प्यार का नगमा

गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

 


जेसीआई रायपुर वामंजली द्वारा जोन इवेंट *प्यार का नगमा* की सफलता के उपलक्ष्य में एक समारोह का आयोजन 26 अप्रैल को वृन्दावन हाल में किया गया जिसमे सदस्यों को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित किया गया। 

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि पीपीपी जे एफ आर राजेश अग्रवाल ,चेयरपर्सन जेसीआई सीनेटर आंचल पंजवानी एवं जज जेसी रूपाली दुबे , प्रेसिडेंट जेसी ईशानी तोतलानी, कोऑर्डिनेटर जेसी रूमा पटेल, इंचार्ज जेसी अनन्या मिश्रा ,आईपीपी उषा तिवारी प्रोग्राम डायरेक्टर अनीता अग्रवाल एवं सुनीता मिश्रा, सेक्रेटरी जेसी अर्चना द्विवेदी सहित जेसीआई रायपुर वामांजली के  40 सदस्य  उपस्थित रहे।

इसके साथ ही स्टार ऑफ द मंथ अवार्ड जेसी श्रुति डहरिया,पूजा गुप्ता,मानसी स्वाइन,तनु अनल, पारुल अग्रवाल को दिया गया।

कार्यक्रम का पूरा वीडियो यहां देखें

https://youtube.com/shorts/a9LyfjpqcXY?feature=share


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बुधवार, 22 मार्च 2023

 सभी मित्र ब्लॉग के साथी यूट्यूब पर भी यायावर की पोस्ट देख सकते हैं। सुस्वागतम।

Pl type yayavar ramesh


Or just click below 

https://youtube.com/@yayavartraveler5811

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पत्रकारों के पत्रकार थे रमेश नैयर जी

सोमवार, 9 जनवरी 2023

#रमेश शर्मा

दरणीय रमेश नैयर जी ने लोक की यात्रा पूरी कर ली और देवलोक को गमन कर गए हैं लेकिन उनकी यादें हमेशा जीवंत प्रकाशित रहेंगी। हमारे दिलों में वे सदा रहेंगे।

स्व. रमेश नैयर ने छत्तीसगढ़ के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी पत्रकारिता के प्रतिमान स्थापित किये। वे अपने कृतित्व और व्यक्तित्व से नयी पीढ़ी के #पत्रकारों को हमेशा प्रेरित करते रहेंगे।
बताने की जरूरत नहीं, वे पत्रकारों के पत्रकार थे संपादकों के #संपादक थे और अर्ध शताब्दी से उनका नाम चमकता रहा है।

नैयर जी उस पीढी से थे जिसने हमेशा सत्य का साथ दिया। वह हमेशा सत्य पर अडिग रहे।
#मुख्यमंत्री  #भूपेशबघेल  ने अपनी श्रद्धांजलि में कहा कि स्व. नैयरजी ने छत्तीसगढ़ के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी पत्रकारिता के प्रतिमान स्थापित किये हैं। वे अपने कृतित्व और व्यक्तित्व से नयी पीढ़ी के पत्रकारों को हमेशा प्रेरित करते रहेंगे।
नैयर जी का जीवन सादगी से भरा हुआ था जब परिवार के साथ वक्त देते थे लेकिन समाज के लिए भी समर्पित थे उनको अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। उनके निधन की सूचना से पूरे पत्रकार जगत में शोक की लहर व्याप्त हो गई।
सम्मान का कोई भी मंच हो नैयर जी की जगह सुरक्षित थी। विमोचन हो या पुरस्कार वितरण तक।
नैयर सर से जुड़े अनेक संस्मरण हैं। वे नौजवानों को प्रोत्साहित करने वाले सम्पादक थे। उनके अपने स्थापित मानदंड थे जिन पर वे उम्र भर कायम रहे l मां सरस्वती उनके कंठ में विराजमान रहती थी और जब वे दिल से लिखते थे तो जमाना गौर से पढ़ता था।
प्रिंट मीडिया से बेशक नैयर जी ने शुरुआत की थी लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी वे सिद्धहस्त वक्ता थे।
आशावाद और उम्मीद नैयर जी की पत्रकारिता के केंद्र बिंदु थे  उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वे दो टूक समीक्षक थे।

जब #करोना_वायरस  फैला तो नैयर जी भी महामारी के खिलाफ डीपीआर छत्तीसगढ़ द्वारा शुरू किए गए जन जागरूकता अभियान में सीना तान कर समाज को #जागरूक  बनाने आगे आए।
वे  पत्रकारिता जगत के सिद्धहस्त पुरोधा और प्रकाशमान नक्षत्र थे।समाज सेवा में भी अग्रणी थे।

