जन्म दिन पर बिच्छू को याद करते हुए
बुधवार, 25 अगस्त 2021
मेरे जन्मदिन आम से दिन को, साधारण दिवस को खास और अहम बनाने वाले मित्रों परिजनों का हार्दिक हार्दिक आभार और इसी के साथ ही एक घटना का भी जिक्र करता चलूं जो हाल में घटी, जिसमें मेरी भिड़ंत बिच्छू महाशय से हो गई और बिच्छू ने अगर कमाल दिखा दिया होता तो आज मेरा नमस्ते वाला दिन बन गया होता।
हुआ यह कुछ दिन पहले सुबह अचानक जब नींद खुली तो मैंने देखा जमीन पर एक कनखजूरा रेंग रहा था। अमूमन घर में कीड़े मकोड़े आ ही जाते हैं और हरित बस्तियों में जो लोग ग्राउंड फ्लोर पर रहते हैं वह इस समस्या से प्रायः बावस्ता होते रहते हैं। तो हुआ यह कनखजूरा जब पता नहीं किधर से कमरे में घुस आया और बाहर निकलने के लिए भटकने ही
लगा होगा। मैंने एक कपड़ा उसके ऊपर डाला और उसी कपड़े से उठाकर उसको बाहर का रास्ता दिखाने लगा। अमूमन कीड़े मकोड़े घुस आते हैं तो मैं कोशिश करता हूं कि उनको झाड़ू से या पेपर में यह किसी और तरीके से सुरक्षित बाहर की यात्रा करा दो। जाओ बेटा, जहां से आए हो वहीं जाओ, दिस इस नॉट सेफ प्लेस फॉर यू, वी आर ह्यूमन, वी कैन नॉट टॉलरेट यू इन आवर सोसाइटी। अब हुआ यह कि जिस कपड़े से मैंने उस कनखजूरा को पकड़ा और घर के बाहर खुले में खुलने वाले सिंक में डाला, उस सिंक में ही पहले से एक बिच्छू बैठा हुआ था। मैंने फुर्ती से कपड़ा सिंक में डाला, सिंक का ढक्कन खोल कर पानी के साथ उस कनखजूरा को बहा दिया ताकि वह बाहर चला जाए और अब क्योंकि कपड़े को धोना जरूरी था इसलिए मैंने नल के नीचे कपड़े को धोना शुरू किया कि अकस्मात मेरे हाथों में जलन होने लगी और इतनी तेज जलन होने लगी कि मैं हैरत में। अबे तुझे सेफ बाहर किया तुझे भी लगता है कलियुग का असर हो गया। यह भी सोचने लगा कि यह क्या कहानी है, कनखजूरा को तो मैंने छुआ या पकड़ा भी नहीं, क्या उसने अपना विष छोड़ दिया? जलन का क्या कारण हो सकता है? इतनी तेज जलन जैसे एसिड छू लिया हो, जैसे-जैसे मैं कपड़े को धोता गया, जलन मेरी कई उंगलियों में होने लगी। मुझे समझ में नहीं आया क्या मसला हुआ यह सुबह सुबह, होम करते हाथ जला लिए। आखिरकार मैंने कपड़े का पानी झटका और तार में सूखने के लिए डाल दिया। जैसे ही मैंने तार में कपड़े को डाला होश उड़ गए। एक बिच्छू लटका हुआ था उस कपड़े में और वह जो जगह-जगह मेरे हाथों में जलन हो रही थी वह यकीनन उसके डंक की थी। जो कपड़े निचोड़ते हुए आधा दर्जन पॉइंट्स के साथ चुभी, या कहें खुद मैने चुभो ली, लो बेटा भुगतो।😭 चक्कर खाने की थी घड़ी थी। सामने अधमरा अचेत बिच्छू🦂 और होश फाख्ता होने का झटका झेलता मैं। खुद ही मुसीबत बुलाई। बस यहीं से भीतर के उस आत्मविश्वास ने अंगड़ाई ली जो चीटी से भी डरता है मगर शेर भी आ जाए तो डर कर तो मरेगा नहीं। ख्याल कौंधा, क्या होगा, होगा वही जो मंजूरे डेस्टिनी होगा। 