खारुन नदी के साथ बहते हुए
गुरुवार, 12 मई 2011
यह अच्छी बात है कि देर से ही सही रायपुर को जीवन देने वाली खारुन नदी की सफाई पर सबका ध्यान गया है मगर निराश करने वाला मुद्दा यह है कि सफाई का काम उतना जोर नहीं पकड़ पाया है जिसकी अपेक्षा शुरुआत के समय की गयी थी और इस दिशा में आगे आए उद्योगपतियों ने जो उत्साह दिखाया था वो बदस्तूर जारी नहीं है|
खारून नदी को पिकनिक स्पाट बनाने की योजना है और इस मद में 12 करोड़ रूपये जारी हुए हैं, ऐसा दावा किया जाता है| पर फिलहाल तो इस योजना पर पानी फिरता दीखता है| साफ़ लग रहा है कि अगले महीने बरसात के पहले खारुन की सफाई हो जाना संदिग्ध है। जबकि उद्योगपतियों ने बढ़ चढ़ कर दावे और वादे किये थे और प्रदेश सरकार ने भी सतत काम करने के निर्देश दिए हैं|
यह बताने कि जरुरत है कि खारुन रायपुर की जीवन रेखा है जैसे यमुना दिल्ली की है| खारुन अब एक नाला बनती जा रही है| तालाबों में गिराया जाने वाला धार्मिक कचरा ढोते हुए खारुन हुगली जैसी लगने लगी है| जैसे राम की गंगा मैली हो गई पापियों के पाप ढोते-ढोते|
दरअसल मुद्दा सिर्फ खारुन नहीं है| देश भर में नदियाँ नाला बन रही हैं और तालाब पी कर लोग उन पर शापिंग मॉल्स बना रहे हैं| सामुदायिक जीवन की प्राचीन चेतना पर शहरी लोभ ने कचरा डल दिया है और कृषि उत्पादकता की बेलगाम हवस के चलते उर्वरकों -कीटनाशकों का इस कदर इस्तेमाल हुआ कि नदियों की सेहत खतरे में पड़ गयी है।
खेती विरासत मिशन नामक एक गैर सरकारी संगठन यह चीख-चीख कर कहते आ रहे हैं| पानी, खान-पान और वायुमंडल सभी पर रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का असर देखा जा सकता है। यह कहानी उस समय की है जब छत्तीसगढ़ अस्तित्व में ही नहीं आया था और वह मध्यप्रदेश का ही हिस्सा था । छत्तीसगढ़ की एक बड़ी सहायक नदी शिवनाथ को अंधेरे में रखकर रेड़ियस वाटर लिमिटेड़ को बेच दिया गया। बोरई ग्राम के किसानों के नैसर्गिक अधिकार पर आक्रमण करते हुए पानी लेने और मत्स्याखेट पर पूरी तरह रोक लगा दी गई ।
खारुन शिवनाथ की प्रमुख सहायक नदी है। खारुन नदी दुर्ग जिले के संजारी से निकलती है और फिर रायपुर से बहती हुई सोमनाथ के पास शिवनाथ नदी में मिल जाती है। शिवनाथ महानदी की प्रमुख सहायक नदी है। महानदी और उसकी सहायक शिवनाथ, मांड़, खारून, जोंक, हसदो आदि नदियों मानव बसाहट और संस्कृतियां जल-स्रोतों, नदियों, समुद्रों के किनारे फली- फूली है | जमीनों की पहचान करके गांव बसाए जाते रहे हैं और उसी के साथ-साथ तालाबों की खुदाई भी होती रही है। अब सब कुछ सूखता सा लगता है| रायपुर-जगदलपुर मार्ग पर स्थित राज्य की पुरानी राजधानी बस्तर गांव में कहा जाता है कि 'सात आगर सात कोरी' यानि 147 तालाब होते थे।
याद आते हैं वो लोग वो ज़माना जब तालाब के लिए लोग जान लगा देते थे| घटना राजनादगांव के लोगों को याद है| 1954-55 में शहर के प्रतिष्ठित व्यवसायी बजरंग महाराज ने भरकापारा के तालाब की गंदगी से दुखी होकर आमरण अनशन की घोषणा कर दी थी। समाज को जगाने के लिए किया गया यह अनशन कुल तीन दिन चला था कि प्रेरित और प्रभावित समाज ने तब तालाब की सफाई का काम उठा लिया।आज रानी सागर जैसे तालाब शहर की शोभा बने हैं| वो पानीदार लोग भी याद आते हैं जो पानी में रम जाते थे|