उनकी #कलम  की धार बहुत पैनी थी और उस कलम में एक सजग नागरिक सजग पत्रकार सर्जक संपादक सर्जक समाजसेवी नजर आता था।

विचार कभी नही मरते। उनका यूं जाना शोक का इसलिए कारण नहीं, क्योंकि वे वे पंच महाभूत में विलीन हुए हैं, देह से मुक्त हुए हैं, विचारों में लेखों में सदा अमर रहेंगे।

रमेश नैय्यर का जाना पत्रकारिता में बौद्धिक खालीपन उत्पन्न करेगा। मगर वो पत्रकारिता जगत के ध्रुव सितारे हैं। उनकी  प्रेरणा कई युवाओं को दिशानिर्देशित करेगी।
वे सदैव हम सबके बीच में नहीं हैं लेकिन उनके विचार आने वाले कई वर्षों तक हम सब पत्रकारों को अनुप्राणित करते रहेंगे।
रमेश नैयर जी मूल्यों के पक्षधर थे। उन्होंने मीडिया में यह बात अपने तइ स्थापित की कि हमेशा सच के साथ चलो और वे जीवनभर सच के मूल्यों के प्रहरी बने रहे।
आदरणीय रमेश नैयर जी हम सब पत्रकारों के प्रेरणा स्रोत रहे हैं।
उनको मेरा शत-शत नमन

You tube story के लिए click करें

https://youtu.be/ZJIvrfH0S7Q

https://youtu.be/ZJIvrfH0S7Q


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इस बरसात में भीगते हुए

गुरुवार, 21 जुलाई 2022

बारिश का मौसम मुझे भीतर तक भिगो देता है| समूचे छत्तीसगढ़ में इन दिनों झमाझम बारिश हो रही है और देश भर में बरसात अपना असर दिखा रही है। उत्तर-पूर्व के कई राज्य जलाप्लावन से जूझ रहे हैं। मूसलाधार बारिश में खिड़की पर खड़े हो कर घर के आगे लगे हुए गुलमोहर के पेड़ को शिथिल झूमते देखना सुहाना लगता है। यही गुलमोहर प्रचंड गर्मी में लाल सुर्ख हो कर दहकता है जब पेड़ों की पत्तियां झड जाती हैं और हरियाली के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं।