1 मिनट को मैंने खुद को संयत किया और पानी की तेज धार में जितना हो सके हाथ को डेटॉल से धोया, जलन कुछ रुकी, उसके बाद मैंने एहतियात के तौर पर हाथ में रुमाल को बांध लिया ताकि जहर ऊपर तक ना जा पाए और फिर सोचने लगा सुबह के 5*30 बजे कौन डॉक्टर मिलेगा?जो मिलेगा वो पहले कोविड टेस्ट कराएगा, अभी तो यकीनन सोया होगा। इसी उधेड़बुन में मैंने सोचा अब इंजेक्शन लगाएंगे, दवाएं खिलाएंगे, पेट खाली नहीं होना चाहिए। चाय खुद बनाई इससे पहले कि घर पर कोहराम मचे, चाय पी, बिस्कुट खाए और घर पर बिना किसी को इत्तिला दिए हड़कंप मचाए मैं घर से निकल पड़ा। रास्ते में डॉक्टर को फोन किया तो उनका मोबाइल बंद था। जा पहुंचा नर्सिंग होम। बांछे खिला कर स्वागत हुआ। वहां बीपी शुगर चेक हुआ। दोनों बड़े हुए थे मामूली से, क्योंकि चाय में शक्कर ज्यादा थी और जिसको बिच्छू काट ले वह सदमे से भी निपट सकता है। बहरहाल नर्सिंग होम में हालात यह थे कि एक भी मरीज नहीं था और जूनियर डॉक्टर खाली बैठा हुआ था। उसने ऑनर को फोन लगाया। ओनर ने कहा कि तत्काल आईसीयू में एडमिट कर दिया जाए। मुझे कहा गया कि अब आप भर्ती हो जाइए। मैंने नंबर लिया खुद बात की। मैंने कहा मुझे कोई भी परेशानी नहीं है और अगर यहां भर्ती किया तो यकीनन परेशानी शुरू हो जाएगी। अब मामला बिच्छू का था और बिच्छू को भी सांप की श्रेणी में ही रखा जाता है और anti-venom इंजेक्शन दिया जाता है। संचालक ने कहा आप अपनी रिस्क पर जाइए और लिखकर दे दीजिए। फौरन लिख दिया। इंजेक्शन लगाए, गोलियां दी गई। मैंने गाड़ी उठाई। माताजी के घर आ गया। माताजी के पास पहुंचा। उन्होंने हंसते हुए मुझे कहा तुमको बिच्छू ने काटा कि नहीं काटा, मुझे नहीं मालूम लेकिन मुझे तो दो बार काटा है गांव में और गांव में कोई खास इलाज भी नहीं हुआ। बस 24 घंटे जलन हुई। उन्होंने पूछा कि कौन से रंग का बिच्छू था, मैंने कहा बताया कि काला बिच्छू नहीं था। उन्होंने हिम्मत दी। कहा चिंता की कोई बात नहीं। खैर, कई तरह की आशंकाएं लिए मैं घर आ गया। बिच्छू पर आंखे तरेरी जो उसी हालत में कपड़े में लटक रहा था। मैंने सोचा कि इसका क्या कुसूर। अब उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाए। मैंने घर के पीछे झाड़ियां इकट्ठा की और माचिस की तीली जैसे ही जलाई और बिच्छू सहित कपड़े को उसमें डाला... हैरान हो जाइए तपिश पाकर पानी से भीगा हुआ बिच्छू उठ खड़ा हुआ और फुर्ती से रेंगता हुआ चला गया। ओ माय गॉड। उसकी पूंछ जिसमें जहर होता है वो टूट चुकी थी और उसके डैने डंक भी क्षतिगस्त थे। जब वह जाने लगा तो मैंने हाथ जोड़े, कहा जाओ भाई मुझसे गलती हुई, माफ करो दुबारा बदला लेने मत आना। जिसको बचाया वो भाग गया तुम हम फंस गए।