बिलासपुर जिले के डभरा गांव के पास एक जोसी है जिनके बारे में कहते हैं कि उन्हे जमीन में पानी की आवाज सुनाई देती है। वे सिर्फ धरती माता पर कान लगाकर बता देते हैं कि कितने हाथ पर कैसा कितना पानी और बीच में कितने हाथ पर रेत और पत्थर मिलेंगे। ऐसे लोग और ऐसे लोगों की मुहिम जब तक साझा नहीं चलेगी और पानी के लिए पानीदार चेतना जागृत नहीं होगी कुछ कहना फिजूल है|(ऊपर छत्तीसगढ़ के जुझारू छायाकार रुपेश यादव की फ्लिकर द्वारा सराही गयी खारून नदी की तस्वीर)
खारून नदी को पिकनिक स्पाट बनाने की योजना है और इस मद में 12 करोड़ रूपये जारी हुए हैं, ऐसा दावा किया जाता है| पर फिलहाल तो इस योजना पर पानी फिरता दीखता है| साफ़ लग रहा है कि अगले महीने बरसात के पहले खारुन की सफाई हो जाना संदिग्ध है। जबकि उद्योगपतियों ने बढ़ चढ़ कर दावे और वादे किये थे और प्रदेश सरकार ने भी सतत काम करने के निर्देश दिए हैं|
यह बताने कि जरुरत है कि खारुन रायपुर की जीवन रेखा है जैसे यमुना दिल्ली की है| खारुन अब एक नाला बनती जा रही है| तालाबों में गिराया जाने वाला धार्मिक कचरा ढोते हुए खारुन हुगली जैसी लगने लगी है| जैसे राम की गंगा मैली हो गई पापियों के पाप ढोते-ढोते|
दरअसल मुद्दा सिर्फ खारुन नहीं है| देश भर में नदियाँ नाला बन रही हैं और तालाब पी कर लोग उन पर शापिंग मॉल्स बना रहे हैं| सामुदायिक जीवन की प्राचीन चेतना पर शहरी लोभ ने कचरा डल दिया है और कृषि उत्पादकता की बेलगाम हवस के चलते उर्वरकों -कीटनाशकों का इस कदर इस्तेमाल हुआ कि नदियों की सेहत खतरे में पड़ गयी है।
खेती विरासत मिशन नामक एक गैर सरकारी संगठन यह चीख-चीख कर कहते आ रहे हैं| पानी, खान-पान और वायुमंडल सभी पर रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का असर देखा जा सकता है। यह कहानी उस समय की है जब छत्तीसगढ़ अस्तित्व में ही नहीं आया था और वह मध्यप्रदेश का ही हिस्सा था । छत्तीसगढ़ की एक बड़ी सहायक नदी शिवनाथ को अंधेरे में रखकर रेड़ियस वाटर लिमिटेड़ को बेच दिया गया। बोरई ग्राम के किसानों के नैसर्गिक अधिकार पर आक्रमण करते हुए पानी लेने और मत्स्याखेट पर पूरी तरह रोक लगा दी गई ।
खारुन शिवनाथ की प्रमुख सहायक नदी है। खारुन नदी दुर्ग जिले के संजारी से निकलती है और फिर रायपुर से बहती हुई सोमनाथ के पास शिवनाथ नदी में मिल जाती है। शिवनाथ महानदी की प्रमुख सहायक नदी है। महानदी और उसकी सहायक शिवनाथ, मांड़, खारून, जोंक, हसदो आदि नदियों मानव बसाहट और संस्कृतियां जल-स्रोतों, नदियों, समुद्रों के किनारे फली- फूली है | जमीनों की पहचान करके गांव बसाए जाते रहे हैं और उसी के साथ-साथ तालाबों की खुदाई भी होती रही है। अब सब कुछ सूखता सा लगता है| रायपुर-जगदलपुर मार्ग पर स्थित राज्य की पुरानी राजधानी बस्तर गांव में कहा जाता है कि 'सात आगर सात कोरी' यानि 147 तालाब होते थे।
याद आते हैं वो लोग वो ज़माना जब तालाब के लिए लोग जान लगा देते थे| घटना राजनादगांव के लोगों को याद है| 1954-55 में शहर के प्रतिष्ठित व्यवसायी बजरंग महाराज ने भरकापारा के तालाब की गंदगी से दुखी होकर आमरण अनशन की घोषणा कर दी थी। समाज को जगाने के लिए किया गया यह अनशन कुल तीन दिन चला था कि प्रेरित और प्रभावित समाज ने तब तालाब की सफाई का काम उठा लिया।आज रानी सागर जैसे तालाब शहर की शोभा बने हैं| वो पानीदार लोग भी याद आते हैं जो पानी में रम जाते थे|
