खुद आडवाणी ने कहा, रमन भी हैं उत्तराधिकारी
सोमवार, 11 मई 2009
भाजपा के शिखर नेता पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी ने इन दिनों छत्तीसगढ़ में एक नया शिगूफा छोड़ दिया है, यह कह कर कि डॉ. रमन सिंह भी उनके उत्तराधिकारी हो सकते हैं। इस बयान ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की पार्टी में पदोन्निति की चर्चाओं को जन्म दे दिया है।
दरअसल चांउर वाले बाब्बा (चावल वाले बाबा) के रूप में चर्चित डॉ. रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ में भाजपा की नैया विधानसभा चुनाव में पार लगाकर अपने लिए एक नई आफत मोल ले ली। प्रदेश कांग्रेस ने सबसे पहले उनके चावल कार्ड को तिरंगे में लपेटकर विधानसभा चुनावी मुद्दों में चावल ही चावल बिखेर दिए। लेकिन यह मुद्दा चूँकि डॉ. रमन सिंह का था लिहाजा वे ही भारी पड़े। कांग्रेस ने अब उनके इस चुनावी वायदे का पूरा का पूरा ब्लू प्रिंट केंद्र में झटक लिया और सस्ते गेहूं-चावल की घोषणा कांग्रेस के प्रचार में शामिल है। कांग्रेस की लकीर पीट रही भाजपा ने भी, देर से ही सही अब चांउर वाले बब्बा की घोषणाएँ हू-ब-हू अपने केंद्रीय घोषणापत्र में शामिल कर ली है।
इधर छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन की लोकप्रियता के सहारे माना जा रहा है कि संसदीय चुनाव में भी भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा सीटें मिलेंगी। 16 अप्रैल को मतदान को भाजपा डॉ. रमन के कंधे पर ही सवार रही। डॉ. रमन भाजपा की प्रदेश के चुनाव अभियान समिति के मुखिया बना दिए गए और मतदान होने तक गाजियाबाद से लेकर भुवनेश्वर, केंद्रपाड़ा (उड़ीसा) तक में जाकर भाजपा का प्रचार कर चुके हैं।
आडवाणी जब भी डॉ. रमन से मिलते हैं, वे उनको चांउर वाले बब्बा कहकर बुलाते हैं। हाल में एक चैनल ने आडवाणी से पूछा कि क्या वे अपने उत्तराधिकारी के रूप में गुजरात के मुख्यमंत्री डॉ. नरेन्द्र मोदी को देखते हैं तो पलट जवाब में आडवाणी बोले - 'उनके उत्तराधिकारी डॉ. रमन भी हो सकते हैं।'
भाजपा के उच्च स्तर पर यह माना जा रहा है कि इन दिनों पार्टी अरुण जेटली बनाम राजनाथ सिंह के अंतर्विरोधों के कारण अपनी पूरी ताकत नहीं लगा पा रही है और मौजूदा अध्यक्ष की बेबसी का आलम यह है कि वे समकालीन होने के नाते सुषमा स्वराज से लेकर वेंकैया नायडू तक किसी भी पदाधिकारी पर उनकी चल नहीं पाती है। भाजपा में तदर्थवाद का ग्रहण बंगारू लक्ष्मण, जनाकृष्णमूर्ति और वेंकैया नायडू के समय से लगा जिसका खामियाजा पार्टी भुगतती रही। राजनाथ सिंह भी तदर्थवाद के भंवर में उलझ गए हैं। अब चूँकि कांग्रेस में युवा नेतृत्व के उभार के रूप में राहुल गांधी सामने हैं, लिहाजा भाजपा भी किसी ऐसे चेहरे को प्रमोट करने में लगी है जो नरम, सौम्य और गरीबों का मसीहा जैसी अटल बिहारी वाजपेयी की छवि को आगे ले जा सके। भाजपाशासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों में शिवराज सिंह चौहान (मध्यप्रदेश), भुवनचंद्र खंडूड़ी (उत्तराखंड) और येदुरप्पा (कर्नाटक) फिहाल राज्यों के लिए ही मुफीद माने जा रहे हैं और भाजपा के तकरीबन सभी बड़े नेता यह मानते हैं कि डॉ. रमन छवि के मामले में इन सबसे ऊपर हैं, जिसका लाभ भाजपा को मिल सकता है। वैसे भी आडवाणी के बाद कौन ? इस सवाल पर भाजपा में बेचैनी व्याप्त है।
डॉ. रमन के बाद छत्तीसगढ़ में कौन ? इस सवाल को लेकर कहा जा रहा है फिलहाल 90 सीटों वाली विधानसभा में 50 सीटें भाजपा के पास हैं और 38 सीटों पर कांग्रेस है। राज्य में शासन चलाने केलिए डॉ. रमन सिंह ही किसी नेता को बिठा सकते हैं। गौरतलब है कि 2003 में वाजपेयी सरकार में डॉ. रमन सिंह जब उद्योग राज्य मंत्री थे तब उनको भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भेजा गयाथा। कोई नेता यह जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं था। तब डॉ. रमन सिंह ने कांग्रेस के धुरंधर मुख्यमंत्री अजीत जोगी को हटा कर भाजपा की सरकार बनाने में सफलता हासिल की और अब यह सफलता उनके लिए नई चुनौतियों का सबब बन गई है।
लेकिन असली और अहम् प्रश्न खुद डॉ. रमन सिंह का है। उन्होंने चर्चाओं को लेकर अपनी पसंद साफ जाहिर कर दी है। उनका कहना है कि दिल्ली जाने का उनका कोई इरादा नहीं है। वे छत्तीसगढ़ में रहकर ही देशसेवा करना चाहते हैं।
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