लगा होगा। मैंने एक कपड़ा उसके ऊपर डाला और उसी कपड़े से उठाकर उसको बाहर का रास्ता दिखाने लगा। अमूमन कीड़े मकोड़े घुस आते हैं तो मैं कोशिश करता हूं कि उनको झाड़ू से या पेपर में यह किसी और तरीके से सुरक्षित बाहर की यात्रा करा दो। जाओ बेटा, जहां से आए हो वहीं जाओ, दिस इस नॉट सेफ प्लेस फॉर यू, वी आर ह्यूमन, वी कैन नॉट टॉलरेट यू इन आवर सोसाइटी। अब हुआ यह कि जिस कपड़े से मैंने उस कनखजूरा को पकड़ा और घर के बाहर खुले में खुलने वाले सिंक में डाला, उस सिंक में ही पहले से एक बिच्छू बैठा हुआ था। मैंने फुर्ती से कपड़ा सिंक में डाला, सिंक का ढक्कन खोल कर पानी के साथ उस कनखजूरा को बहा दिया ताकि वह बाहर चला जाए और अब क्योंकि कपड़े को धोना जरूरी था इसलिए मैंने नल के नीचे कपड़े को धोना शुरू किया कि अकस्मात मेरे हाथों में जलन होने लगी और इतनी तेज जलन होने लगी कि मैं हैरत में। अबे तुझे सेफ बाहर किया तुझे भी लगता है कलियुग का असर हो गया। यह भी सोचने लगा कि यह क्या कहानी है, कनखजूरा को तो मैंने छुआ या पकड़ा भी नहीं, क्या उसने अपना विष छोड़ दिया? जलन का क्या कारण हो सकता है? इतनी तेज जलन जैसे एसिड छू लिया हो, जैसे-जैसे मैं कपड़े को धोता गया, जलन मेरी कई उंगलियों में होने लगी। मुझे समझ में नहीं आया क्या मसला हुआ यह सुबह सुबह, होम करते हाथ जला लिए। आखिरकार मैंने कपड़े का पानी झटका और तार में सूखने के लिए डाल दिया। जैसे ही मैंने तार में कपड़े को डाला होश उड़ गए। एक बिच्छू लटका हुआ था उस कपड़े में और वह जो जगह-जगह मेरे हाथों में जलन हो रही थी वह यकीनन उसके डंक की थी। जो कपड़े निचोड़ते हुए आधा दर्जन पॉइंट्स के साथ चुभी, या कहें खुद मैने चुभो ली, लो बेटा भुगतो।😭 चक्कर खाने की थी घड़ी थी। सामने अधमरा अचेत बिच्छू🦂 और होश फाख्ता होने का झटका झेलता मैं। खुद ही मुसीबत बुलाई। बस यहीं से भीतर के उस आत्मविश्वास ने अंगड़ाई ली जो चीटी से भी डरता है मगर शेर भी आ जाए तो डर कर तो मरेगा नहीं। ख्याल कौंधा, क्या होगा, होगा वही जो मंजूरे डेस्टिनी होगा। 1 मिनट को मैंने खुद को संयत किया और पानी की तेज धार में जितना हो सके हाथ को डेटॉल से धोया, जलन कुछ रुकी, उसके बाद मैंने एहतियात के तौर पर हाथ में रुमाल को बांध लिया ताकि जहर ऊपर तक ना जा पाए और फिर सोचने लगा सुबह के 5*30 बजे कौन डॉक्टर मिलेगा?