 बारिश का इंतज़ार इंसान ही नहीं करते बल्कि हरेक जीव-जंतु करते हैं। अगस्त में पैदा हुआ.. और मेरे लेखन की तरफ मुड़ने की वजह भी बारिश बनी थी। बरसात की उस रात कालेज के दिनों में मैंने कविता लिखी और वो छपी तो उत्साह दूना हो गया। रिमझिम बरसती बूंदों और सबको आल्हादित कर देने वाली फुहारों के खुशनुमा मौसम में अंतर्मन गुनगुनाने लगता है और मन के किसी कोने में दबे बरसात के नगमे होठों पर मचल जाते हैं। मैं आसपास एक खुशगवार बदलाव भी देखता हूँ|गर्मी में किसी से साधारण बात कीजिए तो वह अलग तरह का चिडचिडा सा रिस्पांस देगा मगर बरसात हो रही हो तो आमतौर पर सड़क पर जिसे जो जगह दिख जाए, चाहे वह किसी बंद पडी दूकान का गंदा कोना क्यों न हो वहाँ शरण लिए बारिश थमने का इंतजार करते लोग प्रफुल्लित हो कर बातचीत करते हैं| मेरे कुछ पहाडी मित्रों को छोड़ दिया जाए तो अमूमन ठण्ड का मौसम अधिकतर सबको ठंडा कर देता है और ठण्ड बीतने के बाद बढ़ती गर्मी में मैं दिन गिनना शुरू कर देता हूँ कि मानसून कब आएगा| यह दौर "कब होगी बारिश" के साथ ही एक तसल्ली के साथ कटता है कि झेल लो गर्मी .. जितनी गर्मी पड़ेगी उतनी अच्छी बरसात होगी| इस दौर में मौसम विभाग के नित बदलते पूर्वानुमानों से खीज होने लागती है जो मानसून को खिसका देते हैं| फिर जून के एक दिन घनन-घनन घिर आए बदरा बिजली की चमक और गरज के साथ बरसते हैं तो लगता है साध पूरी हुई| रिमझिम बूंदों और फुहारों में लांग ड्राईव पर जाने के ख्वाब तैरने लगते हैं|ऐसे खुशनुमा मौसम में एकाएक मन गुनगुनाने लगता है और लब बरसात के नगमों की झड़ी में फिसलते लगते हैं| बरसात के गीत अंतरतम में नया एहसास जगाते हैं और हर कोई एक भीगी हुई ऊर्जा से लबालब दीखता है।नजर जिधर भी जाती है चंद दिनों में सड़क के किनारे सूखी और बेजान सी पडी मिट्टी में छोटे-छोटे हरित पल्लवों का एक बिछौना सा चढ़ जाता है और जिन पौधों को पानी देने के बावजूद रंगत नहीं चढ़ती वे लहलहा उठते हैं| सब जगह बारिश वही है... एहसास वही है... सुकून वही है... और नजारा भी वही है मगर व्याख्या अलग होती है| मूल मुद्दा यह है कि यह सब कुछ निशुल्क है| कोई टैक्स नहीं है| कोई कतार नहीं है... मगर हम इस प्रकृति चक्र को ही बदल देने पर तुले हैं| .....और ज्यादा ..ज्यादा की कंकरीटी ख्वाहिशों में पेड़ काट रहे हैं और सीमेंट से सजी दुनिया देखना चाहते हैं| भूजल को पहले तो निचोड़ लेना चाहते है और फिर भूमि को पक्के तौर पर ढंक कर भीतर जल जाने से रोक देते हैं| जहरीली गैसों को आसमान के कूड़ेदान के हवाले करके चाहते हैं कि हम बारिश का मजा लें| .... तो अब कुदरत का मिजाज बिगड़ गया है | यह आगे और बिगड़ेगा| इस वजह से मौसम चक्र गड़बड़ा गया है| छत्तीसगढ़ में सालाना 1400 मिलीमीटर बारिश होती रही है जो अब 1200 मिलीमीटर सालाना के औसत पर आ गई है| अमूमन दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं जैसे चक्रवात से भी फसलों को भारी नुकसान की ख़बरें इधर लगातार आ रही है और ब्रिटेन सरीखा ठंडा देश भी इस साल भीषण गर्मी से तप रहा है| करें कुछ लोग भरे पूरी दुनिया| मैं प्रायः सोचता हूँ कि दुनिया में पृथ्वी के लोगों को कितना कुछ हासिल है मगर हम उसे बर्बाद कर देने पर तुल चुके हैं|

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जन्म दिन पर बिच्छू को याद करते हुए

बुधवार, 25 अगस्त 2021

  मेरे जन्मदिन आम से दिन को, साधारण दिवस को खास और अहम बनाने वाले मित्रों परिजनों का हार्दिक हार्दिक आभार और इसी के साथ ही एक घटना का भी जिक्र करता चलूं जो हाल में घटी, जिसमें मेरी भिड़ंत बिच्छू महाशय से हो गई और बिच्छू ने अगर कमाल दिखा दिया होता तो आज मेरा नमस्ते वाला दिन बन गया होता।

 हुआ यह कुछ दिन पहले सुबह अचानक जब नींद खुली तो मैंने देखा जमीन पर एक कनखजूरा रेंग रहा था। अमूमन घर में कीड़े मकोड़े आ ही जाते हैं और हरित बस्तियों में जो लोग ग्राउंड फ्लोर पर रहते हैं वह इस समस्या से प्रायः बावस्ता होते रहते हैं। तो हुआ यह कनखजूरा जब पता नहीं किधर से कमरे में घुस आया और बाहर निकलने के लिए भटकने ही

