यादों में बाबूजी (4)

गुरुवार, 24 मार्च 2011

आमतौर पर बाहर से शांत और सरल दिखने वाले बाबूजी कितने वज्र हृदयी थे यह उस रोज पता चला जब 'बा' नहीं रहे| दादाजी को घर में बा कहा जाता था| गांव में बा अपना अंतिम संध्या काल गुजार रहे थे| बाबूजी गाँव में, पूरा परिवार शहर में| लम्बी चौड़ी नाते -रिश्तेदारी ..बा की बहन के पोते का विवाह होना था| तिथि तय हो गयी| जिस तिथि को विवाह था बा स्वर्ग सिधार गए| मृत्यु से पहले बाबूजी से वचन ले लिया की यह खबर शहर में नहीं देना वरना उनकी शादी में विघ्न पड़ जाएगा|

घर पर पिता की पार्थिव देह पडी है...दारुण दुःख को साझा करने के लिए अपना अगर कोई है तो सिर्फ बाई(माताजी) है| मृत्यु का आभास हो जाने पर बा ने बाबूजी को कह दिया था - उनको खाट से जमीन पर उतार दिया जाए| बाबूजी को भी कुछ आशंका हो गयी थी| अर्ध रात्रि में बा ने प्राण त्यागे| मृत्यु पूर्व उनने बाई से सभी जानी अनजानी भूलों के लिए क्षमा याचना की और तुलसी पत्ता- गंगा जल मुंह में लेने के बाद खामोश हो गए| देह त्याग से पूर्व उनने अपनी बनियान भी स्वयं उतार कर धर दी|

बहुत असमंजस की स्थिति थी| पिता के बिछोह की वेदना और वज्राघात के दिल दहला देने वाले पलों में बाबूजी को अब फैसले करने थे| बा तो गुजर गए थे | परिवार को इत्तला नहीं देने का खामियाजा बाबूजी को ही भुगतना था| बाबूजी ने रायपुर खबर नहीं भेजी| पुत्र धर्म का निर्वाह किया|

अंतिम प्रहर में बाबूजी घर से साईकिल निकाली और अकेले जंगली रास्ते से होते हुए 15 किलोमीटर दूरस्थ कसबे में गए और वहाँ से क्रिया-कर्म का सारा सामान ले कर सूर्योदय से पहले घर लौटे| गांव वालों और आसपास परिजनों के साथ बा का अंतिम संस्कार संपन्न हुआ|
बा के गुजरने की खबर सबको शादी के प्रीति भोज वाले दिन मिली जब एक परिजन जो गाँव के समीप ही रहते थे और सारे घटनाक्रम से परिचित थे, भोज में गए और वहाँ उनने बातों ही बातों में जिक्र किया तो सबके होश उड़ गए| सब लोग गांव भागे| वहाँ बाबूजी का सिर घुटा हुआ मिला|मृत्यु की खबर नहीं आने का वास्तविक कारण जिसने भी सुना वो जड़ हो गया|बाद में जिसकी जैसी सोच थी उसने वैसी व्याख्या की लेकिन बाबूजी ने साबित कर दिया कि वे आक्षेप झेल कर भी अपने पिता के कहे हुए का मान रख सकते हैं| बाबूजी की इकलौती बहन को भी खबर नहीं मिल पाई| वे शोक से तप्त हो कर गाँव आईं| बाबूजी से कारण पता चला| भाई बहन ने दुःख बांटा| निकटवर्ती नातेदारों से बाबूजी ने गाँव में सहज संवाद किया और यह उन्ही का अंदाज था कि मनोमालिन्य दूर हुए|

बा भी अपने-आप में अलमस्त तबीयत के धनी थे| पढने के शौक़ीन| भजन और कविताएँ लिखते, रात में नींद खुल जाती तो गाते| कर्म काण्ड के घोर विरोधी| उन्होंने साफ़ कह दिया था की मृत्यु के बाद उनकी अस्थियाँ राजिम त्रिवेणी (छत्तीसगढ़) में प्रवाहित की जाएँ| गाँव उनको भी अंतिम समय में रास आया| 'मा सा' (दादीजी) और 'बा' दोनों ने अंतिम काल में गाँव को ही चुना और उसी मिट्टी में पंच-तत्व में विलीन हुए|

(जारी)

4 comments:

shikha varshney 25 मार्च 2011 को 3:51 am बजे  

सही फैसला लिया आपके बाबूजी ने ,
सुन्दर संस्मरण.

girish pankaj 25 मार्च 2011 को 9:56 am बजे  

sundar, pyara...sansamaran...chalane do...

Satish Saxena 11 अप्रैल 2011 को 6:28 am बजे  

ऐसा लगा की एक पुण्यात्मा के बारे में पढ़ रहा हूँ ! मर्मस्पर्शी लिखते हो ....ऐसे अनुकरणीय पूर्वजों का आशीर्वाद आपको मिला है आप भाग्यवान है !

Swarajya karun 20 अप्रैल 2011 को 11:08 am बजे  

@दोनों ने अंतिम काल में गाँव को ही चुना और उसी मिट्टी में पंच-तत्व में विलीन हुए-संवेदनाओं से भीगी दिल को छू लेने वाली प्रेरक पंक्तियाँ.

एक टिप्पणी भेजें

संपर्क

Email-cgexpress2009@gmail.com

  © Free Blogger Templates Columnus by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP