अलविदा अजीत जोगी

शनिवार, 20 जून 2020

सन 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले अजीत जोगी कद्दावर राजनीतिज्ञ और तेजतर्रार अफसर रहे हैं। उनके निधन से राज्य भर में शोक की लहर व्याप्त है। कोरोना के इस संक्रमण काल में भी भीड़ की शक्ल में उनके चाहने वाले शव यात्रा में शरीक हुए। उनका पार्थिव शरीर सागौन बंगले में रखा गया जहां श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों का तांता लगा रहा।

अतीत की घटनाएं बताती है कि उनको मुख्यमंत्री बनाने में दिग्विजय सिंह की अहम भूमिका थी। क्योंकि दिग्विजय सिंह शुक्ल बंधुओं को कतई नहीं चाहते थे। फिर वह एक अलग घटनाक्रम है कि वीसी शुक्ल के बंगले में दिग्विजय सिंह के कुर्ते तक डाले गए और कुर्ता फड़वाने के आरोपी विद्याचरण शुक्ल ने मुस्कराकर कहा था 'इस घटना का हमें बहुत खेद है'। यह उस दौर की बात है जब राजनीति में जोगी का कोई खेमा नहीं था। 

छत्तीसगढ़ राज्य बना तो जोगी की परिवार भक्ति का ब्याज सहित भुगतान हुआ और जोगी ने लंबी छलांग लगाई। छत्तीसगढ़ के दिग्गज विद्याचरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल, सत्यनारायण शर्मा, धनेंद्र साहू, अरविंद नेताम सहित तमाम अग्रिम पंक्ति के धुरंधर नेताओं को पीछे छोड़ दिया और सोनिया गांधी की कृपा से राज्य के पहले मुख्यमंत्री बन गए। अकेले जोगी थे और राज्य में शुक्ल बंधुओं का पूरा लाव लश्कर था लेकिन अपनी असाधारण राजनीतिक क्षमता, अदम्य इच्छा शक्ति से जोगी ने सबसे पहले प्रशासनिक ढांचे को संभाला। राज्य में अत्याधुनिक योजनाओं की नींव रखी और राजनीतिक कौशल के जरिए उन तमाम दूसरी पंक्ति के नेताओं का साथ लिया जो शुक्ल खेमे से अलग थे। जोगी ने सरकार बचाने के लिए बीजेपी में सेंध भी लगाई और बीजेपी के कई विधायक तोड़ लिए। इसके लिए उनकी आलोचना भी हुई मगर जोगी ने अपना कार्यकाल पूरा किया। मगर सन 2003 में एक घटना ने जोगी का इतिहास बदल दिया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के खजांची राम अवतार जग्गी जोकि विद्याचरण शुक्ल के खास थे की रायपुर में जयस्तंभ चौक के पास हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में जोगी की भूमिकाओं पर संदेह इतने प्रचंड रूप में फैला कि उनकी सरकार जाती रही मगर लाभ विद्याचरण शुक्ल की पार्टी को भी नहीं मिला। बीजेपी ने सरकार बना ली  उसके बाद से जोगी राज्य में कांग्रेस की अपनी राजनीति में अंतर्कलह से जूझते, लड़ते, भिड़ते रहे और अंततः उनको राहुल गांधी के पार्टी में ताजपोशी के बाद अपनी अलग पार्टी बनानी पड़ गई। मगर सत्ता उनको दोबारा नहीं मिल पाई। उसके बावजूद कि उनके खिलाफ कई मुकदमे दर्ज हुए, संगीन आरोप लगे, जोगी छत्तीसगढ़ में एकछत्र लोकप्रियता के शिखर पर बैठे रहे। 
जोगी के जादू का यह आलम रहा कि वह जहां भी जाते भीड़ जुट जाती और भीड़ जुटाने के लिए उनको सरकारी बसों का इंतजाम नहीं करना पड़ता। लोग उनके नाम से ही उनको सुनने के लिए चले आते थे।राजनीति के हर रंग में रंगे हुए थे। हथकंडों से उनको कोई परहेज नहीं था। 

दिलचस्प चुनाव

2004 में संसदीय जैसे  चल पड़ी चुनाव में उनका मुकाबला विद्याचरण शुक्ल जैसे दिग्गज से था। प्रचार में जोगी बहुत पीछे थे मगर अचानक एक घटना हुई। जोगी की कार का एक्सीडेंट हो गया और उनके शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया तो जोगी मुंबई ले जाए गए। वहां से उन्होंने अपनी तस्वीर के पोस्टर बनाकर महासमुंद इलाके में गांव गांव में टांग दिए। फिर सहानुभूति का यह आलम था कि विद्याचरण शुक्ल जैसे बड़े नेता को भी हराकर उन्होंने 2004 में 14 वीं लोकसभा में महासामुंद सीट जीत ली। 
जोगी की उत्कट जिजीविषा के कई उदाहरण उनके विरोधी भी देते हैं और इन सब के बीच उनका एक अलग और राजनीति की कटुता से इतर दोस्ताना चेहरा भी उनके धुर विरोधी सामने लाते हैं। मसलन बीजेपी के पूर्व नेता और अनेक मुकदमों में जोगी की राजनीतिक साख की चूलें हिला देने वाले वीरेंद्र पांडे के मुताबिक 'एक रात जोगी ने मुझे रात के सन्नाटे में एक स्कूल में मिलने बुलाया। मैं जब उनसे मिलने पहुंचा तो उन्होंने हाथ बढ़ाया और कहा मैं आपसे दोस्ती करना चाहता हूं मगर मैंने कहा कि दोस्ती अलग है और मेरे मूल्य मेरी मान्यताएं अलग है। जोगी ने एक शब्द भी नहीं कहा और मुकदमों के बारे में कोई बात ही नहीं की। हम विदा हुए।'

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