लगा होगा। मैंने एक कपड़ा उसके ऊपर डाला और उसी कपड़े से उठाकर उसको बाहर का रास्ता दिखाने लगा। अमूमन कीड़े मकोड़े घुस आते हैं तो मैं कोशिश करता हूं कि उनको झाड़ू से या पेपर में यह किसी और तरीके से सुरक्षित बाहर की यात्रा करा दो। जाओ बेटा, जहां से आए हो वहीं जाओ, दिस इस नॉट सेफ प्लेस फॉर यू, वी आर ह्यूमन, वी कैन नॉट टॉलरेट यू इन आवर सोसाइटी। अब हुआ यह कि जिस कपड़े से मैंने उस कनखजूरा को पकड़ा और घर के बाहर खुले में खुलने वाले सिंक में डाला, उस सिंक में ही पहले से एक बिच्छू बैठा हुआ था। मैंने फुर्ती से कपड़ा सिंक में डाला, सिंक का ढक्कन खोल कर पानी के साथ उस कनखजूरा को बहा दिया ताकि वह बाहर चला जाए और अब क्योंकि कपड़े को धोना जरूरी था इसलिए मैंने नल के नीचे कपड़े को धोना शुरू किया कि अकस्मात मेरे हाथों में जलन होने लगी और इतनी तेज जलन होने लगी कि मैं हैरत में। अबे तुझे सेफ बाहर किया तुझे भी लगता है कलियुग का असर हो गया। यह भी सोचने लगा कि यह क्या कहानी है, कनखजूरा को तो मैंने छुआ या पकड़ा भी नहीं, क्या उसने अपना विष छोड़ दिया? जलन का क्या कारण हो सकता है? इतनी तेज जलन जैसे एसिड छू लिया हो, जैसे-जैसे मैं कपड़े को धोता गया,  जलन मेरी कई उंगलियों में होने लगी। मुझे समझ में नहीं आया क्या मसला हुआ यह सुबह सुबह, होम करते हाथ जला लिए। आखिरकार मैंने कपड़े का पानी झटका और तार में सूखने के लिए डाल दिया। जैसे ही मैंने तार में कपड़े को डाला होश उड़ गए। एक बिच्छू लटका हुआ था उस कपड़े में और वह जो जगह-जगह मेरे हाथों में जलन हो रही थी वह यकीनन उसके डंक की थी। जो कपड़े निचोड़ते हुए आधा दर्जन पॉइंट्स के साथ चुभी, या कहें खुद मैने चुभो ली, लो बेटा भुगतो।😭 चक्कर खाने की थी घड़ी थी। सामने अधमरा अचेत बिच्छू🦂 और होश फाख्ता होने का झटका झेलता मैं। खुद ही मुसीबत बुलाई। बस यहीं से भीतर के उस आत्मविश्वास ने अंगड़ाई ली जो चीटी से भी डरता है मगर शेर भी आ जाए तो डर कर तो मरेगा नहीं। ख्याल कौंधा, क्या होगा, होगा वही जो मंजूरे डेस्टिनी होगा। 1 मिनट को मैंने खुद को संयत किया और पानी की तेज धार में जितना हो सके हाथ को डेटॉल से धोया, जलन कुछ रुकी, उसके बाद मैंने एहतियात के तौर पर हाथ में रुमाल को बांध लिया ताकि जहर ऊपर तक ना जा पाए और फिर सोचने लगा सुबह के 5*30 बजे कौन डॉक्टर मिलेगा?जो मिलेगा वो पहले कोविड टेस्ट कराएगा, अभी तो यकीनन सोया होगा। इसी उधेड़बुन में मैंने सोचा अब इंजेक्शन लगाएंगे, दवाएं खिलाएंगे, पेट खाली नहीं होना चाहिए। चाय खुद बनाई इससे पहले कि घर पर कोहराम मचे, चाय पी, बिस्कुट खाए और घर पर बिना किसी को इत्तिला दिए हड़कंप मचाए मैं घर से निकल पड़ा। रास्ते में डॉक्टर को फोन किया तो उनका मोबाइल बंद था। जा पहुंचा नर्सिंग होम। बांछे खिला कर स्वागत हुआ। वहां बीपी शुगर चेक हुआ। दोनों बड़े हुए थे मामूली से, क्योंकि चाय में शक्कर ज्यादा थी और जिसको बिच्छू काट ले वह सदमे से भी निपट सकता है। बहरहाल नर्सिंग होम में हालात यह थे कि एक भी मरीज नहीं था और जूनियर डॉक्टर खाली बैठा हुआ था। उसने ऑनर को फोन लगाया। ओनर ने कहा कि तत्काल आईसीयू में एडमिट कर दिया जाए। मुझे कहा गया कि अब आप भर्ती हो जाइए। मैंने नंबर लिया खुद बात की। मैंने कहा मुझे कोई भी परेशानी नहीं है और अगर यहां भर्ती किया तो यकीनन परेशानी शुरू हो जाएगी। अब मामला बिच्छू का था और बिच्छू को भी सांप की श्रेणी में ही रखा जाता है और anti-venom इंजेक्शन दिया जाता है। संचालक ने कहा आप अपनी रिस्क पर जाइए और लिखकर दे दीजिए। फौरन लिख दिया। इंजेक्शन लगाए, गोलियां दी गई। मैंने गाड़ी उठाई। माताजी के घर आ गया। माताजी के पास पहुंचा। उन्होंने हंसते हुए मुझे कहा तुमको बिच्छू ने काटा कि नहीं काटा, मुझे नहीं मालूम लेकिन मुझे तो दो बार काटा है गांव में और गांव में कोई खास इलाज भी नहीं हुआ। बस 24 घंटे जलन हुई। उन्होंने पूछा कि कौन से रंग का बिच्छू था, मैंने कहा बताया कि काला बिच्छू नहीं था। उन्होंने हिम्मत दी। कहा चिंता की कोई बात नहीं। खैर, कई तरह की आशंकाएं लिए मैं घर आ गया। बिच्छू पर आंखे तरेरी जो उसी हालत में कपड़े में लटक रहा था। मैंने सोचा कि इसका क्या कुसूर। अब उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाए। मैंने घर के पीछे झाड़ियां इकट्ठा की और माचिस की तीली जैसे ही जलाई और बिच्छू सहित कपड़े को उसमें डाला... हैरान हो जाइए तपिश पाकर पानी से भीगा हुआ बिच्छू उठ खड़ा हुआ और फुर्ती से रेंगता हुआ चला गया। ओ माय गॉड। उसकी पूंछ जिसमें जहर होता है वो टूट चुकी थी और उसके डैने डंक भी क्षतिगस्त थे। जब वह जाने लगा तो मैंने हाथ जोड़े, कहा जाओ भाई मुझसे गलती हुई, माफ करो दुबारा बदला लेने मत आना। जिसको बचाया वो भाग गया तुम हम फंस गए।
अगले 24 घंटे का ऑब्जरवेशन पीरियड बहुत एब्नॉर्मली नॉर्मल था। बस विचित्र ख्याल आते रहे और रात बीत गई, बात बीत गई। वो बच गया, मैं भी बच गया।
Moral of the story किसी भी कपड़े को हाथ में लो तो एक बार झटक कर जरूर देख लो कि उसमें कोई जीव जंतु तो नहीं है। कोशिश यह जरूर रहे कि लंबा झाड़ू या किसी लंबी लकड़ी से  rescue किया जाए। सबसे बढ़िया कोई रेंग रहा हो तो दरवाजे का रास्ता दिखा दो, होशियार भारी पड़ सकती है। जय हो।