जो मिलेगा वो पहले कोविड टेस्ट कराएगा, अभी तो यकीनन सोया होगा। इसी उधेड़बुन में मैंने सोचा अब इंजेक्शन लगाएंगे, दवाएं खिलाएंगे, पेट खाली नहीं होना चाहिए। चाय खुद बनाई इससे पहले कि घर पर कोहराम मचे, चाय पी, बिस्कुट खाए और घर पर बिना किसी को इत्तिला दिए हड़कंप मचाए मैं घर से निकल पड़ा। रास्ते में डॉक्टर को फोन किया तो उनका मोबाइल बंद था। जा पहुंचा नर्सिंग होम। बांछे खिला कर स्वागत हुआ। वहां बीपी शुगर चेक हुआ। दोनों बड़े हुए थे मामूली से, क्योंकि चाय में शक्कर ज्यादा थी और जिसको बिच्छू काट ले वह सदमे से भी निपट सकता है। बहरहाल नर्सिंग होम में हालात यह थे कि एक भी मरीज नहीं था और जूनियर डॉक्टर खाली बैठा हुआ था। उसने ऑनर को फोन लगाया। ओनर ने कहा कि तत्काल आईसीयू में एडमिट कर दिया जाए। मुझे कहा गया कि अब आप भर्ती हो जाइए। मैंने नंबर लिया खुद बात की। मैंने कहा मुझे कोई भी परेशानी नहीं है और अगर यहां भर्ती किया तो यकीनन परेशानी शुरू हो जाएगी। अब मामला बिच्छू का था और बिच्छू को भी सांप की श्रेणी में ही रखा जाता है और anti-venom इंजेक्शन दिया जाता है। संचालक ने कहा आप अपनी रिस्क पर जाइए और लिखकर दे दीजिए। फौरन लिख दिया। इंजेक्शन लगाए, गोलियां दी गई। मैंने गाड़ी उठाई। माताजी के घर आ गया। माताजी के पास पहुंचा। उन्होंने हंसते हुए मुझे कहा तुमको बिच्छू ने काटा कि नहीं काटा, मुझे नहीं मालूम लेकिन मुझे तो दो बार काटा है गांव में और गांव में कोई खास इलाज भी नहीं हुआ। बस 24 घंटे जलन हुई। उन्होंने पूछा कि कौन से रंग का बिच्छू था, मैंने कहा बताया कि काला बिच्छू नहीं था। उन्होंने हिम्मत दी। कहा चिंता की कोई बात नहीं। खैर, कई तरह की आशंकाएं लिए मैं घर आ गया। बिच्छू पर आंखे तरेरी जो उसी हालत में कपड़े में लटक रहा था। मैंने सोचा कि इसका क्या कुसूर। अब उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाए। मैंने घर के पीछे झाड़ियां इकट्ठा की और माचिस की तीली जैसे ही जलाई और बिच्छू सहित कपड़े को उसमें डाला... हैरान हो जाइए तपिश पाकर पानी से भीगा हुआ बिच्छू उठ खड़ा हुआ और फुर्ती से रेंगता हुआ चला गया। ओ माय गॉड। उसकी पूंछ जिसमें जहर होता है वो टूट चुकी थी और उसके डैने डंक भी क्षतिगस्त थे। जब वह जाने लगा तो मैंने हाथ जोड़े, कहा जाओ भाई मुझसे गलती हुई, माफ करो दुबारा बदला लेने मत आना। जिसको बचाया वो भाग गया तुम हम फंस गए।
अगले 24 घंटे का ऑब्जरवेशन पीरियड बहुत एब्नॉर्मली नॉर्मल था। बस विचित्र ख्याल आते रहे और रात बीत गई, बात बीत गई। वो बच गया, मैं भी बच गया।
Moral of the story किसी भी कपड़े को हाथ में लो तो एक बार झटक कर जरूर देख लो कि उसमें कोई जीव जंतु तो नहीं है। कोशिश यह जरूर रहे कि लंबा झाड़ू या किसी लंबी लकड़ी से rescue किया जाए। सबसे बढ़िया कोई रेंग रहा हो तो दरवाजे का रास्ता दिखा दो, होशियार भारी पड़ सकती है। जय हो।
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