त रखने और किसी ना किसी खोज में लगे रहने वालों को हमेशा से इसकी तलाश रही हैं. बताते है ये पत्थर चंद्रमा या किसी दूसरे गृह पर बना था, जो धरती पर आ गिरा था।
हर वर्ग में , हर देश में , हर काल में और हरेक समाज में चांद आराधना , पूजा , प्रेरणा और मिथक का विषय रहा है. चन्द्रमा को ले कर धार्मिक रूढ़ियाँ बनी हुई हैं मगर वैज्ञानिक अध्ययन का परिणाम यह हुआ कि इंसान ने चांद पर पांव धर दिए वरना गैलिलिओ ने जब सन 1606 में कहा था कि पृथ्वी सूरज के चक्कर लगाती है तो राजा ने उनको सजाए मौत सुना दी थी मगर गैलिलिओ को सजा नही मिली लेकिन वे सच साबित हुए. चांद को लेकर भी बहुत कुछ वैज्ञानिक सच सामने आने का धरती को इंतज़ार है. कभी दूर गगन में टकटकी लगा कर देखने के लिए विवश करने वाला चन्द्रमा अब चन्दा मामा दूर के नही रहा बल्कि इंसान ने उसकी धरती पर उतर कर अब नए सिरे से खंगालना शुरू कर दिया है.
पिछले कई दशकों में चांद पर 100 से भी ज्यादा यान भेजे गए हैं जिनमे अपोलो श्रृंखला अहम् थी. दुनिया में एलियंस की बहुत चर्चा है. ऐसी कोई चीज या जीव है तो एलियन का पता लगाने का सही तरीका यह है कि चांद पर उनके पांव के धब्बों या उनके द्वारा छोड़े गए निशान का पता लगाया जाए क्योंकि यह किसी वहां अधिक लम्बे समय तक सुरक्षित होंगे वो इसलिए कि चाँद पर हवा नही है . वहाँ निशान सालों साल रहते हैं. परग्रही को ढूंढने और उनके बारे में जानकारी जुटाने के लिए चंद्रमा सबसे सही जगह हो सकती है क्योंकि चंद्रमा की सतह अछूती है.
चन्द्रमा भी अब राजनीति का अखाडा बन्ने जा रहा है. अमरीका की मानिंद चीन भी अब वहा झन्डा गाड़ रहा है. चीन के वैज्ञानिकों ने कहा है कि अंतरिक्ष अभियान में प्रगति होने के बावजूद अभी वह अमेरिका और रूस से पीछे है. चीन की योजना पांच साल में पहले चरण में वह मानव रहित यान भेजकर चंद्रमा की सतह का परीक्षण करना चाहता है,दूसरे चरण में वह मानव सहित यान भेजने के तकनीक पर काम करेगा. चीन ने कहा है कि उसने 2006 से अब तक चंद्रमा अभियान में कई सफलताएं हासिल की हैं। इसमें 2007 में चांगे-1 और एक अक्टूबर 2010 को चांगे-2 का प्रक्षेपण सबसे महत्वपूर्ण है.
भारत से इसरो आगे है. देश का पहला मानवरहित चंद्र अभियान चंद्रयान-प्रथम बढ़िया ढंग से काम कर रहा है और उसके साथ गए मून इम्पैक्ट प्रोब एमआईपी ने अब तक तीन हजार चित्र भेजे हैं.संवाद सेतु विज्ञान के मुताबिक़ एक खबर आई थी कि अमेरिका ने इसरो से प्रतिबंध हटाने के बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की एक शीर्ष प्रयोगशाला ने भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी को एक ऐसे चंद्र अभियान में साझीदार बनने का प्रस्ताव दिया है जिसका मकसद चांद की सतह से एक किलोग्राम चट्टान लाना है. भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी खोज की है जो आने वाले समय में अंतरिक्ष अभियानों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है.
उन्होंने चांद पर इंसान के लिए एक सुरक्षित जगह का पता लगाने में कामयाबी हासिल की है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने चांद पर ऐसी जगह की खोज की है जहां पर अंतरिक्ष यात्री अपने अभियानों के लिए सुरक्षित बेस स्थापित कर सकते हैं.स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (एसएसी) में वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-1 के मैपिंग कैमरे और हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजर (एचवाईएसआइ) पेयलोड से मिले आंकड़ों का इस्तेमाल कर यह जगह खोजी है.यह एक सामानांतर लावा गुफा है जो 1.2 किलोमीटर लंबी और सतह में धंसी हुई है.यह गुफा चंद्रमा के समीपवर्ती इलाके में भूमध्य रेखा के ऊपर स्थित है.इसमें बड़ी संख्या में अंतरिक्ष यात्रियों और वैज्ञानिक उपकरणों को रखा जा सकता है. यह जगह इन्हें चंद्रमा के प्रतिकूल वातावरण से बचाए रखेगी। करंट साइंस में इस अध्ययन के निष्कर्षो को प्रकाशित किया गया है। वैज्ञानिकों ने कहा कि चंद्रमा पर आगे की खोज करने के लिहाज से इंसान के वहां रहने का एक स्थायी ठिकाना खोजना बेहद महत्वपूर्ण बात है.उन्होंने कहा कि लावा गुफा प्राकृतिक माहौल उपलब्ध कराती है। यहां का तापमान करीब-करीब एक जैसा माइनस 20 डिग्री सेल्सियस बना रहता है जबकि चंद्रमा पर अन्य इलाकों में दिन-रात के चक्र में तापमान अधिकतम 130 डिग्री सेल्सियस से न्यूनतम माइनस 180 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है. (ब्यूरो प्रमुख-राष्ट्रीय सहारा, छ्त्तीसगढ़)
2 comments:
जानकारी रोचक है ........
वाकई अपनी ख्याति को शांति के साथ निबाहा नील ने ,और आज चर्चा भी उन्हीं कि है, बधाई शानदार आलेख हेतु |मेरे ब्लॉग विविधा पर सदा स्वागत है |
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