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फिर से बस्तर

गुरुवार, 22 जुलाई 2021


बस्तर की शांत
फिजाओं में अब बारूद की इतनी गंध फैल चुकी है कि पहाड़ी मैना के चहचहाने की कोई गुंजाइश ही नजर नही आती। विचारधारा से भटका खूंरेजी माओवाद भी लड़ते लड़ते अब एक ऐसी जहरीली सुरंग में फंस गया है जिसम सिर्फ बंदूक की भाषा में बात हो रही है और एक दर एक शांति के सारे प्रयास तब तिरोहित हो जाते हैं जब मुठभेड़ में सिर्फ शहादतों की खबरें आती है। 

घटनाक्रम पर नजर डालें तो एक शुभ संकेत यह भी नजर आता है  कि बस्तर में माओवादी भी लगता है खून खराबे से तंग आ चुके हैं। उदाहरण तब देखने को मिला जब सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के जवान राकेश्वर सिंह को नक्सलियों ने मुठभेड़ के बाद पहले तो पकड़ लिया लेकिन हमेशा की तरह वे उसे मार नहीं सके और एक खास बात और हुई है कि बस्तर में स्वयंसेवी संगठनों और शांति के असली पहलकर्ताओं के भारी दबाव में नक्सलियों को राकेश्वर सिंह को छोड़ना पड़ा।

जानकारों की मानें तो बस्तर में 1980 से शुरू हुआ नक्सलवाद अब इस टर्निंग पॉइंट पर आ चुका है कि उनसे सरकार की बातचीत तभी इसी सार्थक मुकाम पर पहुंच सकती है जब स्वयंसेवी संगठनों और वास्तव में आदिवासियों का भला चाहने वाले लोगों को मध्यस्थ की भूमिका में लाया जाए।


बीजापुर में 22 जवानों की हालिया शहादत का मसला अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों में रहा है। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि चूक कहां हुई। ऑपरेशन के लिए दो हजार से ज्यादा जवानों को जंगलों में उतारा गया जबकि नक्सलियों की संख्या बताते हैं कि 5 या 7 सौ ही थी। फिर भी नक्सली भारी पड़े। 

मौके का मुआयना करने वालों के मुताबिक नक्सली ऊंची पहाड़ी पर थे और जवान उन पहाड़ियों के बीच मैदान में फंसे हुए थे। ऊपर से गोलियां चलती रही और एक-एक कर जवान ढेर होते गए। यहां गौर करने वाली बात है कि नक्सली हमेशा ऐसा ही एंबुश लगाते हैं जब फोर्स लौट रही हो और थकी हुई हो। कई जवान एक साथ एक ही इलाके में मौजूद थे। गोलियां सीधे सामने चल रहे जवानों को लगी। मतलब नक्सलियों ने जवानों को पहले अंदर आने दिया और फिर फंसाया।