बिलासपुर जिले के डभरा गांव के पास एक जोसी है जिनके बारे में कहते हैं कि उन्हे जमीन में पानी की आवाज सुनाई देती है। वे सिर्फ धरती माता पर कान लगाकर बता देते हैं कि कितने हाथ पर कैसा कितना पानी और बीच में कितने हाथ पर रेत और पत्थर मिलेंगे। ऐसे लोग और ऐसे लोगों की मुहिम जब तक साझा नहीं चलेगी और पानी के लिए पानीदार चेतना जागृत नहीं होगी कुछ कहना फिजूल है|(ऊपर छत्तीसगढ़ के जुझारू छायाकार रुपेश यादव की फ्लिकर द्वारा सराही गयी खारून नदी की तस्वीर)
7 comments:
इस देश में न जाने कितनी योजनाये बनती हैं फिर उनपर पानी फिर जाता है.जमीन ली जाती है पार्क के लिए और वहां कचरा घर बना दिया जाता है..
विचारणीय आलेख. वास्तव में धरती पर मानव सहित सम्पूर्ण प्राणी जगत के लिए नदियाँ शरीर की रक्त-वाहिका धमनियों और शिराओं के समान हैं, इन्हें साफ़ और स्वस्थ रखना हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत ज़रूरी है. छत्तीसगढ़ में अगर खारून और शिवनाथ समेत अन्य प्रमुख नदियों और जलाशयों को साफ़-सुथरा रखने की पहल शुरू की गयी है तो यह वाकई स्वागत योग्य है. इस जन-कल्याणकारी पहल के लिए डॉ.रमन सिंह और उनकी सरकार के साथ-साथ वे सभी लोग प्रशंसा के पात्र हैं ,जो इस कार्य में खुले दिल से भागीदार बन रहे हैं .
मानव-जीवन और प्राणी-जगत के लिए नदियाँ शरीर की रक्त-वाहिका धमनियों और शिराओं के समान होती हैं. उनकी रक्षा करना और उन्हें साफ़-सुथरा रखना हमारी सेहत के लिए भी बहुत ज़रूरी है. इसलिए छत्तीसगढ़ में खारून और शिवनाथ जैसी जीवन-दायिनी नदियों को नया जीवन देने की पहल निश्चित रूप से स्वागत योग्य है.तालाबों को बचाने की पहल भी छत्तीसगढ़ में हो रही है. मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह और उनकी सरकार के साथ-साथ वे सभी धन्यवाद और साधुवाद के पात्र हैं ,जो नदियों और तालाबों के संरक्षण की इस रचनात्मक पहल में खुले दिल से भागीदार बन रहे हैं .
रमेश भाई , बहुत अच्छा विषय है यह. किसी भी नदी की सफाई से उसका अरसे पुराना मूल स्वरुप दिखाई देता है. ढिलाई और शासकीय कामकाज के बीच चोली-दामन का साथ है. सभी शहरों के अखबारनवीसो को अपने इलाके की नदियों और तालाबों के बारे में शोधपरक आलेख लिखने चाहिए. इसी तरह मालगुजारी के ज़माने के तालाबो और सरकारी तालाबों के बीच बुनियादी फर्क ओ इंगित करने वाली रिपोर्टें भी छापी जानी चाहिए. तुम्हे बधाई.
विकास का पंछी उड़ने लगे तो सोचने का अवसर ही कहां रह जाता है.
जल ही जीवन है.ये सिर्फ जुमला नहीं अटल सत्य है .सिर्फ दिखावा ना हो .ज़मीनी स्तर पर काम हो .हर यूक्ति से नदी नालों का सरक्षण हो .हम आप सब मिल कर ये काम करे .आपके द्वारा दी गई जानकारी रोचक और पुनीत है .आपको साधूवाद.neeraj sharma raipur
अदभुत भैया, जिस तरह से गंगा की सफाई के नाम पर हजारो करोड़ लुटे गए, छत्तीशगढ़ में खारुन के नाम पर ही ये खेल खेला जा रहा है
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