जोनागुड़ा गांव में नक्सली छुपे हुए थे। हुआ यह कि पहाड़ी मोर्चे पर जब जवानों को लगा कि यहां में फंस गए हैं तो वह गांव की तरफ भागे। गफलत यहीं हो गई। गांव में भी नक्सली मौजूद थे। नक्सलियों ने बड़े आराम से घेर कर न सिर्फ जवानों को मारा जो कि पहले से घायल थे बल्कि उनके कपड़े जूते और हथियार भी लूट कर ले गए। खबरें यह भी हैं कि 11 बजे मुठभेड़ शु़रू हुई जो 3 बजे तक चलती रही। इन पांच घंटो में कोई बैकअप फोर्स मौके पर नही आ पाई।

यहां गौर करने वाली बात यह है कि दस दिनों के अंदर नक्सलियों ने दूसरी बार बड़ी घटना को अंजाम दे कर बता दिया कि  माओवादी कमजोर नही हुए वे अपनी पुरानी गोरिल्ला वार की रणनीति पर कायम है और एक ही तरीके से पहले झूठी सूचनाएं देकर जवानों को जंगल में बुलाते हैं और वापस लौटते समय ताबड़तोड़ हमला कर देते हैं। पिछले बीस साल में 12 हजार से अधिक निर्दोष लोग मारे जा चुके हैं। कांग्रेस के नेता राजबब्बर ने राजीव गांधी भवन में 2018 मे कहा था कि नक्सली क्रांतिकारी हैं। यह माना जा रहा था पूर्ववर्ती राज्य की बीजेपी सरकार के पट्टी नक्सली ज्यादा आक्रामक है और कांग्रेस से उनको कोई परेशानी नहीं है लेकिन यह धारणा भी फिजूल साबित हुई है। एक मुखर जानकर की मानें तो नक्सलियों ने यह साबित कर दिया है कि वह किसी के सगे नहीं है और जंगल में वह सिर्फ अपनी मनमानी ही चाहते हैं फिर सरकार चाहे किसी भी पार्टी की क्यों ना हो।

नक्सलियों ने 17 मार्च 2021 को शांति वार्ता का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा था। नक्सलियों ने विज्ञप्ति जारी कर कहा था कि, वे जनता की भलाई के लिए छत्तीसगढ़ सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं। उन्होंने बातचीत के लिए तीन शर्तें भी रखी थीं। इनमें सशस्त्र बलों को हटाने, माओवादी संगठनों पर लगे प्रतिबंध हटाने और जेल में बंद उनके नेताओं की बिना शर्त रिहाई शामिल थीं। मगर कोई बातचीत परवान नहीं चढ़ सकी। दरअसल कश्मीर में आतंकवाद के सफाई की तुलना अगर बस्तर में की जाए तो सरकार को जानकारों की राय में सबसे पहले यह करना होगा की जंगल के भीतर तक पक्की पहुंच बनानी पड़ेगी। बीजापुर मे तर्रेम क्षेत्र जहाँं सड़के नहीं है, सिर्फ पगडंडी है। यहां फोर्स का मोमेंट कैसे हो सकता है नक्सलियों की यह खास रणनीति है कि वह पक्की सड़क बनने ही नहीं देते। जानकारों की राय में सरकार को पक्की सड़कों का इंतजाम किए बगैर जंगल में पैदल सेना के भरोसे इस लड़ाई को जीतने में बहुत मुश्किलें आएंगी। इस इलाके की कमांड हिड़मा और सुजाता जैसी नक्सली लीडर के हाथ में है। जो घर में पैदा हुए जंगल में पैदा हुए और 24 घंटे वहीं गुजारते हैं। नक्सलियो को यह मालूम है की फरवरी, मार्च , अप्रैल के महीने में इलाके में अपनी पकड़ बनाने के लिए इस तरह की बड़ी वारदातों को अंजाम देना होगा और वह हमेशा से यही करते आए हैं जितनी भी बड़ी घटनाएं हुए हैं वह मार्च और अप्रैल के महीने में ही हुई है। महीनों में नक्सली जंगल में ट्रेनिंग कैंपों का संचालन करते हैं। पर चलकर मुठभेड़ों के शिवाय फिलहाल कुछ हासिल होने वाला नहीं है। फोर्स जंगल के बाहर तो पूरी मुस्तैदी से काम करती है लेकिन जंगल के भीतर की ट्रेनिंग अभी पक्की नहीं है और जिस तरह से नक्सलियों का बिल भी पसीजा है तो अब एक ही सूरते हाल है कि सरकार को किसी तरीके से माओवादियों को बातचीत की टेबल पर लाना चाहिए और यह वक्त की मांग है कि सरकार  आदिवासियों को विश्वास में लेकर नक्सली लीडरों से बात करने की पहल करे। 

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सायबर ठगों का जामताड़ा

रविवार, 7 मार्च 2021

 एक अकेले जामताड़ा ने पूरे छत्तीसगढ़ ही नही समूचे आसपास के राज्यों की पुलिस की नाक में दम कर दिया है।  झारखंड का कुख्यात जामताड़ा साइबर अपराध का अभ्यारण्य बन गया है। छत्तीसगढ़ पुलिस ने इलाके से 725 सिम कार्ड जब्त कर आधा दर्जन आरोपियों को रायपुर लेन में सफलता हासिल की है जिन पर हजारों लोगों से ठगी के आरोप हैं। 

झारखंड के दो जिलों में सक्रिय साइबर अपराधी डिजिटल डकैती के लिए देश भर की पुलिस के सामने चुनौती बन गए हैं। गिरिडीह और जामताड़ा के छह थाना क्षेत्र में सायबर अपराध के हजारों मामलों दर्ज हैं। दुमका जिले को विभाजित करके बनाया गया एक नया जिला है। यह उत्तर में देवघर जिले से, पूर्व में दुमका और पश्चिम बंगाल, दक्षिण में धनबाद और पश्चिम बंगाल तथा पश्चिम में गिरिडीह से घिरा हुआ है| देश के किसी भी कोने में साइबर ठगी होती है, तो 80 फीसदी मामलों में जामताड़ा के करमाटांड़ का मोबाइल लोकेशन आता है और अब यह एक अहम् समस्या बन गई है। 
छत्तीसगढ़ पुलिस ने स्थानीय पुलिस के सहयोग से साइबर अपराध में  संलिप्त दो आरोपितों को गिरफ्तार किया । खोपचवा गांव  के राहुल मंडल (पिता श्यामचंद्र मंडल) व दूसरे आरोपित कल्याणरायठाढ़ी  निवासी पप्पू कुमार मंडल (पिता प्रकाश मंडल) की उम्र 25 से 30 साल के बीच है। आरोपी बैंक अधिकारी बन कर लोगों से पासवर्ड पूछते और ऑनलाइन ठगी कर लेते थे। पुलिस ने इन्हें नाटकीय ढंग से इनके घर से पकड़ा। छापेमारी  में दलबल के साथ पहुंची तो पूरा गांव पुलिस के खिलाफ खड़ा हो गया। बाद में स्थानीय पुलिस की मदद मिली। 

सिरदद  बन चुके सायबर अपराधियों के खिलाफ झारखण्ड इलाके की पुलिस भी सक्रिय है। गिरिडीह पुलिस को एक बार पुनः फर्जी बैंक अधिकारियों को पकड़ने में सफलता हाथ लगी है। हाल में साइबर अपराध के जुर्म में माइनिंग इंजीनियर के छात्र समेत चार अपराधियों को पकड़ा गया है। निर्वाचन आयोग के हाल के जागरूकता सप्ताह के दौरान प्रस्तुत एक नोट में जिक्र किया गया है कि खराब सिग्नल और कनेक्टिविटी की समस्या के बावजूद जामताड़ा में सेलफोन की तादाद अन्य संचार माध्यमों से काफी ज्यादा है जो चौकाने वाली बात है । यहां का एक संलिप्त युवा अमूमन दस सेलफोन एक साथ हेंडल करता है। इलाके में सायबर क्राइम सबसे ज्यादा है यह प्रायः हर थाने में दर्ज है। आकलन के मुताबिक अलग-अलग 150 गिरोह इस काम में संलिप्त हैं जो पुलिस के लिए चुनौती बने हुए हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में फोन कर लोगों को झांसे में डालकर उनसे एटीएम पिन लेकर उनके अकाउंट पर हाथ साफ़ करने वाले अपराधी स्कॉर्पियो में चलते हैं और कई मकान खरीद चुके हैं। वे बाकायदा ट्रेनिंग देते हैं। एक पुलिस अफसर के मुताबिक जामताड़ा में गिरोह द्वारा बीस हजार रूपये ले आकर सायबर ठगी की ट्रेनिंग दी जा रही है। इनके पास ऐशो आराम के हर साधन मौजूद हैं।  इस क्राइम सिंडिकेट में बीसियों गांवों के सैकड़ो टीन एजर्स शामिल हैं। सबसे पहले दो लड़के दिल्ली से साइबर ठगी की ट्रेनिंग लेकर आए, इसके बाद उन्होंने यहां के युवाओं को ट्रेनिंग दी और तकरीबन हर घर में एक कल सेंटर चल पड़ा। कम पढ़े लिखे ये युवा अपराधी इतने सलीके से बात करते हैं कि ठगी के शिकार  आसानी से जाल में फंस जाते हैं।  
संपत मीणा, आइजी, सीआइडी झारखण्ड पुलिस ने बाकायदा वेबसाइट पर इश्तहार दिया है कि आए दिन साइबर अपराधियों द्वारा एटीएम फ्रॉड से लोगों को चूना लगाए जाने की खबर आती है। इसकी जानकारी के बाद भी लोग लगातार ठगी के शिकार हो रहे हैं। साइबर अपराधियों का गढ़ बन चुके जामताड़ा जिले से गिरफ्तार 12 अपराधियों ने एटीएम फ्रॉड को अंजाम देने के तरीके का खुलासा किया है। इन अपराधियों की उम्र 19 साल से 35 साल तक है। इनके मुताबिक फ्रॉड के लिए वे लोग दो तरह के मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। एक साधारण और दूसरा स्मार्टफोन। मामले में जामताड़ा पुलिस ने सीआइडी को रिपोर्ट भेजी है।

ऐसे देते हैं फ्रॉड को अंजाम :

 ''स्मार्ट फोन में वे पेटीएम, ई वैलेट और एम पैसा मोबाइल वैलेट एप्लीकेशन इंसटॉल करके रखते हैं। इसके बाद वे कई नंबरों से में से किसी एक नंबर को अंदाज पर चयन करते हैं। उसके बाद उस सीरीज के नंबरों पर साधारण मोबाइल से कॉल करते हैं। लोगों को वे अपना परिचय बैंक अधिकारी के तौर पर देते हैं। साथ ही लोगों को कहते हैं कि उनका एटीएम नंबर एक्सपायर होने वाला है और उनसे उनके एटीएम कार्ड का 16 डिजिट वाला नंबर मांगते हैं। नंबर लेने के बाद उस नंबर को मोबाइल वैलेट में डालते हैं। कुछ राशि उस वैलेट में ट्रांसफर करते है। इससे एटीएम का वन टाइम पासवर्ड जेनरेट होकर भुक्तभोगी के मोबाइल नंबर पर चला जाता है। इसके बाद साइबर अपराधी उसको फोन करके यह कहते हुए वह पासवर्ड ले लेता है कि उस नंबर के जरिए आपके एटीएम को लॉक करने से बचाया जा सकता है। नंबर लेते ही उसको वह फिर से मोबाइल वैलेट एप्लीकेशन में डालता है। इससे जो राशि खाते में होती है वह सफलतापूर्वक ट्रांसफर हो जाता है। उस पैसे से अपराधी ऑनलाइन शॉपिंग के अलावा मोबाइल और डीटीएच रिचार्ज कराने के काम में इसका उपयोग करते हैं।

किसी भी परिस्थिति में मोबाइल से बात करनेवाले व्यक्ति को अपने एटीएम या डेबिट कार्ड के बारे में किसी तरह की सूचना नहीं दें। कोई अगर बैंक अधिकारी बनकर कुछ पूछता है तो उसे यह बोलें कि कुछ देर बाद वे जानकारी दे सकते हैं। इसके तत्काल बाद अपने संबंधित बैंक से संपर्क कर वास्तविकता का पता करें। शंका होने पर पुलिस को इसकी तत्काल सूचना दें।'' 

  नौबत यह है कि अलग अलग राज्यों की पुलिस का प्रायः यहां आना जाना लगा रहता है। वजह है ठगी। राष्ट्रीय अपराध अनुसन्धान ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक  2013 में पूरे देश में साइबर अपराध के कुल 5,613 मामले दर्ज किए गए जबकि 2015 में इसकी संख्या बढ़कर 11,331 हो गई।
पुलिस के आला अफसर भी  रहे हैं कि जामताड़ा में ही यह अपराध क्यों संगठित रूप से पनप रहा है। एक वजह यह मानी जा रही है कि पुलिस के पास दक्ष सायबर टीम का अभाव है और अपराधी बेखटके काम को सफाई से अंजाम दे रहे हैं।  
(राष्ट्रीय सहारा नई दिल्ली मे   2016 में प्रकाशित मेरी खबर)

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